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झारखंड के पांच जिलों में 38 पहाड़ गायब
प्राकृतिक सौंदर्यता, जंगल और खनिजों के लिए प्रसिद्ध झारखंड के पांच जिलों से 38 पहाड़ गायब हो गये हैं. राज्य के अन्य जिलों में भी अवैध खनन के कारण 80 से ज्यादा पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में है. इस खेल में पत्थर माफिया के अलावा कुछ भ्रष्ट अफसर और नेता भी शामिल हैं. नियम-कानून की […]
प्राकृतिक सौंदर्यता, जंगल और खनिजों के लिए प्रसिद्ध झारखंड के पांच जिलों से 38 पहाड़ गायब हो गये हैं. राज्य के अन्य जिलों में भी अवैध खनन के कारण 80 से ज्यादा पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में है.
इस खेल में पत्थर माफिया के अलावा कुछ भ्रष्ट अफसर और नेता भी शामिल हैं. नियम-कानून की धज्जियां उड़ाते हुए पहाड़ों की खुदाई हो रही है. जहां-तहां क्रशर मशीन लगी हैं. यहां तक कि संताल में एक स्टेशन पर भी क्रशर मशीन लगी है. हाइवे के किनारे सैकड़ों क्रशर मशीनें लगी हैं. इनमें से अधिकतर अवैध हैं, पर कार्रवाई नहीं होती. पहाड़ तोड़ने में माफिया जिन मजदूरों को लगाते हैं, सिलकोसिस जैसी बीमारियों से उनकी मौतें हो रही हैं.
जिन पहाड़ों को बनने में करोड़ों वर्ष लगते हैं, उन पहाड़ों को 15-20 साल में काट कर खत्म कर दिया गया है. अब नये पहाड़ बनने के आसार भी नहीं हैं. राजमहल के आसपास ऐसी पहाड़ियां थीं, जो 100 करोड़ वर्ष से ज्यादा पुरानी थीं. इन्हें भी काटा जा रहा है. कोई रोकनेवाला नहीं. पहाड़ों के नष्ट होने से पर्यावरण पर गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है. झारखंड में मौसम बदलने लगे हैं. बेमौसम बारिश हो रही है.
नदियां तेजी से सूखने लगी हैं. उत्तराखंड में पहाड़ों को काटने के बाद की प्राकृतिक आपदा को पूरी दुनिया ने देखा है. आदिवासी संस्कृति में तो पहाड़ों, वन और नदियों का खास महत्व है. यह मनुष्य के जीवन से सीधा जुड़ा है. इसके नष्ट होने से मनुष्य का जीवन खतरे में है. इसके बावजूद झारखंड के राजनीतिज्ञों के लिए यह बहस का मुद्दा बन नहीं पाया है. अब भी नहीं चेते, तो प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का नतीजा भुगतने के लिए लोगों को तैयार रहना चाहिए. पढ़िए हकीकत बतानेवाली रिपोर्ट.
अन्य 80 पहाड़ों पर भी संकट, अवैध खनन ने उजाड़ा
रांची : झारखंड के पांच जिलों से 38 पहाड़ गायब हो गये हैं. इनका वजूद पूरी तरह खत्म हो गया है. जहां कभी पहाड़ियां हुआ करती थीं, आज समतल है. ये आंकड़े सिर्फ पांच जिलों के हैं. झारखंड में 24 पहाड़ पूरी तरह खत्म होने की स्थिति में हैं. इनके आकार नाम मात्र के बचे हैं.
इनमें हजारीबाग के 14, साहेबगंज के तीन, लोहरदगा के दो, पलामू के चार और कोडरमा के एक पहाड़ शामिल हैं. यही नहीं, छह जिलों के 53 पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में है. इनकी खुदाई में हाथ लग चुका है. धनबाद, गिरिडीह और पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम में भी कई पहाड़ों में कटाई का काम चल रहा है. कुछ को तो सरकार ने लाइसेंस दिया है, बाकी अवैध हैं. पत्थर माफियाओं ने सबसे अधिक लातेहार में पहाड़ों को नुकसान पहुंचाया है.
जिले के विभिन्न हिस्सों में स्थित 23 पहाड़ जमीन में मिल गये हैं. इनका अस्तित्व लगभग खत्म हो गया है. कोडरमा में पांच, गुमला में चार और लोहरदगा में तीन पहाड़ पूरी तरह खत्म हो गये हैं. संताल परगना में पाकुड़ और साहेबगंज में भी कुछ पहाड़ गायब हो गये हैं.
