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झारखंड : दुनिया का सबसे ऊंचा तिरंगा लगाने की जिद से दरक गयी ”पहाड़ी”, जानें…

राजधानी रांची के बीचोबीच स्थित ऐतिहासिक महत्व वाले पहाड़ी मंदिर (शिवालय) का अस्तित्व खतरे में है. पहाड़ी बाबा (भगवान शिव) के मुख्य मंदिर की दीवारें दरक गयी हैं. मंदिर की दायीं ओर दीवार का सीमेंट पूरी तरह झड़ चुका है. अंदर की छड़ें भी दिख रही हैं. मंदिर की पूर्वी छोर की दीवार में दरारें […]

राजधानी रांची के बीचोबीच स्थित ऐतिहासिक महत्व वाले पहाड़ी मंदिर (शिवालय) का अस्तित्व खतरे में है. पहाड़ी बाबा (भगवान शिव) के मुख्य मंदिर की दीवारें दरक गयी हैं. मंदिर की दायीं ओर दीवार का सीमेंट पूरी तरह झड़ चुका है. अंदर की छड़ें भी दिख रही हैं.
मंदिर की पूर्वी छोर की दीवार में दरारें साफ दिख रही हैं. मुख्य मंदिर तक जानेवाली सीढ़ियों की दोनों दीवारों पर भी दरारें आ गयी हैं. कुल मिलाकर वर्षों पुराना यह मंदिर खंडहर में तब्दील होता जा रहा है, लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं है. न तो पहाड़ी मंदिर विकास समिति को इससे कोई मतलब है और न ही जिला प्रशासन को. पहाड़ी बाबा में आस्था रखनेवाले लाखों लोगों और पर्यावरणविदों का आरोप है कि बीते कुछ वर्षों में जिस तरह से पर्यावरण के मानकों को ताक पर रखकर पहाड़ी मंदिर परिसर में अंधाधुंध निर्माणकार्य कराये गये हैं, उन्हीं की वजह से आज पहाड़ी बाबा का आसान डोलने लगा है. प्रस्तुत है राजेश तिवारी और दुष्यंत तिवारी की रिपोर्ट…
पहाड़ी मंदिर करीब 24 एकड़ में फैला हुआ है. भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर कई ऐतिहासिक तथ्यों को संजाेये हुए है. यह धार्मिक आस्था के साथ-साथ देशभक्तों के बलिदान के लिए भी जाना जाता है. यह देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां 15 अगस्त व 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है. यह परंपरा यहां पर 15 अगस्त 1947 से चली आ रही है.
पहाड़ी मंदिर का पुराना नाम टिरीबुरू था, जो आगे चलकर ब्रिटिश हुकूमत के वक्त फांसी टुंगरी में बदल गया. अंग्रेजी हुकूमत के समय देशभक्तों व क्रांतिकारियों को यहां फांसी दी जाती थी. फांसी के बाद शव को हरमू नदी ले जाया जाता था. आजादी के बाद रांची में पहला तिरंगा झंडा इसी पहाड़ी मंदिर पर रांची के ही स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने फहराया था. उसी समय से हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहां तिरंगा फहराया जाता है.
मौजूदा समय में पहाड़ी मंदिर परिसर केवल प्रायोगिक स्थल बनकर रह गया है. जबकि, भूगर्भवेत्ता और पर्यावरणविद कई मौकों पर यह कह चुके हैं कि पहाड़ी मंदिर परिसर में किसी तरह का निर्माण कार्य पूरी पहाड़ी के लिए खतरनाक है. अगर इसे बंद नहीं किया गया, तो पहाड़ी बाबा का मंदिर और पहाड़ी दोनों ही कभी भी भरभरा कर गिर जायेंगे. इस चेतावनी के बावजूद यहां निर्माण कार्य हो रहे हैं.
सबसे पहले यहां मुख्य मंदिर के समीप एक बड़ा हॉल बना, जिसमें श्रद्धालु थोड़ी देर रुकते थे. यहां तक तो ठीक था, लेकिन उसके बाद पहाड़ी पर रांची पुलिस का टेट्रा वायरलेस टावर लगाया गया. उसके बाद करीब दो साल पहले पहाड़ी पर ही 493 फीट ऊंचा फ्लैग पोल लगाया गया. इन सबके लिए काफी तोड़फोड़ की गयी, जिसमें मुख्य मंदिर के पास बना हॉल भी तोड़ दिया गया. मौजूदा हालत यह है कि जो भी तोड़फोड़ की गयी थी, उन्हें आज तक दुरुस्त नहीं किया गया है.
फिलहाल, पहाड़ी मंदिर तक रोप-वे लगाने की योजना पर तेजी से विचार चल रहा है. हालांकि, डेढ़ माह से मंदिर परिसर में निर्माण कार्य बंद है. जब इस संबंध में पहाड़ी मंदिर विकास समिति के संयोजक अमित कुमार से पूछा गया, तो उनका दो टूक जवाब था : मंदिर के निर्माण कार्य में क्यों विलंब हो रहा है, इस विषय में मैं कुछ भी नहीं कह सकता.

