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मातृभाषा को विकसित करने के लिए अपने गांव-घर में इसका प्रयोग करें : डॉ मसातो
विश्व मातृभाषा दिवस. कुड़ुख भाषा विकास छात्र संघ ने कार्यक्रम का आयोजन किया रांची : कुड़ुख भाषा विकास छात्र संघ ने बुधवार को आदिवासी छात्रावास, करम टोली के पुस्तकालय में विश्व मातृभाषा दिवस मनाया. इसमें टोक्यो विश्वविद्यालय जापान के भाषा वैज्ञानिक डॉ मसातो कोबायसी ने कहा कि कुड़ुख द्रविड़ भाषा परिवार की है, जो द्रविड़ […]
विश्व मातृभाषा दिवस. कुड़ुख भाषा विकास छात्र संघ ने कार्यक्रम का आयोजन किया
रांची : कुड़ुख भाषा विकास छात्र संघ ने बुधवार को आदिवासी छात्रावास, करम टोली के पुस्तकालय में विश्व मातृभाषा दिवस मनाया. इसमें टोक्यो विश्वविद्यालय जापान के भाषा वैज्ञानिक डॉ मसातो कोबायसी ने कहा कि कुड़ुख द्रविड़ भाषा परिवार की है, जो द्रविड़ परिवार की अन्य समृद्ध भाषाओं की तरह जीवित है़ यह पूरी दुनिया के लिए आश्चर्य की बात है़
उन्होंने कहा कि कुड़ुख भाषा व इसे बोलने वालों के प्रति मेरी गहरी जिज्ञासा है. इसलिए मैं इस भाषा पर शोध कर रहा हूं. अपनी मातृभाषा को विकसित करने के लिए अपने गांव-घरों में इसका प्रयोग करे़ं यदि नहीं जानते हैं, तो सीखने का प्रयास करे़ं
उरांव समाज की आत्मा है कुड़ुख भाषा : गीताश्री
विशिष्ट अतिथि पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि कुडुख भाषा उरांव समाज की आत्मा है़ यह अपने राज्य में ही उपेक्षित है़ संस्कृत विभाग में आठ प्रोफेसर हैं और कुडुुख विभाग में एक ही प्रोफेसर से काम चलाया जा रहा है़ यह झारखंड की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है़ इसे बचाने के लिए एकजुट हो कर संघर्ष करने व इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की जरूरत है़ कार्यक्रम में डॉ नारायण भगत, प्रो महामनी कुमारी व तेतरु उरांव ने भी विचार रखे़ आयोजन में संतोष तिग्गा, फुलेश्वर उरांव, शिवशंकर उरांव, कमला लकड़ा, सुनीता कुमारी, जानकी कुमारी आदि ने भूमिका निभायी.
रांची : विश्व मातृभाषा दिवस के अवसर पर राज्य सरकार के जल संसाधन तथा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री चंद्र प्रकाश चौधरी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है.
पत्र में उन्होंने झारखंड की मान्यता प्राप्त द्वितीय राजभाषाओं संताली, मुंडारी, कुडुख, खड़िया, हो, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया व कुरमाली को राजकीय कार्यों में प्रचलन में लाने का आग्रह किया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि इन भाषाओं का प्रयोग राज्य तथा केंद्र सरकार के विज्ञापन एवं सूचना पट्ट में अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए. एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं सभी सार्वजनिक स्थलों का नाम भी उस क्षेत्र की प्रचलित भाषा में लिखा जाना चाहिए.
श्री चौधरी ने लिखा है कि झारखंड की बहुसंख्यक आबादी गांवों में क्षेत्रीय भाषाओं को आसानी से समझती है. सरकारी स्तर पर इसके उपयोग से विलुप्त हो रही इन भाषाओं की लिपियों को संरक्षण एवं संबर्द्धन मिलेगा. भाषा समाज व व्यक्ति की पहचान है. किसी भी समाज का साहित्य, भाषा व संस्कृति मिटने से वह समाज स्वत: समाप्त हो जाता है. झारखंड में द्वितीय राजभाषाओं का दर्जा मिलने के बाद भी इन भाषाओं का अस्तित्व संकट के दौर से गुजर रहा है. इनके संरक्षण तथा संवर्द्धन की दिशा में सरकार को गंभीर होना होगा. झारखंड अलग राज्य के होने का मुख्य मानक भाषाई एवं सांस्कृतिक आधार ही था.
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