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साथ जीये, साथ चल बसे शरण दंपती

रांची: साथ जीने-मरने की कसम खानेवाले तो बहुत हैं, लेकिन बिरले ही उसे निभा पाते हैं. गृहस्थ जीवन के 63 वर्षो तक दुख-सुख की हर घड़ी में साथ निभानेवाले शरण दंपती की सोमवार को एक साथ अर्थी निकलते देख पड़ोसियों की जुबान से यही शब्द निकले. पत्नी की मौत का आभास पाते ही पति की […]

रांची: साथ जीने-मरने की कसम खानेवाले तो बहुत हैं, लेकिन बिरले ही उसे निभा पाते हैं. गृहस्थ जीवन के 63 वर्षो तक दुख-सुख की हर घड़ी में साथ निभानेवाले शरण दंपती की सोमवार को एक साथ अर्थी निकलते देख पड़ोसियों की जुबान से यही शब्द निकले.

पत्नी की मौत का आभास पाते ही पति की धड़कनें थम गयीं. धरती पर साथ-साथ रहनेवाले अब स्वर्ग लोक में भी अलग नहीं होंगे. ऐसा बिरले ही देखा जाता है कि शादी की वर्षगांठ के दिन ही पति-पत्नी का निधन हो जाये.

इटकी रोड (बजरा) के नेताजी सुभाष नगर के रहनेवाले विश्वनाथ शरण (80 वर्ष) की 16 जून को शादी की 63 वीं वर्षगांठ थी. पूरा परिवार घर पर ही था. इसी दिन उनकी पत्नी गोदावरी देवी उर्फ शशि बाला (76 वर्ष) की तबीयत अचानक खराब हो गयी.

दोपहर तीन बजे उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया जा रहा था कि रास्ते में ही उनका निधन हो गया. उनकी मौत की सूचना विश्वनाथ शरण को नहीं दी गयी. उन्हें बताया गया कि अस्पताल में इलाज चल रहा है, लेकिन रात होते ही विश्वनाथ शरण की बेचैनी बढ़ने लगी. शायद उन्हें पत्नी की मौत का आभास हो गया था. उनका भी निधन हो गया.

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