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सरकार एक के बाद एक चूक कर रही है, विपक्षी को मौका हाथ लग रहा, समस्या के समाधान की है जरूरत : कड़िया मुंडा

भाजपा के वरिष्ठ नेता व सांसद कड़िया मुंडा इन दिनों दिल्ली में हैं. पिछले दिनों पत्थलगड़ी समर्थकों ने उनके अनिगड़ा स्थित घर पर हमला कर तीन जवानों को अगवा कर लिया. इसके बाद प्रभात खबर ने उनसे बातचीत की. कड़िया मुंडा राज्य के वर्तमान हालात पर दु:खी हैं. अपने घर पर हमले की चिंता नहीं […]

भाजपा के वरिष्ठ नेता व सांसद कड़िया मुंडा इन दिनों दिल्ली में हैं. पिछले दिनों पत्थलगड़ी समर्थकों ने उनके अनिगड़ा स्थित घर पर हमला कर तीन जवानों को अगवा कर लिया. इसके बाद प्रभात खबर ने उनसे बातचीत की. कड़िया मुंडा राज्य के वर्तमान हालात पर दु:खी हैं.
अपने घर पर हमले की चिंता नहीं है, परिस्थिति काे लेकर चिंतित हैं. नक्सली हमले, पत्थलगड़ी सहित कई मुद्दों पर संवेदनशील हैं. कहते हैं कि सब कुछ सरकार के हाथ में है. रास्ता सरकार को निकालना है. सरकार से एक के बाद एक चूक हो रही है. विरोधियों को मौका मिलता है. समस्याओं का समाधान होना चाहिए. प्रभात खबर के ब्यूरो प्रमुख आनंद मोहन ने उनसे लंबी बातचीत की़ प्रस्तुत है इसके प्रमुख अंश.
Qखूंटी इन दिनों अशांत है. पत्थलगड़ी का अभियान चल रहा है. सरकार को चुनौती दी जा रही है. समाधान का क्या रास्ता है?
मैंने पहले ही कहा था, इस पर ध्यान देने की जरूरत है. यह नाराजगी से कहीं ज्यादा, परंपरा और रूढ़िवाद का सवाल है. पत्थलगड़ी से समाज को कुछ मिलेगा, ऐसी बात नहीं है. पानी नहीं मिल जायेगा, अनाज नहीं मिल जायेगा. लोग अपने संगठन का प्रदर्शन कर रहे है़ं
Qविकास को लेकर सरकार से नाराजगी की बात भी आती है ?
नाराजगी स्वाभाविक है. काम ठीक से नहीं होगा, तो विरोधियों को मौका मिलेगा. एक के बाद एक चूक हो रही है. सीएनटी-एसपीटी में संशोधन को लेकर हमने पहले ही कहा था. इसके बाद भूमि अधिग्रहण का मामला आ गया है. विरोधियों को मौका मिलता है. कांग्रेस, झामुमो विरोधी हैं, ताे ये बोलेंगे ही. आप मौका दीजिएगा, तो विरोध के स्वर आयेंगे ही. हमने स्थानीय नीति के बारे में भी कहा था.
Qलोगों का कहना है कि जोर-जबर्दस्ती से कहीं ज्यादा यह संवाद का मामला है. पत्थलगड़ी को लेकर सरकार संवाद के लिए तैयार भी है. आपकी क्या राय है ?
पत्थलगड़ी जब शुरू हुई थी, खूंटी में आकर लोगों ने पथराव किया था, तो हमने शुरुआत में ही कहा था कि इसे सुधारने की जरूरत है. ठीक करना होगा. समय रहते समस्या के समाधान की जरूरत है. यह संवाद से कहीं ज्यादा समस्या के समाधान का मामला है.
Qआप संवाद से कहीं ज्यादा समस्या के समाधान की बात कर रहे हैं. क्या समस्या है ?
स्कूल में मास्टर नहीं हैं. डॉक्टर गांव जाते नहीं हैं. सड़क बनी है, लेकिन उन क्षेत्रों की सड़क देख लें. बिजली टाउन में नहीं है, वहां क्या होगी. कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है. यह कोई आज का मामला नहीं है. शुरू से ही अनदेखी होती रही है़
Qभाजपा का आरोप है कि पत्थलगड़ी के पीछे चर्च का हाथ है. आप इस अभियान को किस रूप में लेते हैं ?
शुरू से ही कहा है कि इसमें मिशन के लोग है़ं पत्थलगड़ी लोग नहीं कर रहे हैं, करवायी जा रही है़ पादरी लोग इसमें लगे है़ं ऐसे में ग्रामीणों के बीच सरकार को ही पहल करनी होगी. हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से नहीं चलेगा.
Qपूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा इस मुद्दे पर संवादहीनता का सवाल उठा रहे हैं. पत्थलगड़ी को समझने की बात कर रहे हैं ?
अर्जुन मुंडा ने भी सरकार चलायी है़ उनको भी मौका मिला है़ समस्या एक दिन में नहीं आयी है़ मुंडा जी ही बता सकते हैं कि क्या कारण था कि वह समाधान नहीं कर पाये़
Qसरकार चौतरफा घिरी है. विपक्ष इस मुद्दे पर हमला कर रही है ?
भाजपा, झामुमो, कांग्रेस, निर्दलीय सब सत्ता में रहे हैं. निर्दलीय में कई तो जेल में है़ं. झारखंड में यह गजब स्थिति है. जब सत्ता में रहेंगे,तो काम करेंगे नहीं. सत्ता के बाहर रहेेंगे, तो गाली देंगे. कल तक सरकार में थे, तो समस्या नहीं दिख रही थी. अब झामुमो, कांग्रेस को समस्या दिखने लगी़
आप भाजपा के सम्मानित नेता हैं. खूंटी का पिछले 50 वर्षों से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इसी खूंटी में, आपके घर पर हमला होता है. ये घटना कितनी विचलित करती है ?
देखिए, उन लोगों के लिए कोई बड़ा छोटा नहीं है. प्रधानमंत्री को भी धमकी दी जाती है. राजनीति में यह सब चलता रहता है. मैं इस घटना से विचलित नहीं हूं. मेरे अंगरक्षकों को लोग बहला-फुसला कर ले गये. हमारे परिवारवालों को कुछ नहीं किया है.
सरकार से कोई विशेष सुरक्षा मांगेंगे ?
भगवान ने भेजा है. जब तक रखना होगा, रखेंगे. मैं क्या सुरक्षा मांगूंगा. सरकार के मन में होगा, तो वह करेगी. मैं सुरक्षा मांगने कहीं नहीं जाने वाला हू़ं
अभी तो आप दिल्ली में हैं. खूंटी लौटेंगे, तो क्या पहल करेंगे. पत्थलगड़ी में शामिल गांव में घूमेंगे. लोगों को समझायेंगे ?
हम क्या समझायेंगे. हमारे लोग हमारी बात नहीं मानते, तो दूसरा क्या मानेगा़

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