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झारखंड की राजनीति का फ्लैश बैक : स्वतंत्रता सेनानी से मंत्री बने मो सईद ने पांच बार बदला था दल

आनंद जायसवाल दुमका : स्वतंत्रता सेनानी मो सईद अहमद की स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी रही थी. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेकर अंग्रेजों के खिलाफ नारे बुलंद करते वक्त वह जब गिरफ्तार हुए थे, तब भागलपुर कॉलेजिएट के छात्र थे. अंग्रेजों ने वजीफा भी बंद कर दिया. अर्थाभाव में पढ़ाई छूट गयी […]

आनंद जायसवाल
दुमका : स्वतंत्रता सेनानी मो सईद अहमद की स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी रही थी. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेकर अंग्रेजों के खिलाफ नारे बुलंद करते वक्त वह जब गिरफ्तार हुए थे, तब भागलपुर कॉलेजिएट के छात्र थे. अंग्रेजों ने वजीफा भी बंद कर दिया. अर्थाभाव में पढ़ाई छूट गयी थी.
पिता शेख जलालुद्दीन जो लोचनी पथरगामा के रहने वाले थे, पर दबाव बनाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने मालगुजारी बढ़ा दी थी. उस वक्त पड़ोस के एक शख्स ने युवा सईद अहमद को दुमका पहुंचा दिया, ताकि वह पढ़ाई पूरी कर सकें. सियासत से थोड़ी दूरी बने. नेशनल स्कूल में दाखिला कराया, लेकिन तब तक पढ़ाई से उनकी रुचि खत्म और सियासत में दिलचस्पी बढ़ चुकी थी.
सईद अहमद ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में पांच बार दल बदला था. 1947 में देश आजाद हुआ और कभी कांग्रेसी रहे अहमद वामपंथी हो गये. 1950 में उन्होंने वामपंथ से प्रभावित होकर कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन किया. 1952 में गृहक्षेत्र महगामा से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन किया था. लेकिन उनका नामांकन रिजेक्ट हो गया. 1957 में वह चुनाव लड़े. पैसे की तंगहाली थी.
अहमद अपनी आजीविका के लिए पत्र-पत्रिकाएं, उपन्यास बेचा करते थे. लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया करते थे. पाकीजा, होमा और होदा जैसी पत्रिकाओं को बेच कर जमा की गयी रकम से उन्होंने चुनाव लड़ा. जनसंपर्क का इकलौता माध्यम था पदयात्रा. न कोई गाड़ी थी, न कोई अन्य जरिया.
भाकपा के प्रत्याशी के तौर पर वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के महेंद्र महतो से 1,101 मतों से हार गये. 1969 में भाकपा ने फिर से उनको महगामा से उम्मीदवार बनाया. तब तक मजबूत पैठ बना चुके मो सईद अहमद 37.16 प्रतिशत मत लाकर कांग्रेस के जनार्दन प्रसाद हरा कर विधायक बने गये. लेकिन, दो साल बाद ही हुए 1972 के चुनाव में भारतीय जनसंघ के अवध बिहारी सिंह से अहमद हार गये. 1975 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगायी. अब तक अहमद जयप्रकाश नारायण से प्रभावित हो चुके थे. 1977 का चुनाव उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीत गये.
कर्पूरी ठाकुर की सरकार बनी, किंतु अविश्वास प्रस्ताव पर टिक नहीं सकी. रामसुंदर दास मुख्यमंत्री बने. इस सरकार में महगामा के विधायक मो सईद को पर्यटन और वफ्फ मंत्रालय मिला. फिर तीन सालों बाद 1980 के चुनाव में गोड्डा से जनता पार्टी (जेपी) के प्रत्याशी बने मो सईद अहमद की जमानत जब्त हो गयी. उन्होंने 1985 का चुनाव झामुमो से लड़ा लेकिन हार गये.
1990 में जनता दल से चुनाव लड़ने की तैयारी करते हुए उनको धोखा हो गया. टिकट उनकी जगह फैयाज भागलपुरी को मिल गया और वह चुनाव नहीं लड़ सके. 1995 के चुनाव में उन्होंने झामुमो मार्डी गुट के साथ चुनावी दंगल में उतरे और कांग्रेस के अवध बिहारी सिंह से परास्त हो गये. आजीवन ईमानदारी और वतनपरस्ती की मिसाल पेश करने वाले मो सईद अहमद का तीन जुलाई 2015 को चल बसे.

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