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रांची : पीजी जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा में नहीं मिल रहे छात्र

शिक्षकों की नौकरी पर आफत, विभाग में दो शिफ्ट में पढ़ाई कराने की मिली है अनुमति विभाग में खड़िया और हो विषय में एक भी विद्यार्थी ने नामांकन नहीं लिया संजीव सिंह रांची : रांची विश्वविद्यालय में चल रहे स्नातकोत्तर जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग में इस सत्र में विद्यार्थी नहीं मिल रहे हैं. फलस्वरूप […]

शिक्षकों की नौकरी पर आफत, विभाग में दो शिफ्ट में पढ़ाई कराने की मिली है अनुमति
विभाग में खड़िया और हो विषय में एक भी विद्यार्थी ने नामांकन नहीं लिया
संजीव सिंह
रांची : रांची विश्वविद्यालय में चल रहे स्नातकोत्तर जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग में इस सत्र में विद्यार्थी नहीं मिल रहे हैं. फलस्वरूप विभाग में सरकार और विवि द्वारा अनुबंध पर नियुक्त शिक्षकों की नौकरी खतरे में पड़ गयी है. विभाग में दो शिफ्ट में पढ़ाई कराने की अनुमति मिली है.
स्थिति यह है कि इस बार पहले शिफ्ट में ही कई विषयों में विद्यार्थी नहीं मिले और अन्य विषयों में निर्धारित सीटें भी नहीं भर पायी हैं. विभाग में विद्यार्थियों का अधिक से अधिक नामांकन हो, इसके लिए विवि प्रशासन ने फिर पोर्टल खोलकर आवेदन आमंत्रित करने का निर्णय लिया है. विभाग में विवि द्वारा प्रथम शिफ्ट में 50 अौर द्वितीय शिफ्ट में 50 सीटें निर्धारित की गयी हैं.
इसी के अनुरूप विभाग में 43 अनुबंध शिक्षक रखे गये हैं. 22 शिक्षक प्रथम शिफ्ट और 21 शिक्षक द्वितीय शिफ्ट में पढ़ाने के लिए नियुक्त किये गये हैं. इसके अलावा तीन नियमित रूप से नियुक्त शिक्षक हैं. जिनमें एक विभागाध्यक्ष ही हैं. विभाग में यूजीसी के नियमानुसार च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) लागू है. विभाग में विद्यार्थी नहीं मिलने से अनुबंध पर नियुक्त शिक्षक भी परेशान हैं.
क्यों आयी यह नौबत
जानकारी के अनुसार रांची विवि प्रशासन ने अपने अंतर्गत कई अंगीभूत कॉलेज मसलन मारवाड़ी कॉलेज, डोरंडा कॉलेज, रामलखन सिंह यादव कॉलेज, बीएस कॉलेज लोहरदगा, केअो कॉलेज गुमला, सिमडेगा कॉलेज, बीएन जालान कॉलेज सिसई, केबीसी कॉलेज बेड़ो सहित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा में स्नातकोत्तर की पढ़ाई शुरू कर दी गयी है.
इससे दूर-दराज के बहुत ही कम विद्यार्थी अब रांची आकर पढ़ रहे हैं. वैसे विद्यार्थियों को घर के पास ही स्नातकोत्तर की पढ़ाई की सुविधा मिल गयी है. इसके अलावा अॉनर्स विषय वाले स्नातकोत्तर में नामांकन लेने की बाध्यता के कारण भी विद्यार्थियों की संख्या घट गयी है.

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