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सरकारी अस्पतालों के जीवन रक्षक उपकरण 48 घंटे में किये जायेंगे ठीक

रांची : सरकारी अस्पतालों में लगे जीवन रक्षक उपकरण खराब होने की स्थिति में इन अस्पतालों को एक टोल-फ्री नंबर पर सूचित करना है. इसके बाद इंजीनियर संबंधित अस्पताल पहुंच कर उपकरण ठीक करेंगे. स्वास्थ्य विभाग ने मेडिसिटी हेल्थकेयर सर्विसेस प्रालि नाम की कंपनी के साथ उपकरणों को ठीक करने के लिए करार किया है. […]

रांची : सरकारी अस्पतालों में लगे जीवन रक्षक उपकरण खराब होने की स्थिति में इन अस्पतालों को एक टोल-फ्री नंबर पर सूचित करना है. इसके बाद इंजीनियर संबंधित अस्पताल पहुंच कर उपकरण ठीक करेंगे. स्वास्थ्य विभाग ने मेडिसिटी हेल्थकेयर सर्विसेस प्रालि नाम की कंपनी के साथ उपकरणों को ठीक करने के लिए करार किया है.

इस कंपनी ने सभी सरकारी अस्पतालों के लिए एक टोल-फ्री नंबर (1-800-270-4599) जारी किया है. इसी नंबर पर अस्पतालों को उपकरण खराब होने संबंधी सूचना देनी है. कंपनी के साथ हुए करार के मुताबिक जीवन रक्षक उपकरणों को सूचना मिलने के 48 घंटे के अंदर ठीक कर देना है. वहीं सामान्य उपकरणों के लिए यह समय सीमा सात दिन रखी गयी है. पर वही उपकरण ठीक किये जायेंगे, जो वर्तमान में चालू हैं. यानी वर्षों से खराब उपकरणों के लिए यह सुविधा नहीं है.

गौरतलब है कि राज्य भर के सरकारी अस्पतालों के करीब 16 हजार बायो मेडिकल उपकरणों में से 5644 लंबे समय से खराब हैं. निविदा के जरिये चयनित मेडिसीटी के साथ जून-2017 में हुए करार के बाद से अब तक कंपनी को कुल 972 कॉल मिले. इनमें से 772 उपकरणों को ठीक कर दिया गया है. परेशानी उन उपकरणों में है, जिनका मेक पुराना है तथा जिनके स्पेयर पार्ट्स बाजार में उपलब्ध नहीं हैं.

स्पॉट वेरिफिकेशन व निबंधन में विलंब
उपकरणों के खराब होने पर इन्हें ठीक कराने के लिए कंपनी व सरकार के बीच हुए करार में कुछ शर्तें तय की गयी हैं. इसके लिए सभी उपकरणों का स्पॉट वेरिफिकेशन जरूरी किया गया है. यानी कंपनी के लोग उपकरणों को जाकर देखते हैं तथा इसके बाद उसे निबंधित करते हैं. कंपनी बगैर निबंधन वाले उपकरण ठीक नहीं करती है.
इधर, कई अस्पतालों ने अपने सभी उपकरणों का निबंधन नहीं कराया है. अब कंपनी ने सभी अस्पताल प्रबंधन से कहा है कि वह जल्दी ऐसा करें. इसके बाद सभी अस्पतालों से एक फॉर्म पर हस्ताक्षर कराये जा रहे हैं. इसका मतलब है कि अब हमारे यहां बिना निबंधन वाले कोई उपकरण नहीं हैं. पर सरकारी अस्पताल प्रबंधन इस पूरी प्रक्रिया में सुस्ती दिखा रहे हैं.

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