रांची: गैरआदिवासी को मुख्यमंत्री बनाये जाने के विरोध में विभिन्न आदिवासी संगठनों द्वारा शनिवार को आहूत बंद के दौरान रांची में जन जीवन सामान्य रहा. दुकानें खुली रहीं, वाहनों का परिचालन जारी रहा. इस दौरान विभिन्न आदिवासी संगठनों से जुड़े कई लोग करमटोली चौक होते हुए चडरी सरना समिति के पास पहुंचे. उन्होंने बंद के समर्थन में नारेबाजी की और दुकानों को बंद करने के लिए कहा. पुलिस ने 13 बंद समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया.
गिरफ्तार लोगों में प्रेम शाही मुंडा, मोती कच्छप, जगदीश पाहन, राज कुमार मुंडा, अजरुन मुंडा, राजेंद्र मुंडा, लीलेंद्र मुंडा, सिकंदर मुंडा, संजीव वर्मन, डॉ नारायण हांसदा, उमेश मुंडा, लक्ष्मी नारायण मुंडा, पवन करमाली शामिल है. इस दौरान कुछ लोग गिरफ्तारी के डर से भाग निकले.
कोतवाली थाना प्रभारी अरविंद सिन्हा ने बताया कि सभी को धारा 144 का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. रविवार को भी आदिवासी संगठनों की ओर से बंद का आह्वान किया गया है. इसलिए जिन्हें गिरफ्तार किया गया है. उन्हें रविवार की बंदी के समाप्त होने के बाद ही जमानत पर रिहा जायेगा.
उल्लेखनीय है कि विभिन्न आदिवासी संगठनों ने शुक्रवार को झारखंड बंदी की घोषणा की थी. इसे लेकर पुलिस पहले से ही सतर्क थी. सुरक्षा के लिए विभिन्न चौक- चौराहों पर जिला पुलिस बल और जैप के करीब 700 जवान तैनात थे. थानेदार भी सुबह छह बजे से गश्ती पर थे. सभी थानेदारों को एसएसपी का आदेश था कि बंदी के दौरान विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न नहीं होनी चाहिए. आईटीआई स्टैंड पर आदिवासी संगठनों के बंद का भी असर देखा गया. यात्रियों को परेशानी हुई.
झारखंड सचिवालय
सामान्य दिनों की तरह होता रहा कामकाज झारखंड सचिवालय शनिवार को खुला रहा. सचिवालय में सामान्य दिनों की तरह कामकाज होता रहा है. प्रोजेक्ट भवन, नेपाल हाउस सहित सारे जगहों पर कर्मियों की उपस्थिति देखी गयी, हालांकि सामान्य दिनों के तुलना में कम कर्मी दफ्तर पहुंचे थे. दफ्तर रविवार को भी खुला हुआ है.
बंद राज्य हित में नहीं : सत्यप्रकाश मिश्र
सदान विकास परिषद के प्रदेश प्रवक्ता डॉ सत्यप्रकाश मिश्र ने कहा है कि रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाये जाने पर आदिवासी संगठनों के द्वारा आहूत बंद राज्यहित में नहीं है. सदान विकास परिषद एवं अन्य सदान संगठनों ने कभी भी आदिवासी मुख्यमंत्री बनाये जाने का विरोध नहीं किया. जो आदिवासी नेता इस चुनाव में हार गये हैं वही आदिवासी मूलवासी के नाम पर जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं.