Advertisement
मांडर : नशे की लत से तबाह जिंदगी को मिली नयी राह
मेडिकल मिशन सिस्टर्स द्वारा संचालित नशा विमुक्ति केंद्र में अबतक 4500 नशा रोगियों का इलाज मांडर : हटिया हवाई नगर के अनमोल पूर्ति, कांके के अनमोल बाड़ा, मांडर मारिया टोली के रतन खलखो सहित अनगिनत ऐसे नाम हैं जिनकी जिंदगी नशे की लत से तबाही के कगार पर थी. पारिवारिक ताना-बाना बिखर चुका था. समाज […]
मेडिकल मिशन सिस्टर्स द्वारा संचालित नशा विमुक्ति केंद्र में अबतक 4500 नशा रोगियों का इलाज
मांडर : हटिया हवाई नगर के अनमोल पूर्ति, कांके के अनमोल बाड़ा, मांडर मारिया टोली के रतन खलखो सहित अनगिनत ऐसे नाम हैं जिनकी जिंदगी नशे की लत से तबाही के कगार पर थी. पारिवारिक ताना-बाना बिखर चुका था.
समाज में भी हाशिये पर चले गये थे लेकिन आज उनका जीवन खुशियों से भरा है. सभी फिर से समाज की मुख्य धारा से जुड़कर जिंदगी की नयी इबारत लिखने में लगे हैं. इनके जीवन में हुए इस बदलाव का श्रेय मांडर स्थित नशा विमुक्ति सह परामर्श केंद्र (रिहा कृपा सेंटर) को जाता है. जो अपने स्थापना के उद्देश्य ‘अंधेरे से उजाले की ओर’ को वर्षों से चरितार्थ कर रहा है. मेडिकल मिशन सिस्टर्स व होली फैमिली अस्पताल सोसाइटी मांडर की ओर से संचालित इस केंद्र में अब तक इस तरह के 4500 नशा रोगियों का इलाज व काया पलट हो चुका है.
इलाज के दौरान शारीरिक-मानसिक व आध्यात्मिक पहलुओं पर भी ध्यान : सिस्टर वर्की
1992 से इस केंद्र की जिम्मेवारी संभाल रही सिस्टर अन्ना वर्की बताती हैं कि शुरुआती दौर में समाज में नशा के बढ़ते दुष्प्रभाव को देखकर कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो द्वारा इनके लिए कुछ करने के सुझाव के बाद नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान की शुरुआत की गयी थी.
जिसके तहत होली फैमिली अस्पताल के कुछ स्टाफ गांव-गांव जाकर लोगों को नशा से होनेवाले नुकसान की जानकारी देने लगे. बाद में नशा को बीमारी मानकर 2004 में अस्पताल में रखकर उनका इलाज शुरू किया गया. जैसे-जैसे लोग नशापान के नुकसान को समझने लगे, यहां इलाज के लिए नशा रोगियों की संख्या बढ़ने लगी. सिस्टर वर्की के अनुसार वर्तमान में कॉन्सटेंट लिवन्स अस्पताल परिसर के एक हिस्से में संचालित इस नशा विमुक्ति सह परामर्श केंद्र में 30 बेड है, लेकिन यहां हमेशा मरीजों की संख्या 36 से 38 के बीच रहती है.
केंद्र में झारखंड के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के नशा रोगी इलाज के लिए आते हैं. इनमें युवा, बुजुर्ग व छात्र भी शामिल हैं.
यहां इलाज के दौरान शारीरिक-मानसिक व आध्यात्मिक पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाता है. सेशन चलाये जाते हैं. जिसमें काउंसेलिंग के साथ शराब व अन्य नशीले पदार्थों की जानकारी के साथ उसके दुष्परिणाम के बताया जाता है. नियमित व्यक्तिगत विकास, ग्रुप क्रियाकलाप, योगा, मनन चिंतन व आध्यात्मिक सलाह के माध्यम से उन्हें पुनः समाज की मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया जाता है.
सिस्टर वर्की बताती हैं कि यहां से ठीक होकर निकलने के बाद भी रीच आउट प्रोग्राम के तहत उनसे हमारे लोग संपर्क रखते हैं. उन्हें नशे से परहेज की सीख देते रहते हैं. ऐसे में जब कोई पूरी तरह ठीक होकर कुछ सालों बाद उनसे आकर मिलते और कहते हैं कि सिस्टर आज मैं जो भी हूं आप ही के चलते हूं, तो लगता कि मेडिकल मिशन सिस्टर्स की ओर से खोले गये इस नशा विमुक्ति केंद्र का उद्देश्य सार्थक हो गया है.
मांडर स्थित नशा विमुक्ति केंद्र से इलाज के बाद पूरी तरह ठीक हो गये हटिया हवाई नगर के 48 वर्षीय अनमोल पूर्ति ने बताया कि आठवीं कक्षा से ही शराब की लत लग गयी थी. तीन-चार साल बाद वह नशे में धुत रहनेवाले शराबी की श्रेणी में आ गया था.
घरवालों ने सुधरने की आस पर शादी भी कर दी, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ. नशे के कारण सब कुछ बिकने की नौबत आ गयी और आजिज आकर पत्नी भी छोड़कर मायके चली गयी. 2010 में उसे नशा विमुक्ति केंद्र में भर्ती कराया गया. आज वह नशे से दूर है और सब कुछ ठीक हो गया है. उसे काम मिल गया है. पत्नी व बच्चे भी पास हैं. कुछ इसी तरह की आपबीती मारिया टोली के रतन खलखो व कांके के अशोक कुमार बाड़ा ने भी सुनायी.
रतन खलखो ने तो केंद्र में इलाज के बाद ठीक होने पर बीएड भी कर लिया है और प्रतियोगी परीक्षा में किस्मत आजमा रहा है. वहीं अशोक कुमार बाड़ा ठीक होने के बाद केंद्र में ही स्टाफ के रूप में कार्यरत हैं. पूर्व में बिजनेस मैन रह चुके अशोक बाड़ा के चेहरे पर अब आत्मविश्वास की चमक देखते ही बनती है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement