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झारखंड में 26 जुलाई से शुरू होगा मिजेल्स-रूबेला टीकाकरण, जानिये क्या रुबेला…?

रांची : झारखंड में 26 जुलाई से शुरू होने जा रहे मिजेल्स-रूबेला टीकाकरण के बारे में जानकारी देने के लिए सोमवार को यहां सूचना भवन में मीडिया संवाद का आयोजन झारखंड सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तथा यूनिसेफ के द्वारा किया गया. इस अवसर पर यूनिसेफ की 14 साल की बाल पत्रकार सुरभि […]

रांची : झारखंड में 26 जुलाई से शुरू होने जा रहे मिजेल्स-रूबेला टीकाकरण के बारे में जानकारी देने के लिए सोमवार को यहां सूचना भवन में मीडिया संवाद का आयोजन झारखंड सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तथा यूनिसेफ के द्वारा किया गया. इस अवसर पर यूनिसेफ की 14 साल की बाल पत्रकार सुरभि लोहार ने इसके बारे उपस्थित पत्रकारों को विस्तार से जानकारी दी और राज्य के सभी अभिभावकों और बच्चों से अपील की, कि वे मिजेल्स-रूबेला अभियान को सफल बनाने में अपना सहयोग प्रदान करें. सुरभि लोहार यूनिसेफ की ओर से संचार रणनीति के तहत सरकारी एवं प्राइवेट स्कूलों में चलाये जा रहे मिजेल्स रूबेला सत्र से लाभांवित हुई है.

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पत्रकारों को संबोधित करते हुए स्वास्थ्य विभाग की प्रधान सचिव खरे ने कहा कि भारत 2020 तक खसरा को समाप्त करने तथा रूबेला और जन्मजात रूबेला सिंड्रोम को नियंत्रण में करने के लिए प्रतिबद्ध है. राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा चलाया गया मिजेल्स-रूबेला टीकाकरण अभियान एक वृहद अभियान है, जिसके अंतर्गत 9 महीने से लेकर 15 साल तक की आयु समूह के लगभग 41 करोड़ बच्चों को पूरे देश में एमआर का टीका लगाना है.

सरकारी और निजी स्कूलों में चलाया जायेगा टीकाकरण

मिजेल्स-रूबेला का टीका सरकारी एवं प्राइवेट स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों तथा आउटरीच साइट्स में दिए जायेंगे, जिसके तहत राज्य में 9 माह से लेकर 15 साल के लगभग 1.17 करोड बच्चों को प्रतिरक्षित किया जायेगा. इस अभियान के बाद एमआर का टीका, नियमित टीकाकरण के तहत उपलब्ध होगा और पहले दिये जाने वाले मिजेल्स टीके की दो खुराकों के स्थान पर दिया जायेगा.

जागरूकता के लिए एनसीसी और रेडिया का लिया जा रहा सहयोग

वहीं, यूनिसेफ झारखंड की प्रमुख डॉ मधुलिका जोनाथन ने कहा कि कि यूनिसेफ, झारखंड सरकार तथा दूसरे अन्य साझेदारों के साथ मिलकर मिजेल्स-रूबेला (एमआर) अभियान को सफल बनाने के लिए काम कर रहा है. यूनिसेफ ने एमआर अभियान के लिए प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक के लिए संचार रणनीति तैयार की है. समाज के प्रभावी लोगों, धार्मिक नेताओं तथा पंचायती राज सदस्यों को इसके बारे में बताना और उन्हें लोगों तक इस संदेश को पहुंचाने के लिए प्रेरित करना तथा प्राइवेट स्कूलों के अभिभावकों एवं शिक्षकों की बैठक में इस पर चर्चा करवाना इस संचार रणनीति का अहम हिस्सा रहा है. एमआर टीका के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए एनसीसी रांची तथा रेडियो सिटी (प्राइवेट एफएम स्टेशन) का भी इस अभियान में सहयोग लिया गया है.

स्कूलों में शिक्षक-अभिभावकों की बैठक

डॉ मधुलिका ने कहा कि दूसरे अन्य संगठन जैसे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी माइक्रो प्लानिंग एवं स्वास्थ्य कर्मियों के क्षमता निर्माण के द्वारा इस अभियान को अपना सहयोग प्रदान कर रहा है. वहीं, यूएनडीपी कोल्ड चेन केंद्रों में टीकों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने में अपना सहयोग प्रदान कर रहा है. इसी प्रकार से लायंस क्लब ने एमआर टीका के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए स्कूलों में अभिभावकों तथा शिक्षकों की बैठक का आयोजन किया है तथा महत्वपूर्ण स्थानों में एमआर से संबंधित सूचना सामग्रियों को प्रदर्शित किया है. सोमवार को आयोजित कार्यक्रम में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की उप निदेशक, डॉ वीणा सिन्हा, शिशु स्वास्थ्य सेल के डॉ अजीत प्रसाद, डब्ल्यूएचओ के डॉ अरुण, लायंस क्लब के संजीव पोटदार तथा यूनिसेफ एवं डब्ल्यूएचओ के पदाधिकारी उपस्थित थे.

