रांची: मंगरू (बदला हुआ नाम) को 45 साल बाद अफेलिया (दुर्लभ जन्मजात लिंग की बीमारी) से राहत मिली है. रिम्स के डॉ शीतल मलुआ की टीम ने मंगरू का ऑपरेशन किया. फिलहाल प्रथम फेज का ऑपरेशन हुआ है. पर, मगरू ने सामान्य लोगों की तरह अपनी दिनचर्या शुरू कर दी है. चिकित्सक अब उसके आगे के इलाज पर मंथन कर रहे हैं.
कैसे चला बीमारी का पता
मंगरू अपनी बीमारी अपने परिजनों से छुपाये हुए था. इस बीमारी की जानकारी परिजनों को तब हुई, जब एक दिन मंगरू का पेशाब रुक गया. परिजन उसे रिम्स ले आये. ओपोडी में मरीज की वस्तुस्थिति देखते चिकित्सक अवाक रह गये. चिकित्सकों ने तुरंत मरीज को भरती कर लिया औरउसे इलाज पर गंभीर विचार विमर्श शुरू किया.
अभी तक का यह 75 वां केस
चिकित्सकों का दावा है कि पूरी दुनिया में अफे लिया से मात्र 75 लोग ही पीड़ित पाये गये हैं. यह बच्चों के जन्म के समय ही पता चल जाता है. जन्म लेते ही इसका इलाज शुरू कर दिया जाता है. रिम्स के चिकित्सकों का कहना है कि वयस्क लोगों का यह दूसरा केस है. पहला केस जापान में मिला था. उस मरीज की उम्र 31 वर्ष थी. 45 वर्ष का यह पहला मरीज है. जापान के चिकित्सकों ने भी मरीज के पेशाब का रास्ता बना कर छोड़ दिया था.
इलाज में जुटे चिकित्सकों की टीम
डॉ शीत मलुआ, डॉ पंकज बोदरा, डॉ निशित एक्का, डॉ कृष्ण मुरारी, डॉ श्याम चरण, डॉ रंजीत राणा, डॉ संजय यादव एवं कार्तिक पात्रो की टीम लगी हुई है.