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कैसी हो हमारी स्थानीय नीति
सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज […]
सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज सकते हैं. हमारा पता है : सिटी डेस्क, प्रभात खबर, 15-पी, कोकर इंडस्ट्रीयल एरिया, रांची या फिर हमें मेल करें.
स्थानीय वही, जिसकी भाषा संस्कृति व जाति झारखंडी
सालखन मुरमू
झारखंड में स्थानीय नीति झारखंडी जन को स्थापित करने वाली हो, न कि उन्हें विस्थापित करने वाली. झारखंड में स्थानीय वही है, जिसकी भाषा- संस्कृति, जाति झारखंडी है. फिलहाल आदिवासी और मूलवासी ही झारखंडी हैं. झारखंडी की पहचान सिर्फ भाषा- संस्कृति, परंपरा व जाति से संभव है, न कि किसी खतियान या कटऑफ (आधार) वर्ष के आधार पर.
गैर झारखंडी भी येन केन प्रकारेण खतियान बना सकते हैं, तो क्या उन्हें झारखंडी का दर्जा देना जायज होगा? नहीं. वृहद झारखंड की मांग किसी खतियान या आधार वर्ष के आधार पर नहीं, बल्कि भाषा- संस्कृति और जाति के आधार पर थी. ज्ञातव्य हो कि झारखंड उच्च न्यायालय ने डोमिसाइल पर अपने 27 नवंबर 2002 के फैसले में सभी खतियान को नकारा है, मगर भाषा- संस्कृति, परंपरा को स्वीकार किया है.
डोमिसाइल नीति वृहद झारखंड आंदोलन के इतिहास, उद्देश्य और भारत के संविधान एवं झारखंडी जन की दुर्दशा के मद्देनजर संविधान की धाराएं 16 (3) और 309 को आधार बना कर बिरसा मुंडा का सपना ‘अबुआ दिशुम, अबुआ राज’ को स्थापित करें, तभी सार्थक होगा. स्थानीयता लोगों को नौकरी में प्राथमिकता देने की जरूरत से जुड़ा है. जब तक किसी ठोस स्थानीयता नीति का निर्धारण नहीं होता, सरकार सभी बहालियों का 90 प्रतिशत हिस्सा प्रखंडवार आबादी के अनुपात में कोटा बना कर केवल प्रखंड के आवेदकों से भरे, क्योंकि लगभग सभी ग्रामीण झारखंडी हैं.
(लेखक आदिवासी सशक्तीकरण अभियान से जुड़े हैं)
स्थानीयता पर सर्वमान्य हल निकाले सरकार
कुशवाहा शिवपूजन मेहता
स्थानीयता पर सरकार को सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करनी चाहिए. राज्य में यथाशीघ्र स्थानीय नीति बनानी चाहिए. स्थानीयता तय करने से पहले सरकार निष्पक्ष कमेटी का गठन करे. इसमें बुद्धिजीवियों और कानून के जानकारों को रखा जाये. कानून के जानकार इसका गहन अध्ययन कर एक प्रारूप तैयार करें. इसके बाद प्रारूप को सरकार के समक्ष रखा जाये. इस पर सरकार की स्वीकृति मिलने के बाद इसे राजनीतिक दलों के समक्ष रखा जाये. यहां के मूलवासियों को नौकरी में प्राथमिकता मिलनी चाहिए.
साथ ही यहां पर वर्षो से रहने वाले लोगों के हितों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए. यह भी देखा जाये कि किसी वर्ग विशेष की भावना को ठेस नहीं पहुंचे. स्थानीय नीति नहीं बनने की वजह से यहां के मूलवासियों को लाभ नहीं मिल पा रहा है. यहां हो रही नियुक्तियों में दूसरे राज्य के लोग लाभान्वित हो रहे हैं. स्थानीय नीति को लेकर सरकार कोई भी कट ऑफ डेट निर्धारित करे, लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाये कि यहां मूलवासियों का अहित नहीं हो. वे अपने अधिकार से वंचित न रह जायें. झारखंड में रहनेवाले या जन्म लेनेवाले सभी लोग झारखंडी हैं. राज्य गठन के बाद से पिछले 14 वर्षो में इस मामले पर सिर्फ राजनीति हुई है. इसका खामियाजा यहां के स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ा है. वर्तमान सरकार को अविलंब स्थानीय नीति बना कर उसे लागू करना चाहिए.
(लेखक बसपा के विधायक हैं)
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