कई जगहों पर अवैध क्रशर : इन जिलों में पत्थर माफिया नियमों को ताक पर रख कर खनन कर रहे हैं. सिर्फ कोडरमा के डोमचांच, मरकच्चो और चंदवारा में ही 600 से अधिक क्रशर हैं. यहां 150 से अधिक खदान हैं.
लोहरदगा में भी 72 छोटे-बड़े पहाड़ों को लीज पर दे दिया गया है. 28 क्रशर पत्थरों को तोड़ने के लिए तैयार बैठा है. जिले के ओएना टोंगरी पहाड़ 12 लोगों को लीज पर दिया गया है. यहां सात क्रशर काम कर रहे हैं.
हजारीबाग के जिला खनन पदाधिकारी नारायण राम के अनुसार, जिले में मात्र 10 क्रशर को ही लाइसेंस दिया गया है. पर हकीकत कुछ और है, हजारीबाग में सैकड़ों अवैध क्रशर चल रहे हैं. खबर तो यह है कि सिर्फ इचाक में 500 से अधिक क्रशर संचालित हैं. बरकट्ठा में करीब 100 क्रशर काम कर रहे हैं. जिले में क्रशर के 450 आवेदन पड़े हैं.
संताल परगना बना हब : संताल परगना में पाकुड़ और साहेबगंज जिला पत्थर खनन का हब बन गया है. कुछ पहाड़ों को तो सरकार ने ही लीज पर दिया था. पर तीन पहाड़ों को अवैध खनन ने खत्म कर दिया. सूत्रों के अनुसार, सिर्फ साहेबगंज से ही प्रतिदिन दो हजार ट्रक पत्थरों की ढुलाई होती है. पाकुड़ जिला खनन विभाग ने 2008 में 88 अवैध पत्थर माइनिंग को चिह्न्ति किया था. लगभग 300 एकड़ में फैले पहाड़ पर अवैध पत्थर खनन कार्य चलने की सूचना प्रशासन को थी.
झारखंड में सरकार आसानी से पहाड़ियों को काटने के लिए लीज दे रही है. सिर्फ राजमहल में 395 माइंस को लीज मिला है. यहां से खुदाई तो हो ही रही है लेकिन इसके अलावा यहां लगभग 2000 से ज्यादा स्थानों पर दिन रात विस्फोट कर पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है. हाल में संतालपरगना के कई क्षेत्रों में विस्फोटक लदे वाहनों को पकड़ा भी गया है.
लातेहार सबसे आगे
गुमला, लोहरदगा, कोडरमा साहेबगंज भी पीछे नहीं
क्यों गायब हो रहे पहाड़
पत्थर माफिया लगातार अवैध खनन कर रहे हैं. बड़े पैमाने पर अवैध क्रशर और पत्थर खदान चल रहे हैं. कई इलाकों में सरकार ने पहाड़ों को लीज पर दे दिया है
कौन कर रहा है गायब
इस धंधे में सभी तबके के लोग शामिल हैं. बड़े नेताओं और कई नौकरशाहों के यहां माइंस और क्रशर हैं. यही वजह है कि कभी किसी राजनीतिक दल ने इसे मुद्दा नहीं बनाया.
रोकने का जिम्मा किसका
अवैध उत्खनन को रोकने की जिम्मेदारी खनन विभाग, वन विभाग, जिला प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की है. पर इस इलाके में कोई भी अपनी भूमिका नहीं निभा रहा.
‘‘राजमहल की पहाड़ियोंे के पास कुछ ऐसे फॉसिल्स पाये गये हैं, जो 10 लाख वर्ष पुराने हैं. इन्हें बचाना होगा.
डॉ सीताराम सिंह,भूगर्भशास्त्री
‘‘झारखंड में ज्वालामुखी नहीं फट सकता, इसलिए यहां पहाड़ भी नहीं बन सकते. इसलिए जो पहाड़ हैं, उन्हें भविष्य के लिए बचाना होगा.
जयप्रकाश सिंह (पूर्व निदेशक, भूतत्व विभाग)
आप सोचिए
आनेवाले कुछ सालों में अगर पत्थर माफिया ने झारखंड के सभी पहाड़ों को खत्म कर दिया, तो क्या होगा? पहाड़ी से निकलनेवाली नदियां सूख जायेंगी, पहाड़ के साथ-साथ जंगल स्वत: खत्म हो जायेंगे.
