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रांची :आदिवासी पिछड़े नहीं, उनके पास देशज ज्ञान व प्राकृतिक संसाधन

सामुदायिक अधिकार समागम में पद्मश्री सिमोन उरांव ने कहा रांची : पद्मश्री सिमोन उरांव ने कहा कि आदिवासियों को गरीब, पिछड़ा व अज्ञानी कहा जाता है, लेकिन वे गरीब नहीं, धनी है़ं क्योंकि, वे जंगल, पहाड़, नदी, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है़ं उनके पास परंपरागत देशज ज्ञान है़ कहा कि एक सशक्त ग्रामसभा […]

सामुदायिक अधिकार समागम में पद्मश्री सिमोन उरांव ने कहा
रांची : पद्मश्री सिमोन उरांव ने कहा कि आदिवासियों को गरीब, पिछड़ा व अज्ञानी कहा जाता है, लेकिन वे गरीब नहीं, धनी है़ं क्योंकि, वे जंगल, पहाड़, नदी, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है़ं उनके पास परंपरागत देशज ज्ञान है़
कहा कि एक सशक्त ग्रामसभा के माध्यम से ही गांव-समाज का विकास संभव है़ वे सोमवार को संवाद व नेशनल आदिवासी अलायंस द्वारा एचआरडीसी, गोस्सनर कंपाउंड में आयोजित सामुदायिक अधिकार समागम (आदिवासी जैव सांस्कृतिक संलेख पर आधारित संगम) में बोल रहे थे़
प्रकृति को समृद्ध कर ही खुद को कर सकते हैं समृद्ध : सामाजिक कार्यकर्ता घनश्याम ने कहा कि इंसानों के लिए अब प्रकृति के साथ छेड़छाड़ किये बिना तालमेल के साथ चलने का समय आ गया है. इसे समृद्ध करते हुए खुद को समृद्ध करना होगा़
चर्चित फिल्मकार मेघनाथ ने कहा कि आदिवासियों के लिए अपनी परंपराओं और वर्तमान समय की अच्छी बातों को लेकर चलना चाहिए़ उन्हें विकास की मुख्यधारा में विलीन नहीं होना है, न खुद को पूरी दुनिया से बिलकुल अलग रखना है़ वंदना टेटे ने कहा कि आदिवासी प्रकृति को धरोहर मानते हैं. वहीं गैर आदिवासी इसे संपदा के रूप में देखते है़ं
संस्कृति व परंपराओं को बचाने के लिए कार्यक्रम चला रहे हैं युवा : छत्तीसगढ़ की उर्मिला गोंड ने बताया कि उनके क्षेत्र के युवा अपनी संस्कृति व परंपराओं को बचाने के लिए कई कार्यक्रम चला रहे है़ं सिद्धेश्वर सरदार ने कहा कि आधुनिकता प्रकृति की हत्या कर रही है़
आधुनिक समाज को प्रकृति से जुड़े आदिवासी की जीवन पद्धति को स्वीकारने में हिचक नहीं होनी चाहिए़ गुंजल इकिर मुंडा ने कहा कि प्रकृति के प्रति व्यावसायिक सोच हो गयी है, पर आदिवासियों में अब भी ऐसा नहीं है़
राजस्थान की गुणी प्रतापी बाई मीणा ने विभिन्न तरह की जड़ी-बूटियों में पाये जाने वाले औषधीय गुणों की जानकारी दी. छत्तीसगढ़ के मन्ना बैगा, सावित्री बड़ाईक ने जैव विविधता के संरक्षण-संवर्द्धन पर कविता का पाठ किया.
दूसरे सत्र में विभिन्न समुदायों के जैव विविधता प्रोटोकॉल पर किया गया दस्तावेजीकरण साझा किया गया़ संवाद ने मुंडा समुदाय, जंगल बचाओ आंदोलन ने कुड़ुख, छत्तीसगढ़ की दिशा समाजसेवी संस्था ने मोरिया गोंड, परिवर्तन समाजसेवी संस्था ने पारधी, आदिवासी समता मंच ने बैगा समुदाय, ओड़िशा के सेवा जगत/डिवोटी ट्रस्ट ने कुटिया कंध समुदाय और राजस्थान की जागरण जन विकास समिति ने कटवलिया एवं कथौड़ी जनजाति समुदाय पर दस्तावेजीकरण किया है़
कार्यक्रम का संचालन शशि बारला व धन्यवाद ज्ञापन साल्गे मार्डी ने किया़ आयोजन में शेखर, जमील, राकेश कुमार राउत, डेविड कुजूर ने योगदान दिया़

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