रांची : रोजी-रोजगार की समस्या लोगों को कहां से कहां पहुंचा देती है. कभी-कभी यह कल्पना से परे होता है. नैनीताल से ढोलक बेचने जब लोग झारखंड पहुंच जायें, तो ऐसा सोचना पड़ता है. इन दिनों नैनीताल के हल्द्वानी से कुछ लोग झारखंड पहुंचे हैं, अपने साथ कई हजार ढोलक लेकर. दरअसल ये ढोलक का ढांचा है, जिस पर पहले मिट्टी व फिर पॉलिश लगाने के बाद बकरे के चमड़े का थाप लगाया जाता है. आकार के लिहाज से डेढ़ सौ रुपये से लेकर पांच सौ रुपये तक के ढोलक हल्दानी से आये सबर अली, निजाम व तौफिक बना रहे हैं. निर्मला स्कूल, सामलौंग के पास व शहर की अन्य जगहों पर नैनीताल जिले के ये लोग ढोलक के साथ-साथ नाल भी बना रहे हैं.
नाल में चमड़े का कसाव नट-बोल्ट से किया जाता है. वहीं ढोलक में रस्सी से. सबर व निजाम ने बताया कि हर वर्ष दुर्गापूजा के वक्त ये लोग झारखंड आते हैं. ट्रकों में भर कर करीब 10 हजार ढोलक का ढांचा झारखंड पहुंचता है. ढांचा चंदन छोड़ किसी भी लकड़ी का हो सकता है; आम, शीशम, कटहल, नीम आदि. इस ढांचे से रांची में ही ढोलक तैयार किया जाता है. फिर इसे रांची सहित जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद, हजारीबाग व डाल्टनगंज जैसे शहरों में बेचा जाता है. दीवाली तक सभी ढोलक बिक जाते हैं. दुर्गा पूजा, काली पूजा व दीवाली सहित अन्य पर्व-त्योहारों में इनका इस्तेमाल होता है.
सबर, निजाम व तौफिक ने बताया कि नैनिताल जिले के कई इलाके से लोग देश भर में ढोलक बेचते हैं. नैनीताल के अलावा दिल्ली व चंडीगढ़ से भी लोगों का जत्था देश के अलग-अलग हिस्सों में ढोलक लेकर पहुंचता है. सबर ने बताया कि नैनीताल से अलग-अलग ट्रकों में दो-दो लोग ढोलक का ढांचा लेकर झारखंड आते हैं. इस पर एक ग्रुप को करीब 12 हजार रुपये किराया लगता है. इन ढोलक बनानेवालों की मानें, तो दो माह बाहर रह कर इन्हें करीब 20 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है.