अनंत ओझादेश की डोमिसाइल नीति एक होती है. राज्य गठन से पहले झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था. ऐसे में राज्य गठन के समय से यहां रहने वाले सभी लोग झारखंडी है. छत्तीसगढ़ समेत हर राज्य ने मूलवासियों की पहचान को लेकर सर्वे कराया गया है. झारखंड के बड़े हिस्से में अब तक सर्वे का काम नहीं हुआ है. राज्य में जमीन की प्रकृति अलग-अलग है. यहां पर वर्षों से रहने वाले लोगों को पास अब तक अपनी जमीन नहीं हो पायी है. खास महल क्षेत्र में रहनेवाले लोगों की भी यही समस्या है. वे अब तक जमीन नहीं खरीद पाये हैं. कई गरीब लोग भी यहां वर्षों से रह रहे हैं, लेकिन उनके पास अपना भूखंड नहीं है. ऐसे लोगों की पहचान को लेकर सरकार को पहल करनी चाहिए. इन क्षेत्रों का सर्वे करा कर मूलवासियों की पहचान की जानी चाहिए. राज्य गठन के बाद से यहां पर बांगलादेशियों की घुसपैठ बढ़ी है. इनमें से अधिकांश लोगों ने पहचान पत्र भी बना लिया है. ऐसे लोगों की पहचान करना जरूरी है. स्थानीयता तय करने से पहले सरकार को सर्वे करा कर मूलवासियों की पहचान करनी चाहिए, ताकि वे अपने अधिकार से वंचित नहीं रह जाये. पिछले 14 वर्षो में स्थानीय नीति बनाने को लेकर सिर्फ राजनीति हुई है. इसकी वजह से यहां के मूलवासियों को हक नहीं मिल पाया है. राज्य में स्थानीय नीति का मुद्दा संवेदनशील है. इसमें सभी का ध्यान रखा जाना चाहिए.(लेखक भाजपा विधायक हैं)
मूलवासियों की पहचान को लेकर हो सर्वे (स्थानीय नीति) बहस
अनंत ओझादेश की डोमिसाइल नीति एक होती है. राज्य गठन से पहले झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था. ऐसे में राज्य गठन के समय से यहां रहने वाले सभी लोग झारखंडी है. छत्तीसगढ़ समेत हर राज्य ने मूलवासियों की पहचान को लेकर सर्वे कराया गया है. झारखंड के बड़े हिस्से में अब तक सर्वे का […]
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