रांचीः राज्य बनने के बाद राज्य में अपनी कोई नीति नहीं बनने से सरकार और जनता दोनों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है. जितना जल्द नीति बन जाये, राज्य व जनता का भला होगा. झारखंड में 12 साल में स्थानीय नीति नहीं बनना चिंता का विषय है. हल सभी को मिल कर काम करना चाहिए. स्थानीय व मूलवासी की राज्य के अंदर इसका परिभाषा अलग-अलग है .
राज्य के अंदर जो लोग निजर्न भूमि पर शुरू से रह रहे हैं, मूलवासी हैं, इनके और स्थानीय लोगों में बहुत अंतर नहीं है, केवल उनके सोच का फर्क है. खतियान को आधार बनाया जा रहा है, खतियान समय-समय पर बना है, उत्तरी छोटानागपुर क्षेत्र में 1932, दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र में 1965 वर्ष में खतियान बना. किसी एक को मान लें, तो कई क्षेत्र के लोग वंचित हो जायेंगे. राज्य के अंदर जमींदारी प्रथा, राजबाड़ी व्यवस्था थी, उस समय से बहुत से लोगों के पास जमीन नहीं थी. अपने काम करने के लिए लोगों को लाया गया था (नाई, धोबी, लोहार सहित अन्य), उसके पास खतियान नहीं है, तो क्या ऐसे लोगों को स्थानीय नहीं माना जायेगा.
केवल खतियान को ही आधार मान लिया गया, तो बहुत सारे लोग वंचित हो जायेंगे. जंगल में रहनेवाले के पास भी आज खतियान नहीं है. गैर खतियान लोग भी जो वर्षो से यहां रह रहे हैं, वैसे लोगों का भी ध्यान रखना होगा.राज्य सरकार की जिम्मेवारी सबसे अधिक होती है. जनता द्वारा चुने गये विधानसभा के सदस्य होने के नाते यह जिम्मेवारी विधायकों की है. राज्य में नीति निर्धारण के लिए आवश्यकता पड़े, तो राज्य के अंदर विशेषज्ञों की टीम, गैर सरकारी संस्थानों के प्रमुखों कमेटी बनायी जा सकती है. सरकार रिपोर्ट लेकर स्थानीय नीति बनाये. सर्वदलीय बैठक बुला कर सरकार चर्चा कराती है, तो यह स्वस्थ परंपरा मानी जायेगी, ताकि इस नीति पर हर दल की ओर से सुझाव मिल सके . राज्य सरकार इस पर विचार कर सकती है. सामूहिक विचार करें, कोई भी आधार बनाना ही होगा.