रांची : आंगनबाड़ी केंद्रों में छह माह से छह वर्ष तक के बच्चों के बीच बंटनेवाले गर्म पोषाहार (खिचड़ी) का चावल अांगनबाड़ी सेविकाअों को प्रखंड स्थित सीडीपीअो कार्यालय से ले जाना होगा. पहले उन्हें पास की जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) दुकान से चावल लेना होता था.समाज कल्याण सचिव डॉ अमिताभ कौशल की अोर से जारी पत्र के अनुसार भारतीय खाद्य निगम (एफसीअाइ) के गोदाम से पोषाहार के लिए अावंटित चावल अब सीधे विभिन्न प्रखंड मुख्यालय में स्थित बाल विकास परियोजना कार्यालय (सीडीपीअो अॉफिस) तक पहुंचाया जायेगा. यहां से आंगनबाड़ी सेविका अपने केंद्र तक चावल ले जायेगी.
पहले एफसीआइ गोदाम से राज्य खाद्य निगम (एसएफसी) के गोदाम तथा इसके बाद जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) दुकान तक पोषाहार का चावल पहुंचाया जाता था. सचिव के अनुसार इस प्रक्रिया में आंगनबाड़ी तक चावल पहुंचने में विलंब की शिकायत मिल रही थी. एफसीआइ से चावल का उठाव कर इसे पीडीएस तक पहुंचाने का काम एसएफसी का था. अब भी एफसीअाइ से सीडीपीअो कार्यालय तक चावल पहुंचाने का काम एसएफसी ही करेगा.
सेविकाअों ने उठाये सवाल : इधर, विभिन्न आंगनबाड़ी केंद्रों की सेविकाअों ने यह सवाल उठाया है कि विभाग ने सीडीपीअो कार्यालय से आंगनबाड़ी केंद्र तक चावल पहुंचाने के लिए उन्हें कोई खर्च देने का प्रावधान नहीं किया है.
उनका कहना है कि विभिन्न आंगनबाड़ी केंद्र से प्रखंड कार्यालय (सीडीपीअो कार्यालय) की दूरी पांच से 35 किमी तक होती है. इतनी दूरी तक क्या वह अपने खर्च से चावल ले जायेंगी? गौरतलब है कि एक आंगनबाड़ी केंद्र में अौसतन 15 से 20 बच्चे होते हैं तथा एक केंद्र पर हर माह चावल का खर्च करीब 50 किलो होता है. यानी 50 किलो का एक बोरा चावल सेविकाअों को अपने केंद्र तक खुद के खर्च पर लाना होगा.
आंगनबाड़ी सेविकाअों ने गिनायीं समस्याएं
- चावल छोड़कर हल्दी, नमक, दाल, चीनी, तेल व जलावन सहित अन्य मद का खर्च समय पर नहीं मिलता
- एेसे में अपने घर से या उधार लेकर चलाना पड़ता है खर्च
- 2004 में बनी नयी परियोजना के लिए उसी वक्त मिले बर्तन अब काम के लायक नहीं
- कलम, चटाई, तौलिया व घड़ा के लिए बुनियादी खर्च भी नहीं मिलता
- कई तरह की रिपोर्ट की फोटो कॉपी का खर्च भी उन्हें नहीं मिलता
- सेविका को हर माह आठ-10 बार बुलाया जाता है सीडीपीअो कार्यालय, पर भत्ता नहीं मिलता