रांची : वर्ष 2025 में अपने राज्य की कल्पना कीजिये. अपनी रांची स्मार्ट सिटी बन चुकी होगी. ईमानदार प्रयासों से झारखंड देश के अव्वल राज्यों में शुमार हो चुका होगा. एम्स जैसे कई बड़े-बड़े अस्पताल होंगे. हर एम्स के साथ-साथ सभी जिला अस्पतालों और प्रखंड के स्वास्थ्य केंद्रों में आयुष चिकित्सा की विशेष व्यवस्था रहेगी. आयुष विभाग के अस्पतालों के बड़े-बड़े भवन होंगे. आयुष निदेशालय के आलीशान भवन में एयरकंडीशंड कमरे, बैठने के लिए गद्दीदार कुर्सियां, टेबल और आलमारियों के साथ-साथ फाइलें होंगी. महंगी एलइडी लाइटें होंगी. लेकिन, कमरे अंधेरे में डूबे रहेंगे. यहां कोई काम नहीं होगा. जी हां. कोई काम नहीं होगा, क्योंकि तब तक इस विभाग के सभी डॉक्टर, अधिकारी और कर्मचारी रिटायर हो चुके होंगे. भवन किसी खंडहर की तरह होंगे.
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आज ही स्थिति यह है कि विभाग के 81 फीसदी से ज्यादा पद रिक्त हैं. 25 नवंबर, 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना. उस वक्त आयुष विभाग को जितने लोग मिले थे, उसमें भी सभी लोगों ने झारखंड में योगदान नहीं दिया. वक्त बीतता गया और लोग रिटायर होते गये. कुछ लोगों की मौत हो गयी. इस बीच झारखंड सरकार ने दो बार पदों का सृजन किया, लेकिन वर्ष 2000 से अब तक यानी 18 साल में कोई नियुक्ति नहीं हुई. यह स्थिति तब है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद आयुष विभाग को सशक्त बनाने पर जोर दे रहे हैं.
प्रधानमंत्री चाहते हैं कि ‘आयुष’ चिकित्सा को देश के कोने-कोने तक पहुंचाया जाये, ताकि विदेशी महंगी दवाओं पर लोगों की निर्भरता खत्म हो. स्वास्थ्य सेवा पर खर्च सीमित हो. ऐसा होगा, तो राजस्व की बचत होगी. पांच चिकित्सा पद्धतियों (आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होमियोपैथी) को मिलाकर आयुष (AYUSH) विभाग बना है. देश ही नहीं, पूरी दुनिया में आयुष को लोग हाथोंहाथ ले रहे हैं. देश में इस चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार पर खासा जोर दिया जा रहा है. 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजनों पर झारखंड सरकार ने करीब 50 लाख रुपये खर्च किये.
आयुष मेडिकल काउंसिल का भी बुरा है हाल
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी रांची आये. यहां प्रभात तारा मैदान में उन्होंने मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ योग दिवस मनाया. स्वास्थ्य मंत्रालय की खूब वाहवाही हुई. सरकार ने भी सुर्खियां बटोरीं. लेकिन, ‘आयुष’ विभाग किन परिस्थितियों में काम कर रहा है, इस ओर किसी का ध्यान नहीं है. विभाग में 81 फीसदी पद रिक्त हैं. आयुष निदेशालय और स्टेट आयुष मेडिकल काउंसिल तक में 60 फीसदी पद रिक्त हैं. निदेशालय में ‘बी’ ग्रेड के 5 अफसरों के पद हैं, जिसमें से तीन पद रिक्त हैं. आयुष मेडिकल काउंसिल में ‘बी’ ग्रेड के 4 पद सृजित हैं. इसमें तीन रिक्त हैं. काउंसिल में सी ग्रेड के कुल 4 में से दो पद खाली पड़े हैं.
राज्य के 24 जिलों का हाल देखिए
राज्य के कुल 24 जिलों के सभी जिला अस्पतालों और अन्य अस्पतालों में आयुष चिकित्सकों की बात करें, तो कुल 513 पद सृजित हैं, जिसमें 69 चिकित्सक ही कार्यरत हैं. 444 पद रिक्त हैं. आयुर्वेद में 258 पद सरकार ने मंजूर किये हैं, जिसमें से 213 पद रिक्त हैं. होमयोपैथी के 165 पद सृजित हैं, जिसमें 146 रिक्त हैं. यूनानी चिकित्सकों के कुल 90 स्वीकृत पदों में 85 खाली पड़े हैं. ग्रुब ‘बी’ में कुल 670 पद मंजूर हैं, जिसमें से 591 पद रिक्त पड़े हैं. आयुष निदेशालय के रिकॉर्ड में पांच मेडिकल कॉलेज हैं, जिसमें तीन में एक भी स्टाफ (टीचिंग या नन टीचिंग) नहीं है.
157 पद, काम कर रहे हैं सिर्फ 6 लोग
गोड्डा स्थित स्टेट होमियपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में ग्रुब ‘बी’, ‘सी’ और ‘डी’ के कुल 157 पद हैं. इनमें से सिर्फ 6 पद पर लोग कार्यरत हैं. गिरिडीह स्थित स्टेट यूनानी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के 21 में से 21 पद रिक्त हैं. इसी तरह गुमला स्थित स्टेट आयुर्वेदिक फार्मेसी कॉलेज में कोई कर्मचारी नहीं है. इस कॉलेज के लिए कुल 5 पद सृजित हैं. साहेबगंज स्थित स्टेट आयुर्वेदिक फार्मेसी कॉलेज एकमात्र कॉलेज है, जहां सबसे कम पद खाली हैं. इस कॉलेज के लिए कुल 15 पद मंजूर किये गये हैं, जिसमें से सिर्फ 9 पद रिक्त हैं. हालांकि, तीन तल्ला के शानदार बिल्डिंग में काम कम और आंदोलन ज्यादा होते हैं.