नयी दिल्ली. बच्चे के पैदा होने से पहले लड़का चाहने की इच्छा के तहत कराया जाने वाले जन्मपूर्व लिंग परीक्षण को विशेषज्ञ गरीबी से संबंधित नहीं मानते, क्योंकि पिछले दशकों की आर्थिक तरक्की निश्चित तौर पर ज्यादा लैंगिक समानता के रूप में देखने को नहीं मिली है. ‘जन्मपूर्व लिंग निर्धारण पर नीति वार्ता’ के मुद्दे पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञों ने लैंगिक भेदभाव के पीछे की वजहों और इनसे निबटने के संभावित हलों पर चर्चा की. महिला विकास अध्ययन केंद्र (सीडब्ल्यूडीएस) की मैरी ई जॉन ने कहा, ‘हमारा समाज पितृसत्तात्मक है, जहां माता-पिता विभिन्न कारणों से बेटियों के बजाय बेटों को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन, हमें यह समझने की जरूरत है कि यह मध्यकाल में ही नहीं, बल्कि 21वीं सदी में हो रहा है. इसके पीछे की वजह अब गरीबी नहीं रही है, जहां माता-पिता बुढ़ापे के सहारे के रूप में या दहेज से बचने या आर्थिक पहलुओं को देखते हुए बेटों को प्राथमिकता देते थे. लेकिन, अब ऐसा उन क्षेत्रों में कहीं ज्यादा हो रहा है, जो उच्च शिक्षा स्तर और तुलनात्मक तौर पर ज्यादा समृद्धि रखतेे हैं.’ उन्होंने कहा कि इसलिए यह चलन अब गरीबी से जुड़ा हुआ नहीं रह गया.
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गरीबी से नहीं जुड़ा है प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण
नयी दिल्ली. बच्चे के पैदा होने से पहले लड़का चाहने की इच्छा के तहत कराया जाने वाले जन्मपूर्व लिंग परीक्षण को विशेषज्ञ गरीबी से संबंधित नहीं मानते, क्योंकि पिछले दशकों की आर्थिक तरक्की निश्चित तौर पर ज्यादा लैंगिक समानता के रूप में देखने को नहीं मिली है. ‘जन्मपूर्व लिंग निर्धारण पर नीति वार्ता’ के मुद्दे […]
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