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रांची : इन नालों में भी डूब सकती है कोई फलक

प्रभात खबर ने की शहर के बड़े खुले नालों की पड़ताल रांची : हिंदपीढ़ी के खुले नाले में बुधवार को चार साल की फलक अख्तर की डूबने से मौत हो गयी थी. इस घटना के बाद रांची नगर निगम के अधिकारियों की नींद टूटी है. अभियंताओं को घनी आबादी के बीच खुले नालों की सूची […]

प्रभात खबर ने की शहर के बड़े खुले नालों की पड़ताल
रांची : हिंदपीढ़ी के खुले नाले में बुधवार को चार साल की फलक अख्तर की डूबने से मौत हो गयी थी. इस घटना के बाद रांची नगर निगम के अधिकारियों की नींद टूटी है. अभियंताओं को घनी आबादी के बीच खुले नालों की सूची तैयार कर उन पर स्लैब लगाने के निर्देश दिये गये हैं.
हालांकि, नगर निगम की यह कार्यशैली सवाल खड़े करती है कि क्या नगर निगम चीजों को दुरुस्त करने के लिए दुर्घटनाओं का इंतजार करता है. नियम होने के बावजूद नगर निगम के अधिकारी नाला बनवाने के बाद उसे ढंकने का इंतजाम क्यों नहीं करते हैं. बहरहाल, प्रभात खबर के छायाकार अमित दास ने गुरुवार को शहर के नालों का जायजा लिया.
इस दौरान ऐसे कई बड़े नाले खुले दिखे, जिनमें पानी का बहाव अब भी भयावह है. झमाझम बारिश के दौरान ये नाले किसी छोटी-मोटी नदी के रूप में तब्दील हो जाते हैं. इनमें पानी की धार भी काफी तेज होती है. ऐसी हालत में यदी कोई इन नालों में गिर गया, तो उसकी जान को खतरा हो सकता है. इसलिए नगर निगम को तुरंत संज्ञान लेकर ऐसे नालों के ऊपर स्लैब रखवाना चाहिए.
नउवा टोली का नाला
अपर बाजार से निकलनेवाली नालियों का पानी नउवा टोली के बड़े नाले में जाकर गिरता है. यह नाला आगे जाकर लाइन टैंक रोड और थड़पखना से निकलने वाले नाले में मिल जाता है. चिंता का विषय यह है कि नउवा टोली में यह नाला पूरी तरह से खुला हुआ है. बरसात में इस नाले का पानी भी उफनता हुआ बहता है. लेकिन नाले को कवर नहीं किया गया है. ऐसे में अगर कोई इस नाले में गिरा, तो उसके साथ अनहोनी होना तय है.
लाइन टैंक रोड और थड़पखना से निकलनेवाला नाला लोहराकोचा, लालपुर होते हुए स्वर्णरेखा नदी में गिरता है. इस नाले की चौड़ाई छह से आठ फीट है. झमाझम बारिश में यह नाला छोटी-मोटी नदी में तब्दील हो जाता है. इस नाले पर कहीं-कहीं पर स्लैब लगा हुआ है. अगर बारिश के दिनों में अगर कोई बच्चा इस नाली में गिर जाये, तो उसके साथ कुछ अनहोनी होना तय है.
मारवाड़ी कॉलेज के समीप का नाला भी खुला हुआ है. इस नाले की चौड़ाई भी चार फीट से छह फीट के बीच है. प्रतिदिन यहां कॉलेज में हजारों छात्र-छात्राएं आते हैं. इसके अलावा हिंदपीढ़ी आने-जानेवाले लोग भी इसी सड़क से आवागमन करते हैं. लेकिन, यहां भी नाला पूरी तरह से खुला हुआ है. ऐसे में बारिश के दिनों में इस नाले में किसी के गिरने पर दुर्घटना होना तय है.
पार्षद ने तीन माह पहले ही चेताया था पर नहीं खुली नगर निगम की नींद