मिजेल्स या खसरा क्या है?

मिजेल्स या खसरा पांच साल से कम उम्र के मरने वाले बच्चों की मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में से एक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2015 में खसरा के कारण देश में 49,200 बच्चों की मृत्यु हो गयी, जो वैश्विक स्तर पर इस बीमारी से मरने वाले बच्चों की संख्या का 36 फीसदी है. यह बहुत ही संक्रामक बीमारी है, जो एक वायरस के कारण होता है तथा संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से फैलता है. खसरा के सामान्य लक्षणों में शरीर में लाल चकत्ते के साथ तेज बुखार होना, सर्दी तथा नाक बहना एवं आंखों का लाल होना है. जिन बच्चों में पर्याप्त रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं होता है, वे इस बीमारी के संपर्क में आने पर उसके शिकार हो जाते हैं. खसरा बच्चे को न्यूमोनिया, डायरिया तथा मस्तिष्क संक्रमण जैसी जानलेवा बीमारियों का शिकार बना सकती है.

रूबेला क्या है?

रूबेला एक हल्की वायरल बीमारी है, लेकिन गर्भावस्था के दौरान इसके संक्रमण से गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं. गर्भावस्था के प्रारंभिक अवस्था में रूबेला के
संक्रमण से गर्भपात होना, मृत बच्चा पैदा होना तथा भ्रूण और नवजातों में जन्मजात विसंगतियों का एक समुच्च्य बनता है, जिसे जन्मजात रूबेला सिंड्रोम भी कहा जाता है. जन्मजात रूबेला सिंड्रोम शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है. खासकर यह आंख (ग्लूकोमा, मोतियाबिंद), कान (कम सुनाई पड़ना), दिमाग (अविकसित दिमाग, मानसिक मंदता) और हृदय को प्रभावित करता है और इनमें से अधिकांश बीमारियों में महंगी चिकित्सा, सर्जरी और देखभाल की आवश्यकता होती है. इन बीमारियों का एमआर टीके से बचाव किया जा सकता है, जो पूरे जीवन सुरक्षा प्रदान करता है. कुपोषित बच्चों को प्राथमिकता के आधार पर इस टीके के द्वारा प्रतिरक्षित किया जाना चाहिए, क्योंकि उनमें डायरिया और न्यूमोनिया जैसी बीमारियों के होने की काफी संभावनाएं होती हैं.

मिजेल्स-रूबेला अभियान के बारे में पांच तथ्य

  1. मिजेल्स-रूबेला के संक्रमण से एक बच्चे को बचाने के लिए लगने वाले इस टीके की कीमत 50 रुपये से भी कम है.
  2. अभियान के दौरान लक्षित बच्चों को सरकारी एवं प्राइवेट स्कूलों तथा स्वास्थ्य केंद्रों पर बनाये गये सेशन साइटों तथा आउटरीच साइटों के द्वारा टीका का एक सिंगल शॉट दिया जा रहा है.
  3. एमआर का टीका निःशुल्क दिया जाता है और यह सभी आयु वर्ग के बच्चों को दिया जा रहा है, चाहे उस बच्चे को मिजेल्स-रूबेला का टीका पहले दिया गया हो या उसे मिजेल्स-रूबेला की बीमारी हो.
  4. वर्तमान अभियान के तहत एमआर टीका भारत में बनाया गया है और इसे भारत सरकार के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन द्वारा लाइसेंस दिया गया है.
  5. इस अभियान का लक्ष्य 100 फीसदी लक्षित बच्चों को एमआर टीका से प्रतिरक्षित कर तेजी से जनसंख्या प्रतिरक्षा का निर्माण करना तथा अतिसंवेदनशील समूह वाले बच्चों से बीमारी को दूर करना है, ताकि मिजेल्स और जन्मजात रूबेला सिंड्रोम के कारण होने वाली मृत्यु को कम किया जा सके.

टीकाकरण के बाद बच्चों के शरीर में पैदा होने वाले इन लक्षणों से घबरायें नहीं

मिजेल्स और रूबेला का टीका पूरी तरह से सुरक्षित है. अन्य दूसरी दवाओं और टीकों की तरह ही कुछ हल्के क्षणिक प्रतिकूल प्रभाव जैसे कि लालीपन, बुखार और शरीर में चकत्ता का होना जैसे लक्षण टीकाकरण के बाद देखने में आ सकता है, लेकिन यह सामान्य बात है. यह खुद ही ठीक हो जाते हैं या इनका उपचार बहुत ही आसानी से किया जा सकता है.

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