…..तसवीर फोल्डर में हैश्री अरविंद सोसाइटी, पुडुचेरी के अंतरराष्ट्रीय सचिव गोपाल भट्टाचार्य देश-दुनिया में घूमने वाले आध्यात्मिक संत हैं. श्री अरविंद व श्री मां के विचारों का प्रचार-प्रसार उनका काम है. श्री अरविंद आश्रम, डोरंडा रांची के एक कार्यक्रम में भाग लेने यहां आये गोपाल दा ने प्रभात खबर से युवाओं व देश के हालात पर बात की है. सवाल : आज की नयी पीढ़ी व युवाओं के बारे आप क्या सोचते हैं.जवाब : यह पीढ़ी दिग्भ्रमित है. पश्चिम की अंधाधुंध नकल कर रही है. यह पीढ़ी खुद के लिए इफरात पैसे चाहती है. चाहे जैसे हो. युवा देश की जड़ों से कट रहे हैं. मां-बाप सबको भूल रहे हैं. कुल मिला कर निजी हित, पद व पैसे के पीछे यह पीढ़ी भाग रही है. देश के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी बच्चे पास होने से पहले विजा तैयार रखते हैं. सब कुछ पा लेने की इच्छा है. वहीं शिक्षा पद्धति ने भी युवाओं को कंफ्यूज कर दिया है. पर लगता है कि ये हालात बदलेंगे. सवाल : युवा दिग्भ्रमित क्यों है. इसकी वजह आज का वातावरण तो नहीं.जवाब : यह सही है. युवा किससे गाइड हो रहे हैं, यह महत्वपूर्ण है. इसी से एक मानस बनता है. स्वतंत्रता पूर्व युवाओं को शिक्षकों व आध्यात्मिक लोगों ने गाइड किया है. वे तपे हुए लोग थे. आजादी के बाद आज युवाओं को राजनीति व राजनीतिज्ञ गाइड कर रहे हैं. नतीजा यह है कि राष्ट्र निर्माण के बदले युवा आपस में ही लड़ने लगे हैं. पार्टी आधारित राजनीति लोगों को लड़ा रही है. एक पार्टी के लोग दूसरे के सही काम व नीतियों का भी विरोध करते हैं. इससे समाज में एक तनाव है. अपवाद छोड़ दें, तो राजनीति से आध्यात्मिकता गायब होने से यह परेशानी हो रही है. वोट बैंक की राजनीति ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया है. बावजूद इसके श्री अरविंद की यह बात सच होकर रहेगी, कि भारत विश्व गुरु बनेगा. सवाल : क्या भारत सचमुच विश्व गुरु बनेगा.जवाब : बेशक. इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. सवाल : आपने शिक्षा पद्धति की बात की. इसमें क्या कमी है.जवाब : स्कूली या पूरे एजुकेशन सिस्टम में हम शिक्षा का उद्देश्य भूल गये हैं. शिक्षा का मतलब व्यक्ति की आत्मा का विकास है. यह इनसान को इनसान बनना सिखाता है. आज की शिक्षा मशीनरी या मिशनरी हो गयी है. मशीनरी यानी इकोनॉमिक ओरियेंटेड (धनोपार्जन मुखी). दोनों सिस्टम गलत है. जरूरत क्या है, यह हम नहीं देख रहे. शिक्षण कार्यों में आज ऐसे कई लोग हैं, जो इस पेशे के लिए अयोग्य हैं. इनका मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना है. ऐसी शिक्षा पद्धति बदलनी होगी. श्री मां ने कहा था कि रियल एजुकेशन में प्रतियोगिता की भावना कहीं नहीं होनी चाहिए. परिवार व मां-बाप को भी अपना रोल अदा करना होगा. पुडुचेरी में हम फ्री प्रोग्रेस मेथड अपनाते हैं. इसमें बच्चा अपने स्वभाव व क्षमता के अनुसार खुद सीखता है. आज वहां करीब 1200 बच्चे पढ़ रहे हैं. सवाल : आपने बच्चों के विकास में परिवार की भूमिका की बात की. इसका क्या अर्थ है.