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“नाची से बांची” गांवों तक पहुंचे, ताकि नये रामदयाल मुंडा खड़े हों

रांची : मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में झारखंड के फिल्मकार मेघनाथ और बीजू टोप्पो की फिल्म ‘नाची से बांची‘ को स्पेशल ज्यूरी अवार्ड से सम्मानित किया गया. फिल्म फेस्टिवल में जब यह फिल्म दिखायी गयी, तो कई लोगों ने डॉ रामदयाल मुंडा के विषय में और जानने की इच्छा जतायी. फिल्मकार मेघनाथ और बीजू टोप्पो […]

रांची : मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में झारखंड के फिल्मकार मेघनाथ और बीजू टोप्पो की फिल्म ‘नाची से बांची‘ को स्पेशल ज्यूरी अवार्ड से सम्मानित किया गया. फिल्म फेस्टिवल में जब यह फिल्म दिखायी गयी, तो कई लोगों ने डॉ रामदयाल मुंडा के विषय में और जानने की इच्छा जतायी.

फिल्मकार मेघनाथ और बीजू टोप्पो ने जिस सोच के साथ इस फिल्म की परिकल्पना की थी, वह पूरी तरह सफल हुई. सम्मान मिलने के बाद मेघनाथ और बीजू हमारे आग्रह पर प्रभात खबर कार्यालय पहुंचे. इस फिल्म को लेकर उनकी सोच क्या थी ? आगे की योजना क्या है ? इस क्षेत्र में आ रहे युवाओं के लिए कितनी संभावना है ? ऐसे कई सवालों का जवाब दिया. पढ़ें इस फिल्म को बनाने में मेघनाथ, बीजू और युवा साथी रूपेश इस पूरे सफर पर क्या कहते हैं?

