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झारखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी में दो कमेटियों का हुआ गठन

रांची : झारखंड टेक्निकल विवि में परीक्षा रेगुलेशन व सिलेबस कमेटी का गठन किया गया. ऐसा एआइसीटीइ द्वारा देश भर के इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए जनवरी 2018 में जारी किये गये बीटेक के कॉमन मॉडल सिलेबस लागू करने के उद्देश्य से किया गया है. इस कमेटी का गठन शनिवार को सीआइटी में झारखंड टेक्निकल विवि […]

रांची : झारखंड टेक्निकल विवि में परीक्षा रेगुलेशन व सिलेबस कमेटी का गठन किया गया. ऐसा एआइसीटीइ द्वारा देश भर के इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए जनवरी 2018 में जारी किये गये बीटेक के कॉमन मॉडल सिलेबस लागू करने के उद्देश्य से किया गया है. इस कमेटी का गठन शनिवार को सीआइटी में झारखंड टेक्निकल विवि के कुलपति डॉ गोपाल पाठक की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में किया गया. इस बैठक में राज्य के विभिन्न इंजीनियरिंग कॉलेजों के प्रतिनिधि उपस्थित थे.

कुलपति श्री पाठक ने बताया कि एआइसीटीइ के निर्देशानुसार बीटेक के विद्यार्थियों के लिए जो कॉमन मॉडल सिलेबस लागू किया गया है, उसके आधार पर ही झारखंड टेक्निकल विवि के सिलेबस का प्रारूप तैयार किया जाना है. पहले चरण में प्रथम व द्वितीय सेमेस्टर का सिलेबस तैयार किया जायेगा. बैठक में बीअाइटी सिंदरी, सीआइटी, आरटीसीआइटी, रांची, बीए कॉलेज, आरवीएस, मेरी लैंड इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जमशेदपुर, टेक्नो इंडिया रामगढ़ के अलावा यू सेट हजारीबाग से आये निदेशक, प्राचार्य व प्रतिनिधि उपस्थित थे.

बैठक में सीआइटी के प्राचार्य डॉ एसके सिंह, आरटीसीआइटी के प्राचार्य श्रवणी रॉय, डॉ नवीन कुमार सिन्हा, डॉ रणवीर सिंह, प्रो अरशद उस्मानी, ओएसडी कौशिक चांद आदि उपस्थित थे.

राजनीति में नहीं जाना चाहते थे पं दीनदयाल
पुण्यतिथि पर विशेष l मुझे चुनाव हारना मंजूर है, पर जातिवाद के नाम पर जीत कतई मंजूर नहीं
मंगल पांडेय
संगठन और समाज सर्वोपरि, संगठन में आंतरिक लोकतंत्र, मैं की जगह आप, अपनी फोटो और प्रसिद्धि से दूर रहकर काम करने की प्रेरणा देनेवाले संघ के जीवनव्रती प्रचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मन राजनीति में नहीं लगता था. 1950 में नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जनसंघ की स्थापना की. भारतीय राजनीति को एक नया मोड़ देने के लिए वे संघ के पास गये और कुछ प्रचारक देने की मांग की.
तत्कालीन संघ प्रमुख माधव सदाशिव राव गोलवलकर (श्रीगुरुजी) ने दीनदयालजी को बुलाया और जनसंघ में काम करने का कहा. श्रीगुरुजी के इस आदेश को सुन कर दीनदयालजी आश्चर्यचकित रह रह गये. उन्होंने कहा: आप मुझे कहां भेज रहे हैं. मेरी तो राजनीति में बिल्कुल रुचि नहीं है. इस पर श्रीगुरुजी ने हंसते हुए कहा कि इसलिए तो भेज रहा हूं. जब तुम्हारी रुचि राजनीति में जग जायेगी, तो वापस संघ में बुला लूंगा.
पंडित जी ने घर गृहस्थी की जगह संघ के माध्यम से देश की सेवा को अपनी जिंदगी का मिशन बनाया. वे कहते थे हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता है, केवल भारत नहीं. माता शब्द हटा दिया जाये, तो भारत केवल जमीन का टुकड़ा मात्र रह जायेगा. दीनदयाल जी ने एकात्म मानववाद के द्वारा समाजवाद, साम्यवाद, पूंजीवाद और भौतिकतावाद को चुनौती दी. संघ के विचारों से ओत-प्रोत दीनदयालजी हमेशा कहा करते थे कि हम राजनीति में राष्ट्रहित के लिए आये हैं. हमें भारत माता को सभी संकटों से मुक्त करा कर देश को परम वैभव के स्थान पर स्थापित कराना है.
एक बार कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट कहा कि जनसंघ सिर्फ सत्ता पिपासा के लिए नहीं है. हर हाल में सत्ता से चिपके रहने के लिए हम राजनीति में काम नहीं कर रहे हैं. जनसंघ सत्ता तो चाहता है, लेकिन राजनीति के लिए नहीं वरन राष्ट्रहित के लिए. जब वे जौनपुर से चुनाव लड़े, तब उन्होंने जातिवाद का जबर्दस्त विरोध किया. इस कारण अकेले ब्राह्मण उम्मीदवार होने और ब्राह्मण बहुल क्षेत्र होने के बावजूद वे चुनाव हार गये. इस चुनाव के बाद दीनदयालजी ने कहा मुझे चुनाव हारना मंजूर है, पर जातिवाद के नाम चुनाव जितना कतई मंजूर नहीं है.
दीनदयालजी 1937 में भाऊराव देवरस के संपर्क में आये और संघ के स्वयंसेवक बने. 1942 में वे लखीमपुर (उत्तर प्रदेश) के जिला प्रचारक नियुक्त किये गये. बाद में विभाग प्रचारक रहते हुए वे 1945 में उत्तरप्रदेश के सह-प्रांत प्रचारक बने. बाद में वे उत्तरप्रदेश जनसंघ के संगठन मंत्री बने. 1952 में जनसंघ का पहला अधिवेशन कानपुर में हुआ. इस अधिवेशन में देश भर से आये कार्यकर्ताओं ने पहली बार दीनदयालजी की वैचारिक योग्यता और राजनैतिक प्रखरता को करीब से देखा.
वे 1967 से लेकर 15 वर्ष तक जनसंघ के अखिल भारतीय महामंत्री रहे. दिसंबर 1967 में केरल के कालीकट अधिवेशन में जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया. 11 फरवरी 1968 को रेल यात्रा के दौरान, रहस्यमयी परिस्थितियों में उनका देहांत हो गया. मुगलसराय में रेलवे पटरी के किनारे उनका शव पाया गया.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
घर गृहस्थी की जगह संघ के माध्यम से देश की सेवा को अपनी जिंदगी का मिशन बनाया
1967 से लेकर 15 वर्ष तक जनसंघ के अखिल भारतीय महामंत्री रहे
दिसंबर 1967 में केरल के
कालीकट अधिवेशन में जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया.
फरवरी 1968 को रेल यात्रा के दौरान, रहस्यमयी परिस्थितियों में उनका देहांत हो गया

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