जवाब : जब माता-पिता ठीक नहीं होंगे, तो बच्चे कैसे ठीक होंगे. इन दिनों कामकाजी मां-बाप की संख्या तेजी से बढ़ रही है. वजह चाहे जो हो. ऐसे घरों में अक्सर मां-बाप के पास बच्चे के लिए समय नहीं होता. ऐसे में बच्चों में भी स्वार्थ की भावना विकसित होती है. माहौल बदलना है, तो अभिभावकों को आदर्श अभिभावक बनना होगा. बच्चों पर पढ़ाई का दबाव न बनायें. अभिभावक बच्चों को समय दें, ताकि बच्चे का घर से एक प्यार का रिश्ता हो. जरूरत पड़ने पर मां-बाप बच्चों की सहायता करें. यही परिवार का रोल है. सवाल : बाजारवाद के इस युग में युवा भी उपभोक्तावाद की चपेट में हैं. यह कैसे कम होगा.जवाब : भौतिक जीवन की जरूरी चीजें तो आयेंगी. पर विज्ञापन व प्रचार की एक सीमा होनी चाहिए. अब बच्चों को कुछ खास नूडल्स खाने के लिए प्रेरित किया जाता है. बाजारवाद का असर यहीं से शुरू होता है. खुद में सजगता व समझ आने पर ही यह सब कम होगा. सवाल : आज के यूथ नशा प्रेमी बन रहे हैं. वे तनावग्रस्त हैं. ऐसे युवाओं की संख्या बहुत अधिक है. कारण क्या है.जवाब : इसकी जड़ में नाखुशी है. परवरिश ठीक से न हो, तो अमीरी में भी नाखुशी रहती है. इससे बचने की सीख बचपन से मिलनी चाहिए. आप देखें आज सिगरेट पीना कम हो गया है. सिगरेट महंगी होने से बड़ी वजह है, सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान के खिलाफ बने कानून और इसको लेकर लोगों में आयी जागरूकता है. दूसरी ओर शराब का सेवन बढ़ने का दोष सरकार को जाता है. सरकार गली-गली में शराब दुकान के लाइसेंस जारी करने लगी है. एक बार कोलकाता में लंबी लाइन देख कर मैं चौंका था. पता चला कि यह लाइन शराब खरीदने के लिए लगी थी. दोष सिर्फ सरकार का ही नहीं है. सामाजिक जीवन भी बदलाव मांगता है. दूसरी ओर तनाव के कई कारण हैं. समाज में हर कहीं गलत लोग सही जगहों पर चैन से हैं. इससे यूथ ही नहीं, सबका विश्वास सिस्टम से उठ गया है. हजारों दृष्टांत हैं. आज अपराधी समाज में इज्जत पा रहे हैं. युवाओं को भी इससे प्रेरणा मिलती है. सिस्टम के करप्ट होने से ऐसा हो रहा है. इसका समाधान आसान नहीं है. फिर वही चेतना विकास की बात आती है. सवाल : एक बार आपने कहा था कि लोग रबड़ हो गये हैं. उनमें स्थायी परिवर्तन नहीं होता. स्थायी परिवर्तन का रास्ता क्या है.जवाब : जो अच्छे लोग हैं, वे बुरे तो नहीं होंगे. शेष लोगों को वातावरण बदलेगा. वातावरण बदलने के लिए मनुष्य की चेतना बदलनी होगी. चेतना का विकास व्यापार व राजनीति से अलग लोग ही कर सकते हैं. अध्यात्म, समाज सेवा व पत्रकारिता से जुड़े तथा अन्य लोग.
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भारत के विश्व गुरु बनने की प्रकिया शुरू : गोपाल भट्टाचार्य
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