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कड़वा सच : ऐसी है सीवरेज-ड्रेनेज व्‍यवस्‍था, पठार पर न होती, तो रांची भी पटना बन जाती

नालों को ढाल दिये जाने के कारण बारिश का पानी इसमें नहीं घुस पा रहा है रांची : बिहार की राजधानी पटना के लोग पिछले दो सप्ताह से जलजमाव से परेशान हैं. शहर का निचला इलाका पूरी तरह पानी में डूबा हुआ है. पानी को निकालने के लिए पूरा सिस्टम लगा हुआ है, लेकिन पानी […]

नालों को ढाल दिये जाने के कारण बारिश का पानी इसमें नहीं घुस पा रहा है

रांची : बिहार की राजधानी पटना के लोग पिछले दो सप्ताह से जलजमाव से परेशान हैं. शहर का निचला इलाका पूरी तरह पानी में डूबा हुआ है. पानी को निकालने के लिए पूरा सिस्टम लगा हुआ है, लेकिन पानी अभी तक नहीं निकला है. इसका मुख्य कारण है ड्रेनेज सिस्टम का फेल होना.

इधर, रांची में भी ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त नहीं है. लोगों का कहना है कि अगर रांची शहर पठार पर बसा नहीं होता, तो यहां भी हर साल पटना जैसी स्थिति उत्पन्न होती. रांची में भी ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह से अनप्लांड है. यहां नाला व नाली बनाते समय यह नहीं देखा जाता है कि नाले से पानी का निकास कैसे व कहां होगा. शुक्र है कि पठार पर होने के कारण शहर से पानी का निकास हो जाता है.

जहां मन किया वहीं बना दी जाती है नाली

कहने को तो रांची नगर निगम में अभियंत्रण शाखा है. यहां चीफ इंजीनियर से लेकर अधीक्षण अभियंता, कार्यपालक अभियंता, सहायक अभियंता व जेइ तक की लंबी फौज है. नियमत: किसी मोहल्ले में नाली बनाने से पहले अभियंताओं की यह जिम्मेवारी होती है कि वे स्पॉट वेरिफिकेशन कर यह रिपोर्ट तैयार करें कि मोहल्ले में नाली बनेगी, तो उसका पानी निकल कर कहां जायेगा. लेकिन, रांची नगर निगम में यह सब नहीं होता है. पार्षदों व अधिकारियों को जहां मन करता है, वहां नाली का निर्माण कर देते हैं.

70 करोड़ रुपये की लागत से बने नालों से भी नहीं निकलता है शहर का पानी

तीन साल पहले पथ निर्माण विभाग ने 70 करोड़ की लागत से राजधानी की सभी प्रमुख सड़कों के किनारे नाला का निर्माण कराया.हरमू रोड, अरगोड़ा के आगे बिरसा चौक तक, विधानसभा रोड, इटकी रोड, पंडरा रोड, बरियातू रोड, कांटाटोली से बूटी मोड़ रोड, कांटाटोली से पटेल चौक, सिरोमटोली चौक से ओवरब्रिज, बिरसा चौक से ओवरब्रिज, रातू रोड चौक से पिस्का मोड़, बिरसा चौक से डोरंडा होते हुए राजेंद्र चौक, एयरपोर्ट रोड, रातू रोड चौक से कांकेे रोड में ऐसी नालों का निर्माण किया गया. निर्माण के बाद नियमत: इन नालों में 20-20 फीट की दूरी पर ऐसे स्लैब लगाने थे, ताकि जरूरत पड़ने पर उसे उठाकर नालों की सफाई करायी जा सके. पर इसे पूरी तरह से ढाल दिया गया. इसका नतीजा है कि नाला कचरे से भर गया है. इस कारण पानी का निकास नहीं हो पा रहा है. ढाल दिये जाने के कारण बारिश का पानी भी इन नालों में नहीं घुस पा रहा है. सारा पानी सड़कों पर बहता है.

नालों को एक-दूसरे से नहीं जोड़ा गया

नालों के निर्माण के दौरान इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया कि नाले को किसी दूसरे नाले से कनेक्ट किया जाये. यानी नाले का स्टार्टिंग प्वाइंट तो है, पर डेड प्वाइंट ब्लॉक है. इसका नतीजा है कि नाले में पानी भरा रह जाता है. ज्यादा पानी होने पर ओवर फ्लो होकर सड़कों पर भी बहने लगता है.

शहर की सफाई व्यवस्था पर हर माह तीन करोड़ रुपये खर्च

शहर की सफाई व्यवस्था पर रांची नगर निगम हर माह तीन करोड़ से अधिक रुपये खर्च करता है. इसके बाद भी नाले व नालियां कचरे से जाम हैं. मॉनसून के पहले निगम केवल नाले व नालियों की सफाई करवाता है. शेष दिन उसी हाल में छोड़ दिया जाता है.

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