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शिक्षा : केंद्रीय योजनाओं की स्थिति खराब (संपादित)

बच्चों को समय पर नहीं मिलती किताबें व पोशाक बीपीएल बच्चों का निजी स्कूलों में पढ़ना हुआ सपना मॉडल स्कूलों में पढ़ने के लिए नहीं मिलते बच्चे विद्यालयों को अपग्रेड करने तक सिमटा आरएमएसए संवाददाता रांची : राज्य में मानव संसाधन विकास विभाग के अंतर्गत संचालित केंद्र प्रायोजित योजनाओं की स्थिति खराब है. सर्व शिक्षा […]

बच्चों को समय पर नहीं मिलती किताबें व पोशाक बीपीएल बच्चों का निजी स्कूलों में पढ़ना हुआ सपना मॉडल स्कूलों में पढ़ने के लिए नहीं मिलते बच्चे विद्यालयों को अपग्रेड करने तक सिमटा आरएमएसए संवाददाता रांची : राज्य में मानव संसाधन विकास विभाग के अंतर्गत संचालित केंद्र प्रायोजित योजनाओं की स्थिति खराब है. सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान समेत केंद्र प्रायोजित योजनाओं की राज्य में स्थिति काफी खराब है. सर्व शिक्षा अभियान के तहत कक्षा एक से आठ तक के बच्चों की शिक्षा की कई योजनाएं चलायी जा रही हंै. इसमें बच्चों को नि:शुल्क किताब व पोशाक देने का प्रावधान है. इसके लिए 65 फीसदी राशि भारत सरकार देती है. करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद झारखंड में बच्चों को समय पर न तो किताबें मिलती है और न ही पोशाक. वर्ष 2014-15 के शैक्षणिक सत्र के चार माह गुजरने के बाद भी बच्चों को संसाधन उपलब्ध नहीं कराये गये हैं. किताब प्रकाशन के लिए टेंडर में ही लगभग छह माह का समय गुजर गया. पोशाक वितरण की अभी तक प्रक्रिया ही शुरू नहीं हुई है. इससे पहले भी बच्चों को समय पर किताब व पोशाक नहीं मिली है. वर्ष 2012-13 में बच्चों को सितंबर में किताबें मिली थीं. 2012 का पोशाक वर्ष 2013 फरवरी में दिया गया. इस कारण केंद्र सरकार ने वर्ष 2013 में पोशाक के लिए राशि नहीं दी थी. राज्य में शिक्षा विभाग के अधिकारी बच्चों को समय पर किताब व पोशाक देने से अधिक ध्यान इसके टेंडर पर लगाते हैं. टेंडर की शर्तों में बिना बदलाव किये झारखंड में किताबों का टेंडर फाइनल नहीं होता. वर्ष 2013-14 में किताब के टेंडर में गड़बड़ी के कारण केंद्र सरकार ने किताब की राशि भुगतान पर रोक लगा रखी है. इसकी जांच चल रही है. सर्व शिक्षा अभियान के तहत होनेवाले सिविल वर्क की राशि जिला शिक्षा अधीक्षक समय पर हिसाब नहीं देते. सर्व शिक्षा अभियान के लगभग 320 करोड़ रुपये की उपयोगिता अब तक नहीं दी गयी है. बीपीएल बच्चों का शुल्क तय नहीं राज्य में नि:शुल्क शिक्षा के अधिकार अधिनियम की स्थिति भी बेहाल है. अधिनियम के प्रावधान के अनुरूप मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 फीसदी बीपीएल बच्चों का नामांकन होना है. इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार को शुल्क वहन करना है. राज्य सरकार की ओर से अब तक यह तय नहीं किया गया है कि बीपीएल बच्चे के लिए सरकार निजी स्कूल को कितनी फीस देगी. शुल्क तय नहीं होने के कारण केंद्र सरकार ने इस मद में राशि देने से इनकार कर दिया है. केंद्र का कहना है कि राज्य सरकार पहले यह तय करे कि एक बच्चे के लिए कितना शुल्क दिया जाना है. मॉडल स्कूल का भवन नहीं केंद्रीय विद्यालय के तर्ज पर केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश में मॉडल स्कूल खोलने की योजना है. इसके तहत झारखंड में शैक्षणिक रूप से पिछड़े 203 प्रखंड विद्यालय खोला जाना है. झारखंड में तीन चरणों में क्रमश: 40, 49 व 75 विद्यालय खोलने की स्वीकृति भारत सरकार ने दी है. प्रथम चरण में वर्ष 2011-12 में 40 स्कूल खोलने की स्वीकृति दी गयी थी, लेकिन अब तक इसका भवन निर्माण नहीं बना. भवन के लिए राशि भारत सरकार देती है. प्रथम चरण के विद्यालय का निर्माण नहीं होने के कारण द्वितीय व तृतीय चरणों के विद्यालयों के लिए अब तक राशि नहीं मिली है. विद्यालयों में अंगरेजी माध्यम से पढ़ाई होती है, पर शिक्षक नहीं हैं. एक विद्यालय में कॉन्ट्रैक्ट पर तीन शिक्षकों की नियुक्ति हुई है. सभी विद्यालयों में तीन विषयों के भी शिक्षक नहीं हैं. शिक्षक विहीन 1232 अपग्रेड उविराज्य में राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत अब तक 1232 मध्य विद्यालयों को उच्च विद्यालय में अपग्रेड किया गया है. अपग्रेड किये गये उच्च विद्यालयों में अब तक शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. प्रथम चरण में 2007-08 में 338 विद्यालय अपग्रेड किये गये थे. इन विद्यालयों में छह वर्ष से शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है. राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान राज्य में विद्यालयों को अपग्रेड करने तक सिमट कर रह गया है. अपग्रेड उच्च विद्यालयों में संसाधन का भी अभाव है. राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के संचालन के लिए अब तक पदों का भी सृजन नहीं किया गया है. नोडल पदाधिकारी का पद प्रभार के भरोसे चल रहा है. राज्य की ओर से योजना का सही तरीके से संचालन नहीं किये जाने के कारण वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार ने इसके बजट में भारी कटौती कर दी. इस वर्ष राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत मात्र 34 करोड़ रुपये दिये गये. कागज पर ही मध्याह्न भोजन प्राधिकार केंद्र के निर्देश पर राज्य सरकार ने स्कूलों में मध्याह्न भोजन संचालन के लिए मध्याह्न भोजन प्राधिकार का गठन किया. प्राधिकार का गठन कागजों पर ही रह गया है. राज्य मुख्यालय से लेकर प्रखंड स्तर तक कहीं भी इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी. मध्याह्न भोजन निदेशालय के लिए राज्य से प्रखंड स्तर तक कुल 358 लोगों की नियुक्ति होनी है. मुख्यालय स्तर पर निदेशक की नियुक्ति होगी. निदेशक पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा या राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की नियुक्ति की जायेगी, जबकि सभी जिलों में प्रोजेक्ट ऑफिसर की नियुक्ति का प्रावधान है.

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