रांची: दुमका के काठीकुंड स्थित आमतल्ला गांव में एसपी अमरजीत बलिहार समेत पांच पुलिसकर्मियों की हत्या की घटना उस इलाके में नक्सलियों को हल्के में लेने का परिणाम है. दुमका में नक्सली खुद को मजबूत करते रहे, जबकि पुलिस सोती रही.
नक्सली वारदातों के लेकर किसी भी स्तर से गंभीर पहल नहीं की गयी. संताल परगना प्रमंडल का दुमका और पाकुड़ नक्सल प्रभावित जिला है. वहां नक्सली दो बड़ी घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं, जिसमें पुलिस पदाधिकारी शहीद हुए. 26 अप्रैल 2008 को काठीकुंड इलाके के आमगाछी में नक्सलियों के साथ हुई मुठभेड़ में दारोगा सदानंद सिंह शहीद हो गये थे. वह जामा थाना के प्रभारी थे.
इससे पहले वर्ष 2007 में नक्सलियों ने शिकारीपाड़ा में पुलिस पार्टी पर हमला कर दारोगा शमशाद अंसारी की हत्या कर दी थी. इन वारदातों के बाद भी दुमका जोन की पुलिस और पुलिस मुख्यालय नहीं गंभीर नहीं हुई. दुमका प्रमंडल की पुलिस को अत्याधुनिक संसाधन उपलब्ध कराने के मामले में पुलिस मुख्यालय का रुख अफसोसजनक ही रहा है. उस इलाके में सीआरपीएफ की बात तो छोड़ दें, नक्सलियों से लड़ने के लिए ट्रेंड जवानों तक को नहीं लगाया गया. खुफिया विभाग भी दुमका को लेकर अब तक निश्चित रहा है.
वहां अब तक कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया है. यहां तक की अफसरों को पदस्थापित करने के मामले में भी गंभीरता नहीं बरती जाती है. वहां के थानों को मजबूत करने का काम भी अब तक शुरू नहीं हो पाया है. काठीकुंड थाना क्षेत्र के जमनी गांव के निकट 29 नवंबर 2012 को नक्सलियों ने सड़क निर्माण में लगी डंपर व पोकलेन में आग लगा दी थी. उक्त घटना के बाद भी दुमका पुलिस नहीं संभली, जबकि नक्सली काठीकुंड थाना क्षेत्र में जमे रहे. नक्सलियों के खिलाफ अभियान तक नहीं चलाया गया. दुमका एसपी, डीआइजी व आइजी काठीकुंड को लेकर चुप ही रहे.