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मैडम, अभिभावक की परेशानी को भी महसूस कीजिए

मैं एक अभिभावक हूं. मेरा पुत्र सुरेंद्र नाथ सेंटेनरी स्कूल में पढ़ता है. एक समय था जब बेटे की फीस स्कूल में जमा करता था. समय बदला. तय हुआ कि बैंक में जमा करना है. वहां जमा करने लगा. बार-बार (हर माह) बैंक न जाना पड़े, इसलिए कभी तीन माह तो कभी चार-छह माह की […]

मैं एक अभिभावक हूं. मेरा पुत्र सुरेंद्र नाथ सेंटेनरी स्कूल में पढ़ता है. एक समय था जब बेटे की फीस स्कूल में जमा करता था. समय बदला. तय हुआ कि बैंक में जमा करना है. वहां जमा करने लगा. बार-बार (हर माह) बैंक न जाना पड़े, इसलिए कभी तीन माह तो कभी चार-छह माह की फीस एक बार जमा कर दी. ऐसा परेशानी से बचने के लिए किया था. जब एक साथ कई माह की फीस जमा कर दी, तो एक दिन स्कूल से सूचना आती है कि स्मार्ट क्लास की फीस भी जमा करनी है. वह भी बैंक में. वह भी जमा किया. यानी बैंक जाने की जिस परेशानी के कारण एक साथ फीस जमा की थी, उस परेशानी ने पीछा नहीं छोड़ा. फिर खबर आती है कि स्कूल की पत्रिका की फीस (दो सौ रुपये) भी बैंक में ही जमा करनी है. यानी फिर बैंक जाना होगा. प्राचार्या महोदय, अभिभावक क्या करें? वह अभिभावक ज्यादा परेशान नहीं होगा जो हर माह फीस देता है क्योंकि जब वह मासिक फीस जमा करने जायेगा, तो स्मार्ट क्लास या मैगजीन की फीस भी जमा कर देगा. लेकिन सोचिए उस अभिभावक के बारे में, जिसने कई माह की फीस एडवांस में जमा भी की, लेकिन हर माह उसे बैंक जाना ही पड़ता है. याद कीजिए बैंक में जाकर लंबी लाइन लगाना आसान नहीं होता. मेरा आपसे आग्रह है कि फीस तो आप बैंक में जमा करा दें लेकिन जब छोटी-छोटी अन्य राशि (जिसका निर्णय बाद में होता हो) छात्रों से लेनी हो, तो बैंक की जगह स्कूल में इसके लिए काउंटर की व्यवस्था हो. कृपया अभिभावकों की परेशानी को भी समझें.एक अभिभावक

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