आइए पहले जान लें इन फिल्मकारों का संक्षिप्त परिचय
मेघनाथ
खुद को पहले सामाजिक कार्यकर्ता बतानेवाले मेघनाथ अपने सफर का जिक्र करते हुए कहते हैं, 1971 से समाज सेवा का काम कर रहा हूं. 90 के दशक में फिल्मों की तरफ आया. इसके जरिये भी सामाजिक मुद्दों को ही उठाने की कोशिश की. तब आदिवासी समाज के सवाल उठानेवाले गिने-चुने लोग थे, जिनमें वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश, फैसल अनुराग, उत्तम सेनगुप्ता जैसे नाम शामिल थे. यहां की आवाज और मुखर हो, इसलिए हमने 1992 में अखरा की शुरुआत की. इस मंच के तहत बननेवाली पहली फिल्म थी ‘शहीद जो अनजान हैं’.
बीजू
इनकी भी शुरुआत अखरा मंच के ही साथ हुई. इन्हें छात्र जीवन से ही फोटोग्राफी का शौक था. इसी क्षेत्र में काम करना शुरू हुआ. फिल्म की तरफ रुख यह सोचकर किया कि अपनी बात अब खुद कहनी होगी. इस दौरान वह कई अखबारों में फोटोग्राफ के रूप में कार्य करता रहा.
रूपेश
रांची के संत जेवियर कॉलेज में मेघनाथ के छात्र रहे. पढ़ाई खत्म हुई तो फिल्मों की तरफ रुझान बढ़ गया अब मेघनाथ के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. साउंड और असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम करने के अनुभवी.
पुरस्कार से खुश हैं, लेकिन असल सफलता तब होगी जब फिल्म की पहुंच गावों तक होगी
मेघनाथ फिल्म को पुरस्कार मिलने पर बेशक खुशी जताते हैं. वह कहते हैं कि अच्छा लगता है जब आपकी मेहनत को सम्मान मिलता है. लेकिन इस फिल्म को लेकर हमारी सफलता तब होेगी, जब इसे गांव-गांव में दिखाया जायेगा. हमारा उद्देश्य डॉ रामदयाल मुंडा के व्यक्तित्व को गांवों तक पहुंचाना है, ताकि गांवों से नया रामदयाल मुंडा निकले. यह फिल्म विद्यार्थियों को प्रेरित करनेवाली है.
झारखंड में ऐसे कई गुमनाम लोग हैं, उन पर भी कहानियां सामने आनी चाहिए
झारखंड के ऐसे कई नाम हैं जो चुपचाप काम कर रहे हैं और गुमनामी में हैं. बीजू टोप्पो कहते हैं, यह हमारी जिम्मेदारी है कि ऐसी कहानियाें को सामने लाया जाये. ‘शहीद जो अनजान हैं’ से हमने यह कोशिश की है. सिमोन उरांव ने पढ़ाई नहीं की लेकिन पानी के लिए जिस तरह का काम, पर्यावरण पर काम किया, इसी के लिए उन्हें पद्मश्री का सम्मान मिला. ऐसे कई लोग हैं. मेघनाथ पूछते हैं आपने "भाग मिल्खा भाग" देखी है? उससे भी बड़ी कहानी अपने यहां गंगाराम कालुंडिया जी की है, जिनकी बाद में गोली मारकर हत्या कर दी गयी. इस विषय में प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादक अनुज कुमार सिन्हा की पुस्तक ‘शोषण, संघर्ष और शहादत‘ में जिक्र है. ऐसी कई कहानियां है जो सामने आनी चाहिए.
झारखंड में फिल्मकारों का भविष्य क्या है?
इस सवाल पर मेघनाथ मुस्कुराते हुए कहते हैं, झारखंड में डाॅक्यूमेंटरी का पैसा देने के लिए कोई नियम नहीं बनाया है. यहां फिल्म दिखाने के लिए न कोई जगह है, न एक्सपोजर. जब तक यहां फिल्म दिखाने के लिए कोई जगह नहीं होगी, तब तक लोगों का परिचय कैसे होगा? कोई चैनल है जो डाॅक्यूमेंटरी दिखाता है? नहीं. बीजू बताते हैं कि हमारे वक्त का दौर था जब वीएचएस (वीडियो होम सिस्टम) में बनाते थे, जिसकी उम्र पांच-छह साल होती थी. हमें लगता था जब इसे दिखा नहीं पा रहे, तो क्यों बना रहे हैं. हमारे वक्त से बहुत बदलाव आया है. इस बारे में युवा रूपेश कहते हैं, यहां फिल्ममेकर कम हैं. न्यू मीडिया ने बहुत कुछ बदला है. कुछ लोग मोबाइल पर भी फिल्में बना ले रहे हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर मसालेदार किस्म की होती हैं. फिल्म मेकिंग के क्षेत्र में सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं है. हमें जो भी करना है, वह खुद करना होगा. एक माहौल तैयार होना चाहिए, ताकि हम गांव में जाकर फिल्में दिखा सकें.
अब आगे क्या योजना है?
मेघनाथ कहते हैं, हम डाॅ रामदयाल मुंडा की विचारधारा के साथ आगे बढ़ेंगे. एक समूह बना है, जिसमें उनकी पुस्तकें और कई चीजें सामने लेकर आयेंगे. फिल्म में पहली बार रामदयाल मुंडा के गले की आवाज आपको सुनने के लिए मिलेगी. अंडमान में भी एक फिल्म बनाने की योजना बना रहे हैं. 1918 में झारखंड के लोग पहली बार अंडमान काम करने गये. यह रोजगार की तलाश में अंडमान जाने का 100वां साल है.
फिल्म ‘नाची से बांची‘ में खास क्या है?
फिल्म डॉ रामदयाल मुंडा के सफर की कहानी है. कैसे झारखंड का एक व्यक्ति अमेरिका तक पहुंचा. वहां की सारी सुख-सुविधाएं छोड़ कर वापस आ गया. इस फिल्म में रामदयाल मुंडा के बेटे "गुंजन" की तरफ से कहानी दिखाने की कोशिश की गयी है. हमने उन्हें फर्स्ट पर्सन के रूप में रखा है. एक बेटा अपने पिता के अधूरे काम को ढूंढ़ रहा है, उसे पूरा करने का सपना पाले है. इस फिल्म में कई रेयर फुटेज हैं. फिल्म के लिए काफी शोध किया गया है, उनके पुराने फुटेज खंगाले गये हैं.
कौन सी फिल्में, पुस्तक पसंद हैं?
मेघनाथ की पसंदीदा पुस्तक है Savaging the Civilized. इस पुस्तक को पढ़कर लगता है कि हमें भी खुद को खोजना चाहिए. कहां लोग इंग्लैंड से आकर काम करके चले गये.
राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक घुमक्कड़-शास्त्र पढ़ कर हम जिंदगी भर घुमक्कड़ बन कर रह गये. पसंद के गाने के सवाल पर मेघनाथ दा एक किस्सा सुनाते हैं. जब वह चौथी कक्षा में थे, उनकी शिक्षिका ने उनसे गाना गाने को कहा था. उन्होंने शम्मी कपूर का एक गाना गाया था – तुमसे मोहब्बत हो गयी है, मुझे पलकों की छांव में रहने दो…
बीजू को रंजन पालित कैमरामैन के रूप में पसंद हैं. बीजू कहते हैं – किसी फिल्म इंस्टीट्यूट से तो सीखा नहीं है, जो भी सीखा देखकर ही सीखा है. सबसे अच्छी फिल्म पाथेर पांचाली.
रूपेश के पसंददीदा डॉयरेक्टर आनंद पटवर्धन, सत्यजीत रे हैं.
इनकी वैसी फिल्में जिन्हें सम्मान मिला
डेवलपमेंट फ्लो फ्रॉम बैरल ऑफ द गन -2003
Best Documentary- Forest for Life Award, CMS Vatavaran -2005
कोरा राजी– 2005
Second Best Documentary Award, Silver Conch- MIFF- 2006
गाड़ी लोहरदगा मेल– 2006
Best Short Film Award, 2nd International Folk Music Film Festival Kathmandu, Nepal- 2010
एक रोपा धान- 2010
1. IDPA’s Silver award- 2009
2. National Award, Best Promotional Film- 2010
आयरन इज हॉ़ट– 2010
1. IDPA’s Gold Award, Best Film on Environment – 2008
2. Indian Roller Award, at Karimnagar Film Society, Hyderabad – 2009
3. National Award, Best Environment Film- 2010
द हंट -2015
1. Special Jury Award (INDIA), 8th CMS Vatavaran New Delhi- 2015
2. Best Short Documentary Award, 9th IDSFFK, Kerala-2016
3. Best Documentary Award, 2nd International Film Festival Shimla-2016
4. Best Cinema of Resistance Award, 10th SIGNS Festival Kerala -2016
5. Best Documentary Award (National Category)2nd Bodhisattva International Film Festival Patna-2017
6. Silver Award, 12th IDPA’s Awards for Excellence 2017
नाची से बांची– 2017
1. Judges Choice Award, 7th International Folk Music Film Festival Kathmandu, Nepal- 2017
2. Special Jury Mention, 15th Mumbai International Film Festival (MIFF) 2018
‘नाची से बांची’ फिल्म कैसे देख सकते हैं?
बीजू कहते हैं, फिल्म अभी सोशल प्लेटफाॅर्म पर उपलब्ध नहीं है. हमारी ना सिनेमाघरों में जान पहचान है, जिसे वहां रिलीज किया जाये. लेकिन जो लोग भी देखना चाहते हैं, वह मेघनाथ जी से संपर्क कर सकते हैं.

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