रांची: झारखंड के विश्वविद्यालयों के वैसे वरीय शिक्षक, जो पिछले 18 वर्षो से प्रोन्नति की उम्मीद छोड़ चुके थे, उनमें आशा की किरण जगी है. बिहार के राज्यपाल सह कुलाधिपति द्वारा स्वीकृत परिनियम के अनुसार 10 वर्षो तक व्याख्याता के पद पर कार्यरत रहने के पश्चात रीडर के पद पर प्रोन्नति का प्रावधान है.
साथ ही 25 वर्षो की सेवा के पश्चात प्रोफेसर के पद पर प्रोन्नति की बात कही गयी है. बाद में शिक्षकों के लिए 16 वर्षो की सेवा के पश्चात प्रोफेसर बनाने का प्रावधान रखा गया. इन दो प्रावधानों के तहत एकीकृत बिहार के सैकड़ों विवि शिक्षकों को प्रोन्नति का लाभ आयोग द्वारा दिया गया. 1995 में पारित एक अधिनियम के तहत सिर्फ व्याख्याता से रीडर पद पर प्रोन्नति समाप्त कर दी गयी, जिसमें रीडर से प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति की चर्चा कहीं भी नहीं की गयी. लेकिन पूरे प्रदेश में यह बात प्रचारित कर दी गयी कि कालबद्ध प्रोन्नति का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है. इससे संयुक्त बिहार के सैकड़ों शिक्षक प्रोन्नति के अधिकार से वंचित रह गये.
23 नवंबर 1995 के अधिनियम का गहन अध्ययन करने के बाद कुछ शिक्षकों ने पटना उच्च न्यायालय तथा राजभवन, पटना से न्याय की अपील की. साथ ही वीर कुंवर सिंह विवि ने 1986-87 के अधिनियम के तहत एक शिक्षक की प्रोन्नति संबंधी संचिका राजभवन को भेज कर मंतव्य मांगा. जिसमें रीडर से प्रोफेसर के पद पर प्रोन्नति की बात कही गयी थी. 16 मार्च 2013 को राजभवन, पटना से एक पत्र वीर कुंवर सिंह विवि भेजा गया. इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि रीडर से प्रोफेसर के पद पर प्रोन्नति मामले में 1986-87 का अधिनियम आज भी प्रभावी है और प्रभावी रहेगा.
इस पत्र की प्रतिलिपि बिहार राज्य के सभी कुलपतियों को भी भेज दी गयी और प्रोन्नति की प्रक्रिया आरंभ कर दी गयी. झारखंड बनने के पूर्व शिक्षक अर्हता रखते थे और बिहार राज्य विवि एक्ट 1976 को झारखंड द्वारा अंगीकृत किये जाने के कारण यहां के शिक्षकों को भी इसका लाभ मिलने की संभावना बढ़ गयी है. फिलहाल शिक्षकों ने झारखंड राजभवन में भी इस आशय का आवेदन देकर न्याय की अपील की है.