पहाड़ी मंदिर का धार्मिक महत्व

आम दिनों के अलावा सावन के महीने में लाखों लोग पहाड़ी बाबा के जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं. इसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों के लोग भी शामिल होते हैं. शिवरात्रि में यहां शिव महोत्सव आयोजित होता है. मंदिर के समीप ही भगवान राम और बजरंग बली की भी प्रतिमाएं हैं. मुख्य मंदिर के ही समीप पत्थर के रूप में आदिवासियों के भी देवता स्थापित हैं, जिन्हें वे पहाड़ी देवता कहते हैं. आज भी आदिवासी, लोहार व कुम्हार अपने बच्चों व परिवार के कल्याण के लिए पहाड़ी देवता से मन्नत मांगते हैं. आदिवासियों की गहरी श्रद्धा पहाड़ी देवता पर है. इसके अलावा पहाड़ी मंदिर के नीचे पूजन सामग्री की दुकानें लगानेवाले सैकड़ों लोगों का भरण-पोषण भी पहाड़ी बाबा की वजह से ही होता है.
यहीं से हालात बिगड़ने लगे

सबसे ऊंचा तिरंगा फहराने के लिए लगाया फ्लैग पोल

दो साल पहले पहाड़ी मंदिर पर 493 फीट ऊंचे फ्लैग पोल स्थापित किया गया, जिस पर 23 जनवरी 2016 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर 30.17 मीटर लंबे और 20.12 मीटर चौड़ा तिरंगा झंडा फहराया गया. तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने पहाड़ी मंदिर के नीचे बने समारोह स्थल से बटन दबाकर यह तिरंगा फहराया था. झंडे आैर फ्लैग पोल के लिए उद्योगपति विष्णु अग्रवाल ने पहाड़ी मंदिर विकास समिति को एक करोड़ 80 लाख रुपये दिये थे.
मौजूदा समय में इस फ्लैग पोल का रख-रखाव भी सही ढंग से नहीं हो रहा है. झंडा चढ़ाने वाला मोटर भी कई महीनों से खराब पड़ा है. झंडा के लिए लगाया गया पोल अब केवल दिखावा मात्र ही रह गया है. करोड़ों की मशीनें वहां धूल फांक रही हैं. पोल के अासपास कई लोहे की छड़ें निकले हुई हैं, जो कभी भी हादसे का सबब बन सकती हैं.

झंडा का विवरण

ऊंचाई : 81 मीटर,
लंबाई व चौड़ाई : 99 व 66 मीटर
वजन: 60 किग्रा
फाउंडेशन की ऊंचाई : 4.5 मीटर
खर्च : 1.25 करोड़ रुपये
2 नवंबर 2015 से शुरू हुआ काम
शिलान्यास के 40 दिनों बाद झंडा का काम खत्म हुआ. झंडे का मास्ट लगाने के कार्य में 60 मजदूर लगे उर्मिला कंस्ट्रक्शन के दीपक बरथुआर की देखरेख में निर्माण कार्य चला. इसके अलावा पहाड़ी मंदिर विकास समिति के सभी सदस्यों ने सक्रिय भूमिका निभायी.
इस क्रम में खड़ा किया गया फ्लैग पोल
पहला पोल – 16 दिसंबर
दूसरा पोल-26 दिसंबर
तीसरा पोल-30 दिसंबर
चौथा पोल-31 दिसंबर
पांचवां व छठा पोल-7 जनवरी
सातवां व आठवां पोल-8 जनवरी

दरक रहीं मुख्य मंदिर की दीवारें

रांची पहाड़ी पर स्थित भगवान भोलेनाथ के मुख्य मंदिर की दीवारों में दरारें साफ दिखाई दे रही हैं. वहीं जिस पिलर पर मुख्य मंदिर टिका हुआ है, उसका प्लाटर भी झड़ रहा है. अगर अब भी जिला प्रशासन आंखें मूंद कर रहा, तो कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है.
ऐसे संकट में आया पहाड़ी मंदिर

