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विशेष बातचीत में बोले चेयरमैन- कोल इंडिया मुख्यालय झारखंड लाने से राज्य को फायदा नहीं, राजनीतिक कारणों से होती है मांग

कोल इंडिया के चेयरमैन हैं 1991 बैच के आइएएस अफसर प्रमोद अग्रवाल. इसी साल पहली फरवरी को ही उन्होंने कोल इंडिया के चेयरमैन का प्रभार लिया है. मध्य प्रदेश कैडर के अधिकारी श्री अग्रवाल झारखंड के ही रहनेवाले हैं. रामगढ़ उनका घर है. वहीं पले-बढ़े हैं. इस कारण कोयला और झारखंड के रिश्ते को बखूबी […]

कोल इंडिया के चेयरमैन हैं 1991 बैच के आइएएस अफसर प्रमोद अग्रवाल. इसी साल पहली फरवरी को ही उन्होंने कोल इंडिया के चेयरमैन का प्रभार लिया है. मध्य प्रदेश कैडर के अधिकारी श्री अग्रवाल झारखंड के ही रहनेवाले हैं. रामगढ़ उनका घर है. वहीं पले-बढ़े हैं. इस कारण कोयला और झारखंड के रिश्ते को बखूबी समझते हैं. कोल इंडिया का चेयरमैन बनने के बाद पहली बार श्री अग्रवाल रांची आये हैं. प्रभात खबर के प्रमुख संवाददाता विवेक चंद्र ने उनसे देश, राज्य, कोल इंडिया, कोयला, सौर ऊर्जा समेत कई मुद्दों पर विस्तार से बातचीत की.
Qकोल इंडिया चेयरमैन के रूप में आपके सामने क्या चुनौतियां हैं?
कई चुनौतियां हैं. प्रोडक्शन बढ़ाना. कोयला का बाजार बेहतर करना. कोयले के अलावा अब तक कोल इंडिया सोलर पावर, क्लीन कोल टेक्नोलॉजी, थर्मल पावर स्टेशन और फर्टिलाइजर जैसे क्षेत्रों में भी काम कर रहा है. फिलहाल सबसे महत्वपूर्ण कार्य प्रोडक्शन बढ़ाना है. देश में करीब 960 मिलियन टन कोयले की मांग है, लेकिन उत्पादन काफी कम है. पिछले वर्ष हमने 607 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया था. इस साल 640 मिलियन टन का लक्ष्य रखा है. कोशिश उससे आगे निकलने की होगी.
Qदेश में कोयला उत्पादन का बड़ा हिस्सा झारखंड का है. कोल इंडिया अपना मुख्यालय रांची क्यों नहीं लाता?
कोल इंडिया का मुख्यालय स्थानांतरित करने की मांग पूरी तरह राजनीतिक है. इसका फैसला भी राजनीतिक कारणों से ही किया जायेगा. निजी रूप से मैं नहीं समझता हूं कि कोल इंडिया का मुख्यालय झारखंड में होने या नहीं होने से राज्य को कोई फायदा या नुकसान है.
परंपरागत रूप से कोल इंडिया का मुख्यालय पश्चिम बंगाल में है. वहां करीब 700 लोग काम करते हैं. उनमें से भी अधिकतर झारखंड के ही हैं. कंपनियां इनकम टैक्स केंद्र सरकार को जमा करती हैं. सीसीएल का मुख्यालय रांची में ही है. ऐसे में कोल इंडिया में कार्यरत 700 लोगों के रोजगार को छोड़ कर मुझे तो मुख्यालय कहीं भी होने से कोई फर्क पड़ता नहीं मालूम होता है.
Qकेंद्र सरकार ने कोल इंडिया का शेयर बेचने का फैसला किया है. यह ठीक है?
देखिये, कोल इंडिया लिस्टेड कंपनी है. भारत सरकार इसका मालिक है. अंतिम फैसला उनका ही होगा. लेकिन, यह समझना कि शेयर बेचने के बाद कोल इंडिया पर सरकार का मालिकाना हक नहीं रहेगा, बिल्कुल गलत है. कंपनी का मालिक होने के लिए 51 प्रतिशत शेयर जरूरी है. भारत सरकार अपने कुछ शेयर बेचती है, तो भी उसका कंट्रोल बना रहेगा. ज्यादा लोगों के पास शेयर होने से कंपनियां बेहतर परिणाम देने की कोशिश करेंगी. यह कोल इंडिया के हक में होगा.
Qकोयला खनन के क्षेत्र में निजी कंपनियां भी आ रही हैं. इसका क्या असर पड़ेगा?
निजी कंपनियों के आने से प्रतियोगिता बढ़ेगी. कोल इंडिया की इकाइयां भी निजी कंपनियों से प्रतियोगिता करते हुए बेहतर करेंगी.
Qआस्ट्रेलिया बढ़िया कोयला ट्रांसपोर्टेशन कर भारत लाने के बाद भी देश में निकलनेवाले कोयले से सस्ता बेचता है. ऐसा क्यों?
कोयले की गुणवत्ता प्रकृति प्रदत्त है. आस्ट्रेलिया समुद्र के रास्ते भारत में कोयला भेजता है. शिपिंग सस्ता होने की वजह से उनका ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट कम पड़ता है. भारत में केवल कोस्टल एरिया में ही कोयला सस्ता है. कोस्टल से बाहर निकलने के बाद वह भी महंगा हो जाता है.
Qक्या भविष्य के लिए देश में पर्याप्त कोयला मौजूद है?
हां बिल्कुल है. इतना है कि समझ लीजिये देश का कोयला कभी खत्म नहीं होगा. वैसे भी अब हम तेजी से सोलर एनर्जी की ओर जा रहे हैं. अभी उत्पादन बढ़ाना ही कोल इंडिया की प्राथमिकता है. देश में कोयले की मांग को यहां से निकलने वाले कोयले से ही पूरा करना है. हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं.
Prabhat Khabar Digital Desk
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