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भुखमरी और दम घुटने जैसी हो सकती है समस्या

‘मार्स वन’ अभियान पर एमआइटी शोधकर्ताओं को संदेह ‘मार्स वन’ के तहत मंगल पर मानवीय बस्ती बनाने की है योजनामंगल पर जानेवाले 705 आवेदनकर्ताओं को किया गया है शॉर्टलिस्ट. इनमें 44 भारतीय भी एजेंसियां, वाशिंगटनमेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं का विश्लेषण कहता है कि वर्ष 2025 तक मंगल ग्रह पर मानवीय बस्ती बनाने की […]

‘मार्स वन’ अभियान पर एमआइटी शोधकर्ताओं को संदेह ‘मार्स वन’ के तहत मंगल पर मानवीय बस्ती बनाने की है योजनामंगल पर जानेवाले 705 आवेदनकर्ताओं को किया गया है शॉर्टलिस्ट. इनमें 44 भारतीय भी एजेंसियां, वाशिंगटनमेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं का विश्लेषण कहता है कि वर्ष 2025 तक मंगल ग्रह पर मानवीय बस्ती बनाने की मार्स वन योजना के फलीभूत होने में दम घुटने और भुखमरी जैसी कुछ गंभीर समस्याएं आड़े आ सकती हैं. वर्ष 2012 में, एक गैरलाभकारी डच संगठन मार्स वन ने चार लोगों को मंगल की एकमार्गीय यात्रा पर भेजने की महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी. इस घोषणा में कहा गया था कि ये लोग अपना बाकी का जीवन वहां पहली स्थायी मानवीय बस्ती बसाने में बितायेंगे. मंगल की ओर जाने वाली यात्रा के लिए अब तक 705 आवेदनकर्ताआंे को शॉर्टलिस्ट किया गया है, जिनमें 44 भारतीय भी शामिल हैं. तकनीकी संभाव्यता पर दोबारा गौर करेंमार्स वन द्वारा पूरे अभियान के मौजूदा तकनीकों पर आधारित होने का दावा किये जाने के बाद मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के इंजीनियरों ने कहा है कि इस परियोजना को अभियान की तकनीकी संभाव्यता पर एक बार दोबारा गौर करना चाहिए. उन्होंने कहा कि इंसानों को मंगल पर जिंदा रखने के लिए नयी तकनीकों की जरूरत होगी. शोधकर्ताओं ने पाया कि मंगल पर अंतरिक्षयात्री का जीवन लंबा चलाने के लिए फलियां, मूंगफली, आलू और चावल जैसी फसलों को पर्याप्त मात्रा में उगाया जाना जरूरी होगा. इन्हें उगाने के लिए लगभग 200 वर्ग मीटर क्षेत्र चाहिए होगा, जबकि मार्स वन का आकलन इसे महज 50 वर्ग मीटर बताता है. यदि मार्स वन की योजना के अनुरूप, सारा भोजन वहां उगाई जानेवाली फसलों से ही लिया जायेगा, तो वनस्पति के कारण ऑक्सीजन की मात्रा असुरक्षित स्तर तक पहुंच जायेगी. इससे कई प्रक्रियाएं शुरू हो जायेंगी, जिनकी वजह से इंसान का दम घुटने लग सकता है. इस स्थिति से बचने के लिए अतिरिक्त ऑक्सीजन को हटाने की व्यवस्था होनी चाहिए. अंतरिक्ष में इस्तेमाल की जा सकने वाली इस तरह की तकनीक अभी तक विकसित नहीं हुई है. इसी तरह मार्स फोनिक्स लैंडर ने मंगल की सतह पर बर्फ के सबूत दिये हैं. इससे स्पष्ट होता है कि भविष्य में वहां रहने वालों को पीने का पानी जुटाने के लिए बर्फ पिघलानी होगी. लेकिन एमआइटी का विश्लेषण कहता है कि मिट्टी से पानी निकाल सकने के लिए बनीं तकनीकें अंतरिक्ष में इस्तेमाल के अनुरूप नहीं हैं. कोट हम यह नहीं कह रहे कि मार्स वन संभव ही नहीं है. लेकिन हमें लगता है कि यह उन अनुमानों के आधार पर वाकई संभव नहीं है, जो अभी उन्होंने लगाये हैं. वे दरअसल ऐसी तकनीकों की ओर इशारा कर रहे हैं, जिनमें निवेश से अभियान को एक व्यवहारिक दिशा में ले जाने में मदद मिले. ओलिवियर डे वेक, एमआइटी के प्रोफेसर

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