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नतीजों में छिपे हैं दलों के लिए सबक

सेंट्रल डेस्कमहाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों और रु झानों से अब यह साफ हो चुका है कि लोकसभा चुनाव से पहले देश में जो मोदी लहर उठी थी, वह अब भी बरकरार है. दोनों ही राज्यों में भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. यह अलग बात है […]

सेंट्रल डेस्कमहाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों और रु झानों से अब यह साफ हो चुका है कि लोकसभा चुनाव से पहले देश में जो मोदी लहर उठी थी, वह अब भी बरकरार है. दोनों ही राज्यों में भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. यह अलग बात है कि महाराष्ट्र में भाजपा को सरकार बनाने के लिए किसी और पार्टी का दामन थामना पड़ेगा. कुल मिला कर यह चुनाव हर सियासी पार्टी के लिए कुछ न कुछ सबक जरूर छोड़ गया है. यहां इस बात की पड़ताल करने की कोशिश की गयी है कि आखिर इन नतीजों से पार्टियों के लिए क्या संदेश निकल कर आया…महाराष्ट्रमहाराष्ट्र के चुनावी नतीजे काफी अहम हैं, क्योंकि वहां चुनाव से ठीक पहले दो पुराने गंठबंधन अचानक टूट गये. इसके बाद वहां की सभी बड़ी पार्टियों ने अपना-अपना दमखम आजमाया. भाजपा महाराष्ट्र में भाजपा अपने दम पर शतक जड़ कर प्रदेश में अपने को काफी मजबूत कर लिया है. पार्टी की कामयाबी ने कार्यकर्ताओं में भी जोश पैदा कर दिया है. भाजपा ने शिवसेना से गंठबंधन तोड़ कर जो रिस्क लिया, उसका उसे फायदा ही मिला. पार्टी के लिए सबक यही है कि उसे अपने नये पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पर भरोसा बरकरार रखना होगा. भविष्य में अन्य राज्यों के चुनावों में भी पार्टी को शाह की रणनीति को ही तरजीह देनी होगी. साथ ही अगर कुछ ज्यादा हासिल करना है, तो ऐसे ही जोखिम उठाने को भी तैयार रहना होगा.शिवसेनाशिवसेना के लिए सबक यही है कि सियासत में अपनी जिद छोड़ कर लहरें पढ़ना और फिर उसी के हिसाब से चलना कहीं ज्यादा फायदेमंद होता है. यह अलग बात है कि भाजपा से अलग होने के बाद भी शिवसेना का आधार कमजोर नहीं हुआ. इसके बावजूद, अति महत्वाकांक्षा पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है.कांग्रेस कांग्रेस पर प्रदेश में कुशासन और घोटालों के आरोप लगते रहे, जबकि पार्टी ने अपना पूरा ध्यान केवल नेतृत्व बदलने तक ही सीमित रखा. कांग्रेस के लिए सबक लोकसभा चुनाव जैसा ही है. जनता विकास और सुशासन चाहती है. केवल आरोपों से पल्ला झाड़ लेने भर से जनता का भरोसा जीतना नामुमकिन है.एनसीपी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के लिए सबक यही है कि उसे जनता के बीच अपनी छवि और बेहतर बनानी होगी. केवल चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस जैसी पार्टी से अलग होना कोई ज्यादा फायदेमंद सौदा नहीं है. हालांकि प्रदेश में उसकी जमीन खिसकी नहीं है.मनसेमनसे और राज ठाकरे के लिए सबसे बड़ा सबक यही है कि मराठी मानुष के पैरोकार बनने के क्र म में नफरत फैलाने वाली भाषा का इस्तेमाल कतई जरूरी नहीं है. बदलते दौर में जनता को लंबे वक्त तक भरमा कर नहीं रखा जा सकता है.हरियाणाहरियाणा में भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने जा रही है. इस प्रदेश के भी चुनावी नतीजों में सियासी पार्टियों के लिए कुछ सबक हैं.भाजपाभले ही प्रदेश में भाजपा में सीएम पद का कोई दमदार चेहरा नहीं था, फिर भी पार्टी ने मोदी लहर के सहारे सत्ता हासिल कर ली है. संदेश साफ है कि जनता विकास के नाम पर भाजपा पर भरोसा जता रही है. उसे आनेवाले वक्त में जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना ही होगा.कांग्रेससत्ता से बेदखल कांग्रेस के लिए सबक यही है कि उसे आनेवाले चुनावों में भी ईमानदारी के पेपर में जनता से और अच्छे मार्क्स पाने होंगे. इसके बिना अपने वाले दौर में उसके लिए और भी ज्यादा मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.आइएनएलडीराष्ट्रीलय लोक दल पार्टी ने 20 के करीब आंकड़े लाकर अपनी जमीन तो बरकरार रखी, पर उसे उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिली. उसके लिए सबक यही है कि विस्तार करने से पहले यह सोचना ज्यादा अहम है कि जमीन मजबूत कैसे की जाये. ये पब्लिक सब जानती हैजनता बहुत समझदार है. वह कब किसकों सिर-आंखों पर बिठा ले और कब किसको धूल चटा दे….. कोई नहीं जानता. अब झारखंड और जम्मू-कश्मीर के अलावा संभवत: दिल्ली में भी चुनाव होंगे. ऐसे में बड़ी सियासी पार्टियों को सबक लेकर अपनी चाल व चेहरे पर पैनी नजर रखनी होगी, नहीं तो ये जो पब्लिक है…सब जानती है.

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