रांची : हिंदपीढ़ी के जिस नाले में डूबने से बुधवार को फलक की मौत हो गयी थी, उसके उपर स्लैब रखने के लिए वार्ड 23 की पार्षद साजदा खातून ने तीन माह पहले ही रांची नगर निगम को पत्र लिखा था. पत्र में पार्षद ने लिखा था कि मोहल्ले में नाला तो बन गया है, लेकिन इस पर स्लैब नहीं रखा गया है. कभी भी यहां बड़ी दुर्घटना हो सकती है. इसलिए जितनी जल्द हो सके, पूरे नाले को स्लैब से ढंका जाना चाहिए. हालांकि, पार्षद का यह पत्र अब तक नगर निगम की फाइलों में ही पड़ा हुआ है और इधर एक मासूम बच्ची की जान चली गयी.
जानकारी के अनुसार करीब दो साल पहले रांची नगर निगम ने 51 लाख रुपये खर्च कर हिंदपीढ़ी में नाला बनवाया था. चूंकि योजना मद में राशि कम थी, इसलिए खानापूर्ति करते हुए नगर निगम के अभियंताओं ने नाले पर जहां-तहा स्लैब रखवा दिया.
इस अधूरे काम को पूरा करने के लिए पार्षद साजदा खातून ने इस वर्ष अप्रैल में नगर निगम को दोबारा पत्र लिखा. लेकिन, अभियंताओं ने फंड का हवाला देते हुए इस नाले को कवर करने से इनकार कर दिया. साजदा खातून कहती हैं : जब भी मैंने नाले पर स्लैब रखने की मांग की, नगर निगम के अधिकारियों ने फंड का हवाला देते हुए मेरी मांग को अस्वीकार कर दिया. मैंने यह भी कहा कि पार्षद फंड से ही नाले पर स्लैब रखवा दीजिए, लेकिन इस मांग को भी अनसुना कर दिया गया.
केवल नाली-नाला बनवाते हैं पार्षद, उस पर स्लैब लगाने की योजना नहीं बनाते
उत्तम महतो
रांची : राजधानी के विभिन्न मोहल्लों में रांची नगर निगम हर वर्ष 30 करोड़ की लागत से नाली-नाला का निर्माण करता है. लेकिन, नाली ढंकी जायेगी या नहीं, इसका निर्णय स्थानीय पार्षद करते हैं. नगर निगम से पार्षद मद में मिलने वाली राशि को बचाने की जुगत में शहर के ज्यादातर नाले-नालियां खुले ही रह जाते हैं.
गौरतलब है कि शहर की आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए रांची नगर निगम को राज्य सरकार हर वर्ष निर्धारित राशि उपलब्ध कराती है. उस राशि का बंटवारा नगर निगम के 53 पार्षदों के बीच किया जाता है. बंटवारे की राशि के आधार पर पार्षदों से सड़क और नाली की योजनाएं मांगी जाती हैं.
पार्षद सिर्फ नाली बनाने की योजना देते हैं, तो नगर निगम केवल नाली का निर्माण कराता है. अगर पार्षद नाली के साथ स्लैब लगाने की योजना भी देते हैं, तो नगर निगम पार्षद मद की अधिक राशि काट कर नाली के साथ स्लैब लगाने की योजना स्वीकृत करता है. राशि बचाने के लिए पार्षद केवल नाली निर्माण को ही प्राथमिकता देते हैं.
मांगने पर एक या दो स्लैब देते हैं पार्षद : फिलहाल, नगर निगम के पास खुले नाले-नालियों को स्लैब से ढंकने की कोई योजना नहीं है. किसी व्यक्ति को खुले नाले से कठिनाई होने पर उसे पार्षद को लिखित आवेदन देना पड़ता है. ज्यादातर मामलों में पार्षद पूरे नाले ढंकने की जगह संबंधित आवेदक की सुविधा के लिए केवल एक या दो स्लैब लाकर छुट्टी पा लेते हैं. अंतत: नाले का ज्यादातर हिस्सा खुला ही रह जाता है.
ये हाल है!
हर साल में 30 करोड़ रुपये खर्च होते हैं शहर में नाला-नाली बनाने में
नाले को स्लैब से ढंकना है या नहीं, यह फैसला पार्षद ही करते हैं

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