फोटो सुनील क्लारेट इंस्टीट्यूट का ‘अधिकार मूलक दृष्टिकोण द्वारा आदिवासियों व हाशिये पर पड़े लोगों का सशक्तीकरण’ विषयक सेमिनारसंवाददाता रांची मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि मानवाधिकारों को जमीनी स्तर पर लागू कराने के लिए जरूरी है कि हम दूसरे के अधिकारों का भी सम्मान करें. बहुसंख्यक वर्ग जब अपने हक और अधिकार की बात सोचता है, तो कई बार आदिवासियों, दलितों और अन्य कमजोर तबकों के अधिकारों को नजरअंदाज करता है. संविधान के अनुच्छेद 19 की धारा एक के अनुसार कोई भी नागरिक देश के किसी भी हिस्से में जा सकता है, वहां नौकरी कर सकता है और निवास कर सकता है. वहीं इसी अनुच्छेद की धारा पांच के अनुसार यह आदिवासी इलाकों में लागू नहीं है. वे बुधवार को क्लारेट इंस्टीट्यूट फॉर इंप्लायमेंट ट्रेनिंग द्वारा ‘अधिकार मूलक दृष्टिकोण द्वारा आदिवासियों व हाशिये पर पड़े लोगों का सशक्तीकरण’ विषय पर आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे.उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को गरिमामय जीवन, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार है. सरकार का दायित्व है कि मानवाधिकारों का सम्मान करे, उन्हें सुरक्षा प्रदान करे और लागू करे. लेकिन आदिवासी, दलित, हाशिये पर पड़े लोग और महिलाओं को अपने ही देश में दोयम दर्जे का समझा जाता है. उनके प्रति नजरिये में बदलाव जरूरी है. सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जिम्मेवारी है कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को मानवाधिकारों की जानकारी दें. उन्हें लागू कराने और संरक्षण दिलाने के लिए कार्य करे.झारखंड में बड़े पैमाने पर उल्लंघन उन्होंने कहा कि झारखंड मंे मानवाधिकारों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर हुआ है. पिछले एक दशक में पुलिस व सुरक्षा बलों ने 600 निदार्ेष व्यक्तियों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या की है. छह हजार व्यक्तियों पर नक्सली होने के आरोप में फर्जी मुकदमा लाद कर जेलों में डाला गया है. हजारों निर्दोषों को यातना दी गयी है.
दूसरे के अधिकारों का भी सम्म्मान करें : ग्लैडसन
फोटो सुनील क्लारेट इंस्टीट्यूट का ‘अधिकार मूलक दृष्टिकोण द्वारा आदिवासियों व हाशिये पर पड़े लोगों का सशक्तीकरण’ विषयक सेमिनारसंवाददाता रांची मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि मानवाधिकारों को जमीनी स्तर पर लागू कराने के लिए जरूरी है कि हम दूसरे के अधिकारों का भी सम्मान करें. बहुसंख्यक वर्ग जब अपने हक और अधिकार की […]
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