पुलिस का टेट्रा वायरलेस टावर भी पहाड़ी को क्षतिग्रस्त किया

इन तीन-चार वर्षों के अंतराल में पहाड़ी मंदिर को प्रयोगशाला बना दिया गया है. पहाड़ी मंदिर के पश्चिम दिशा में पुलिस विभाग का टेट्रा वायरलेस टावर खड़ा किया गया है. करीब 26 लाख रुपये की लागत से लगाये गये इस टावर को खड़ा करने के लिए कई पेड़ भी काट दिये गये. इस वजह से पहाड़ी पर बड़ी मात्रा में मिट्टी का कटाव शुरू हो गया. नतीजतन, समय-समय पर पहाड़ी के कई हरे पेड़ धराशायी हो जा रहे हैं.
वर्षों पहले श्रमदान से बना था हॉल, उसे भी तोड़ दिया
सबसे ऊंचा फ्लैग पोल लगाने के नाम पर पहाड़ी मंदिर में सैकड़ो हरे-भरे वृक्षों को काटा गया. वहीं, जीर्णोद्धार के नाम पर वर्ष 1998 में बने सार्वजनिक हॉल को भी तोड़ दिया गया, जो आज भी उसी हाल में है. इस हॉल को बनाने में कई सामाजिक लोगों, व्यवसायियों व नेताओं ने भी सहयोग किया था. भाजपा सांसद रामटहल चौधरी ने एक लाख 98 हजार रुपये की राशि सहयोग के तौर पर दी थी. वहीं, व्यवसायी प्रेम शंकर चौधरी ने 7.5 लाख रुपये दिये थे.
यह हॉल लोगों के श्रमदान से तैयार हुआ था. हजारों स्थानीय लोगों आैर शिवभक्ताें ने भी इसके निर्माण में मजदूरों की तरह काम किया था. बुधवा पाहन की पूरी टीम ने हाॅल को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. इस हॉल के तोड़े जाने से पहाड़ी मंदिर में आनेवाले वृद्धों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इस हॉल में शादी विवाह, मुंडन आदि अनुष्ठान भी हुआ करते थे, जो अब बंद हो गये हैं. मंदिर आनेवाले भक्त हॉल ताेड़ने के लिए पहाड़ी मंदिर विकास समिति काे काेस रहे हैं.

पहाड़ी मंदिर विकास समिति व प्रशासन को कोस रहे शिवभक्त

रांची पहाड़ी व बाबा के मंदिर की जो दुर्दशा हुई है, उसके लिए पहाड़ी मंदिर विकास समिति व जिला प्रशासन को लोग कोस रहे हैं. क्योंकि, पहाड़ी में जितने भी निर्माण कार्य हुए, वे विकास समिति की देखरेख में ही हुए हैं. वहीं, जिला प्रशासन भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है.
पूर्व एसडीओ अमित कुमार इस समिति के संयोजक थे. लोगों का कहना है कि बाबा तक पहुंचने के लिए सिर्फ सीढ़ियां ही काफी थीं. कई हरे-भरे वृक्ष काट दिये गये हैं, जो पहाड़ को मजबूती दे रहा था. यह गलत हो गया. अब जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है, तो समिति व प्रशासन के लोग ध्यान भी नहीं दे रहे हैं.

न तो पहाड़ी मंदिर विकास समिति को चिंता न प्रशासन को

पर्यावरण मानकों को ताक पर रखकर पहाड़ी मंदिर परिसर में किये गये कई निर्माण कार्य
खंडहर की तरह दिख रहा मुख्य मंदिर, दीवारों, पिलर और सीढ़ियों में पड़ी दरार
तेजी से हो रहा मिट्टी का कटाव, गिर रहे हैं पेड़, हर साल गर्मी में लगती है आग
मुख्य मंदिर के पास बने हॉल को तोड़े जाने से कुंठित हैं यहां आनेवाले हजारों श्रद्धालु
जिन निर्माणों को जीर्णोद्धार के नाम पर तोड़ा गया, अब तक उन्हें दोबारा बनाया भी नहीं है

