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अस्तित्व के संकट से जूझती आदिवासी भाषाएं

रांची : विश्व भर में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की स्थिति काफी खराब है. लगभग दो साल पहले अंडमान निकोबार के बोआ आदिवासी समूह की अंतिम सदस्य (85 वर्षीय महिला) की मौत हो गयी. उनके साथ ही उस समुदाय की भाषा भी हमेशा के लिए खत्म गयी. वह भाषा हजारों वर्ष पुरानी थी. झारखंड में […]

रांची : विश्व भर में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की स्थिति काफी खराब है. लगभग दो साल पहले अंडमान निकोबार के बोआ आदिवासी समूह की अंतिम सदस्य (85 वर्षीय महिला) की मौत हो गयी.

उनके साथ ही उस समुदाय की भाषा भी हमेशा के लिए खत्म गयी. वह भाषा हजारों वर्ष पुरानी थी. झारखंड में भी जनजातीय भाषाएं अस्तित्व और पहचान के संकट से जूझ रही है.

1980-81 में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई के लिए रांची में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना की गयी. इसका उद्देश्य था कि इसके माध्यम से इन भाषाओं का संरक्षण और विकास किया जा सके. विडंबना यह है कि स्थापना काल से ही विभाग की उपेक्षा होती रही है. नतीजा यह है कि विभाग में शिक्षण का काम बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है.

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