रांची: राज्य गठन के 12 वर्ष हो गये, पर आज भी पलामू, दुमका जैसे जिलों में बिजली आपूर्ति बिहार के जरिये होती है. पलामू में उत्तरप्रदेश से भी बिजली आती है. कारण साफ है कि झारखंड का अपना ट्रांसमिशन सिस्टम दुरुस्त नहीं है.
टीवीएनएल से भी उत्पादित बिजली पहले बिहारशरीफ जाती है. उसके बाद ओपन एक्सेस सिस्टम के जरिए झारखंड को मिलती है. हाई वोल्टेज क्षमता के यहां ग्रिड नहीं हैं. भविष्य में बिजली की जरूरतों को देखते हुए राज्य सरकार ने वृहत स्तर पर ट्रांसमिशन नेटवर्क बिछाने की योजना बनायी है. 1400 करोड़ की लागत से बननेवाले ट्रांसमिशन नेटवर्क के लिए पीजीसीआइएल को कंसल्टेंट नियुक्त किया गया है.
वितरण नेटवर्क पुराना
रांची समेत अन्य जिलों में वितरण नेटवर्क 40 वर्ष पुराना है. कई इलाकों में जजर्र तार और खंभे लगे हैं. क्षमता के अनुरूप ट्रांसफारमर नहीं हैं. गरमी में ट्रांसफारमर ज्यादा जलते हैं. बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि इस समय 200 से अधिक ट्रांसफारमर जले हुए हैं. जिन इलाकों में ट्रांसफारमर जलते हैं, वहां तीन से चार दिनों तक बिजली गुल रहती है. इसके अलावा गरमी में बिजली की मांग बढ़ जाती है. अचानक लोड बढ़ने से भी कहीं तार टूटता है, तो कहीं ट्रांसफारमर जलता है. रांची में वर्ष 2001 में ही अंडरग्राउंड केबलिंग की योजना बनायी गयी थी.
हरमू, सरकुलर रोड में अंडरग्राउंड केबलिंग की गयी, पर बाकी इलाकों में यह योजना धरी की धरी रह गयी. इसी तरह अन्य जिलों में भी ट्रांसमिशन नेटवर्क खस्ताहाल है. हाल ही में नामकुम-हटिया ट्रांसमिशन लाइन फेल होने की वजह से पीटीपीएस व टीवीएनएल दोनों से उत्पादन ठप हो गया था. बारिश के मौसम अक्सर कभी 33 केवी लाइन फेल तो कभी 11 केवी लाइन फेल की शिकायतें आती रहती है. इसकी वजह से घंटों बिजली बाधित रहती है. तेज बारिश होते ही बिजली काट दी जाती है, कारण बताया जाता है कि लाइन फेल होने का खतरा है.
क्या है उत्पादन की स्थिति
राज्य में जेएसइबी की अपनी दो उत्पादन इकाई हैं- पीटीपीएस व सिकिदिरी. सिकिदिरी हाइडल से केवल बारिश के मौसम में उत्पादन होता है. वहीं पीटीपीएस की क्षमता 840 मेगावाट की है. यहां 10 यूनिट है, पर चालू दो या तीन ही रहते हैं. उत्पादन औसतन 100 मेगावाट ही हो पाता है. राज्य सरकार की एक इकाई टीवीएनएल है. ललपिनयां स्थित इस प्लांट की क्षमता 420 मेगावाट है. पर आये दिन यहां एक न एक यूनिट ठप होने की शिकायत रहती है, जिसकी वजह से यहां से औसतन 200 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो पाता है. झारखंड अपना उत्पादन करके 500 मेगावाट के आसपास बिजली दे पाती है. जबकि मांग 1500 मेगावाट तक की है. जिसे डीवीसी, एनटीपीसी, एनएचपीसी, टाटा पावर, आधुनिक पावर व जयपुर विद्युत निगम लिमिटेड से खरीद कर आपूर्ति की जाती है.
भविष्य में मांग बढ़ेगी
भविष्य में बिजली की मांग बढ़ेगी. ऊर्जा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 तक बिजली की मांग 4660 मेगावाट होने का अनुमान है.हालांकि इसके लिए जेएसइबी निजी कंपनियों के आने वाले पावर प्लांट पर आश्रित है. जेएसइबी के अपने दो पावर प्लांट 1360 मेगावाट के प्रस्तावित हैं. एक पतरातू में व दूसरा भवनाथपुर में लगना है.
खरीद पर 17302 करोड़ खर्च
राज्य में बिजली आपूर्ति दुरुस्त करने के नाम पर अब तक 17302 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी गयी है. इतनी राशि में 3500 मेगावाट उत्पादन क्षमता का पावर प्लांट लगाया जा सकता है. सरकार ने आधारभूत संरचना से जुड़ी विभिन्न योजनाओं पर 2985.09 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं. बिजली खरीद पर किया गया खर्च आधारभूत संरचना निर्माण पर किये गये खर्च के 5.79 गुना ज्यादा है.
राज्य सरकार ने बिजली की स्थिति में सुधार के लिए 10 वीं(2002-07) पंचवर्षीय योजना में बिजली में सुधार के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं पर 814 करोड़ और 11 वीं(2007-12) में 5634.62 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य था. लेकिन संरचना निर्माण के लिए इन 10 वर्षों में कुल 6448.62 करोड़ रुपये खर्च के लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 2985.09 करोड़ रुपये ही खर्च किये जा सके .
सरकार बिजली की स्थिति में सुधार के लिए 12 वीं पंचवर्षीय(2012-17) योजना अवधि में आधारभूर संरचना निर्माण पर 8090.86 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनायी है. राज्य में बिजली की मांग को पूरा करने के लिए इन 10 वर्षों में 17302 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं.
राज्य में बिजली की मांग और उत्पादन में भारी अंतर होने की वजह से हर साल बिजली खरीद पर होनेवाले खर्च में वृद्धि होती रही. वर्ष 2002-03 में बिजली खरीद पर 872 करोड़ रुपये खर्च किये गये थे. वर्ष 2011 में बिजली खरीद पर 2691 करोड़ रुपये खर्च किये गये. यानी इन 10 वर्षों में बिजली खरीद पर होनेवाले खर्च में तीन गुना से ज्यादा की वृद्धि हुई.