जलवायु परिवर्तन तेजी से होगा. बिना मौसम की बारिश होगी, फसल खराब होगी. पर्यावरणीय असंतुलन बनेगा. जब पहाड़ नहीं होंगे, तो आनेवाले दिनों में सड़कें कैसे बनेंगी, पुल कैसे बनेंगे, इसके लिए पत्थर कहां से आयेंगे. आपकी आनेवाली पीढ़ी अपना घर कैसे बनायेगी, कैसे छत की ढलाई होगी. ऐसा न हो कि भविष्य में पत्थर-छरी भी विदेश से मंगाना पड़े.
आप आगे आइए
अगर आपके आसपास की पहाड़ियां गायब हो रही हों, अवैध उत्खनन हो रहा हो, अवैध क्रशर चल रही हो, आपकी शिकायत के बाद भी कोई नहीं सुन रहा हो, तो चुप मत बैठिए. यह आपके जीवन से जुड़ा है. आप अपने विचार-शिकायत लिख कर हमें इस पते पर भेजिए.
जो पहाड़ गायब हुए
लोहरदगा (3) : ओएना टोंगरी, उमरी और अरकोसा
कोडरमा (5) : डोमचांच के मसनोडीह, ढाब, पडरिया, उदालो व सिरसिरवा
लातेहार (23) : नरैनी, कूरा, पॉलिटेक्निक, सोतम, ललगड़ी, खालसा, बारियातू, डेमू, बानपुर, दुगिला, तेहड़ा (सभी लातेहार अंचल में), सधवाडीह, लंका, कोपे, जेरुआ (सभी मनिका में), राजदंडा, जोभीपाट, कुकुदपाट, चोरमुड़ा (महुआडांड़), द्वारसेनी, बारेसांढ़, रिझू टोंगरी, धांगर टोंगरी (सभी गारू)
गुमला (4): जैरागी (डुमरी), सेमरा (पालकोट), निनई (बसिया), बरिसा
साहेबगंज (3) : सकरी गली के गड़वा पहाड़, पंगड़ो पहाड़, अमरजोला पहाड़ (सभी राजमहल में)
खत्म होने के कगार पर
हजारीबाग (14) : करमाली, सिझुआ, नारायणपुर, बेड़म, कुबरी (सभी टाटीझरिया), महावर व असिया (इचाक), शाहपुर,
आराभुसाई (कटकमसांडी), जमनीजारा व इटवा (विष्णुगढ़), देवरिया (सदर/दारू), सोनपुरा व लाटी (पदमा)
लोहरदगा (02) : बगड़ू (किस्को) व कोरांबे (सेन्हा)
कोडरमा (01): चंचाल पहाड़ (डोमचांच)
पलामू (04) : विशुनपुरा पहाड़ (नौडीहा), मुनकेरी पहाड़ (छत्तरपुर), सेमरा (चैनपुर), खोहरी (चैनपुर)
साहेबगंज (03) : नासा पहाड़ , धोकुटी और गुरमी पहाड़ी (सभी राजमहल में)
इन पहाड़ों पर भी संकट
हजारीबाग (9 ) : साड़म व डुमरौन (इचाक),बानादाग (कटकमसांडी), मुरुमातू (टाटीझरिया), बभनवै, शीलाडीह, रोला (सदर/दारू) और दोनयकला व चमेली
चतरा (13) : चनकी़, चोपारी, गटमाही, कुरखेता, चलला के पाली, पिपरा, दंतकोमा (सभी हंटरगंज), होंहे, कुडलौंगा (टंडवा), आरा पहाड़ी, कुलवा (चतरा), सपाही पहाड़ी (सिमरिया), अहिरपुरवा (प्रतापपुर)
लातेहार (5) : तपा (लातेहार), सोहरपाट (महुआडांड़), चरवाडीह व बकोरिया (मनिका), बड़की पहाड़ी
पलामू (10) : बुढ़ीबीर पहाड़, चोटहासा पहाड़, करसो पहाड़ी (सभी चैनपुर), मुकना, गानुथान, गोरहो, सलैया (छत्तरपुर नौडीहा इलाके में), महुअरी, रसीटांड, सरसोत (हरिहरगंज)
गुमला (4) : करौंदी व करमडीपा (गुमला), सेमरा (पालकोट), माझांटोल (रायडीह)
सिमडेगा (6) : कसडेगा पहाड़, लाघाघ, जलडेग स्थित सिहलंगा, मुर्गीकोना, करमापानी, केरसाई स्थित रंगाटोली आलू पहाड़, किनकेल पहाड़
साहेबगंज (06) : पतना प्रखंड का बोरना पहाड़ और महादेवगंज, बिहारी, कोदरजन्ना, सकरीगली, महाराजपुर स्थित पहाड़
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