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झारखंड : पहाड़ी मंदिर की दुर्दशा पर बोली स्व बुधुवा पाहन की पत्नी बर्बाद होता नहीं देख सकती, आंखें भी भर आयीं
रांची : जो रांची पहाड़ी पर स्थित पहाड़ी बाबा के मंदिर के महत्व को समझते और जानते हैं, वे स्व बुधुवा पाहन को भी जानते ही होंगे. उन्होंने पहाड़ी बाबा के मंदिर को संवारने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. आज भी उनके परिवार के लोग उनके द्वारा स्थापित परंपरा को उसी शिद्दत से निभाते […]
रांची : जो रांची पहाड़ी पर स्थित पहाड़ी बाबा के मंदिर के महत्व को समझते और जानते हैं, वे स्व बुधुवा पाहन को भी जानते ही होंगे. उन्होंने पहाड़ी बाबा के मंदिर को संवारने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. आज भी उनके परिवार के लोग उनके द्वारा स्थापित परंपरा को उसी शिद्दत से निभाते आ रहे हैं. ‘प्रभात खबर’ ने जब पहाड़ी मंदिर की दुर्दशा को लेकर खबर प्रकाशित की, तो स्व बुधुवा पाहन के परिवार के लोग भी चिंतित हो उठे. उनकी 75 वर्षीय पत्नी सुलगन देवी से रविवार को जब प्रभात खबर ने बातचीत की, तो उनकी आंखें भर आयीं.
बुझी हुई आंखों में आंसू लिये सुलगन बताती हैं : मेरे पति स्व बुधुवा पाहन ने दिन-रात पहाड़ी बाबा की सेवा की. पहाड़ी पर पहले पत्थरों से बनी सीढ़ियां थीं. बुधुवा पाहन और उनके साथियों ने गुड़-सत्तू खाकर दिन-रात की मेहनत से यहां स्थायी सीढ़ियां बनायीं. आज उसी पहाड़ी की दुर्दशा हो गयी है.
बाबा के मंदिर में भी दरारें आ गयीं. पहाड़ी अौर बाबा के मंदिर को बर्बाद होता देख रोना आता है. पहाड़ी बाबा का मंदिर हम सभी का है. इसे बचाना है, तो सभी को एकजुट होकर आगे आना होगा. पहाड़ी में जो झंडा का पोल लगाया है, उसे हटाया जाना चाहिए.
जिन्होंने मंदिर के लिए सबकुछ न्योछावर किया उन्हें सम्मान नहीं मिला
सुलगन कहती हैं : कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए पहाड़ी मंदिर को बर्बादी की ओर धकेल दिया. यहां श्रमदान और महीनों की मेहनत से एक हॉल बनाया गया था, जहां श्रद्धालु अपनी थकान मिटाते थे. दु:ख इस बात का लगता है कि मेरे पति बुधुवा ने कार सेवा की, अपना पूरा जीवन बाबा की सेवा में लगा दिया. वे खुद ही नीचे से ईंट-बालू उठाकर मंदिर तक ले जाते थे. उनके साथ कई पुराने लोग थे, जिन्होंने मंदिर बनाने में अपनी अहम भूमिका निभायी है. लेकिन, आज उन लोगों को सम्मान भी नहीं मिलता है.
पहाड़ी मंदिर विकास समिति के लोगों ने पाहन का सम्मान भी नहीं किया.
बाबा को राग-भोग लगाना बंद हो गया : सुलगन बताती हैं कि यहां पहाड़ी कोपाहन रीति रिवाज से राग-भाेग लगाया जाता था. आज वह भी बंद हो चुका है. हम लोग पहाड़ी पर ही अपने हाथों से राग-भाेग तैयार करते थे और बाबा को चढ़ाया करते थे. इसके अलावा बाबा के नाम पर हम सभी राशि भी इकट्ठा करते थे, जो पहाड़ी मंदिर विकास समिति के पास जमा किया जाता था. हम समझते थे कि यह राशि मंदिर के विकास के लिए सरकार के खजाने में जा रही है. लेकिन, आज तक उसका कोई हिसाब हमें नहीं मिला.
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