रांची : लोकसभा चुनाव में हार के बाद झामुमो विधायक दल की बैठक में हेमंत सोरेन ने हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा. उन्होंने कहा कि ईवीएम से नहीं वैलेट पेपर से चुनाव होना चाहिए. मतदान के दिन और मतगणना के दिन पड़े कुल वोट में अंतर देखने को मिला. चुनाव आयोग को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि महागठबंधन के सहयोगी दलों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने के कारण इस प्रकार की हार का सामना करना पड़ा.
रविवार को हुई झामुमो विधायक दल की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने कहा कि गठबंधन से नुकसान ये हुआ कि पार्टी की सीट कम हुई और फायदा यह हुआ कि वोटों का प्रतिशत बढ़ा है. श्री सोरेन ने कहा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन पर पुन: विचार किया जायेगा.
हेमंत ने कहा कि झामुमो विपक्ष में राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है. इसलिए हमारी जिम्मेवारी भी बड़ी है. इसे ध्यान में रखते हुए विधानसभा चुनाव पूरी ताकत से लड़ा जायेगा. इसकी रणनीति बनाने पर जोर दिया गया है. पार्टी की सभी इकाइयों खासकर युवा वर्ग और महिलाओं की अधिक से अधिक भूमिका तय की जायेगी.
बता दें कि झामुमो ने लोकसभा चुनाव की चार सीटों दुमका, राजमहल, गिरिडीह व जमशेदपुर सीट से चुनाव लड़ा था. इसमें मात्र एक सीट राजमहल पर ही जीत मिली. पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरेन भी दुमका सीट से भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन से चुनाव हार गये. बैठक में झामुमो विधायक प्रो स्टीफन मरांडी व चमरा लिंडा को छोड़कर बाकी सभी विधायक तथा विनोद पांडेय व सुप्रियो भट्टाचार्य मौजूद थे.
जनता ने नकारा तो झामुमो अपनी भड़ास ईवीएम पर उतार रहा है – भाजपा
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झामुमो की समीक्षा बैठक के बाद हेमंत सोरेन के द्वारा दिये गये उस बयान पर पलटवार किया जिसमें हेमंत ने अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा था. प्रतुल ने कहा जब झामुमो जीतती तो ईवीएम ठीक रहता है और इस चुनाव में उसकी हार हुई तो वह बैलट पेपर से चुनाव कराने की बात करने लगे.
प्रतुल ने कहा कि ऐसा कहकर हेमंत सोरेन जनादेश का अपमान कर रहे हैं. उन्हें जनता के आदेश को स्वीकार करना चाहिए और इस तरह की बहानेबाजी से परहेज करना चाहिए. उन्होंने कहा कि संथाल परगना में गुरुजी की हार के साथ झामुमो के अंत की शुरुआत हो गयी है. संथाल की जनता में इस बात से भी काफी रोष था कि गुरुजी की खराब सेहत के बावजूद झामुमो ने उन्हें जबरदस्ती चुनाव में उतार दिया था. झारखंड के आदिवासियों और मूल वासियों सहित सभी वर्गों ने इस बार विकास के मुद्दे पर भाजपा का जमकर साथ दिया.