पहाड़ी पर निर्माण कार्य खतरनाक

रांची पहाड़ी करोड़ों वर्ष पुरानी है. शायद यह विश्व के प्राचीनतम पहाड़ियों में से एक है. यह अनंत काल से छोटानागपुर में होनेवाले भूगर्भिक बदलाव का अकेला सबसे बड़ा और पुराना गवाह है. यह पहाड़ी मुख्यत: कायांतरित शैल चट्टानों से निर्मित है, यह धारवाड़ काल का है, जिसकी आयु लगभग 3500 मिलियन वर्ष है.
कुछ भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इस पहाड़ की आयु 980 से 1200 मिलियन वर्ष है. इस पहाड़ के चट्टान का भौगोलिक नाम गारनेटिफेरस सिलेमेनाइट शिष्ट है. इसे खोंडालाइट के नाम से पुकारा जाता है. इसमें किसी भी तरह के भारी निर्माण कार्य मना है. यह पहाड़ मिट्टी वाला पहाड़ है और तीखा ढाल भी है. कहीं-कहीं पत्थर है पर वो भी अपरदित हो चुका है. रांची पहाड़ी में निर्माण कार्य खतरनाक है.

पहाड़ी मंदिर की दुर्दशा पर बात करते हुए रो पड़े देवेंद्र

पहाड़ी मंदिर की दुर्दशा के बाबत सवाल करने पर यहां के सेवादार देवेंद्र रो पड़े. कहा : वर्ष 1957 से पहाड़ी को देखता आ रहा हूं. पहले पहाड़ी हरी-भरी लगती थी, आज उजाड़ सी हो गयी है. पहाड़ी की दुर्दशा देखकर रोना आता है. झंडा लगाने को लेकर पहाड़ी की दुर्दशा हो चुकी है. दु:ख इसलिए होता है, क्योंकि पहाड़ी मंदिर बनाने के लिए हमलोगों ने कारसेवा की है.

मंदिर की मौजूदा स्थित से आहत हैं रघुनाथ ठाकुर

मंदिर के सेवादार रघुनाथ ठाकुर भी मंदिर की मौजूदा स्थिति से आहत हैं. वे कहते हैं : मैं पिछले करीब 40 वर्षों से पहाड़ी मंदिर में हूं. पहले यह मंदिर परिसर बहुत सुंदर लगता था. अब पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है. पहाड़ी मंदिर की दुर्दशा को देख कर काफी दु:ख होता है.

हरि जालान ने इस्तीफा दिया

हरि जालान ने पहाड़ी मंदिर विकास समिति के कोषाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. सदर एसडीओ एके सत्यजीत को इस्तीफा सौंपते हुए उन्होंने मुकेश अग्रवाल को कोषाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया है. हालांकि, एसडीओ ने उन्हें 31 जनवरी तक बैंक पासबुक, पिछले साल की ऑडिट रिपोर्ट व अब तक के रिटर्न फाइल के दस्तावेज सौंपने का आदेश दिया है. इसके बाद ही इस्तीफा स्वीकार्य होगा.
पहाड़ी मंिदर विकास समिति पर उठ रहीं उंगलियां
निर्माणकर्ता
मैं इस मामले में किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहता हूं. इसी वजह से आगे कदम नहीं बढ़ा रहा हूं. वैसे भी पहाड़ी मंदिर विकास समिति को पहले ही आगाह भी कर दिया था. निर्माण कार्य भी रुका हुआ है, क्याेंकि पहाड़ी मंदिर विकास समिति के पास फंड की कमी हो गयी है.
दीपक बरथुआर, उर्मिला कंस्ट्रक्शन
अधिकारी
पहाड़ी मंदिर से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है. इस ऐतिहासिक शिवालय को स्थायित्व प्रदान करना हमारी प्राथमिकता है. जरूरत इस बात की है कि जीर्णोद्धार की योजना बने, क्योंकि पहाड़ी मंदिर को बचाना है. पहाड़ी मंदिर विकास समिति के कोषाध्यक्ष से पूरा लेखाजोखा मांगा गया है.
एके सत्यजीत, एसडीओ सदर
आम आदमी
पहाड़ी की ऐसी दुर्दशा फ्लैग पोल की वजह से हुई है. अब तो यहां तिरंगा नहीं फहराया जा रहा. फ्लैग पोल को पहाड़ी मंदिर से हटाकर मोरहाबादी मैदान में शिफ्ट कर दिया जाये. हम पहाड़ी मंदिर का अस्तित्व बचाने की मांग करते हुए 23 जनवरी से पहाड़ी मंदिर के मुख्य द्वार के पास अनशन करने जा रहे हैं.
उत्तम यादव, अध्यक्ष, राष्ट्रीय युवा शक्ति
लोगों ने दिये सुझाव
मिट्टी का कटाव रोकने के लिए पूरी पहाड़ी पर ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाये जायें और मिट्टी भरी जाये
पहाड़ी के चारों तरफ 24 लाख की लागत से लगायी गयी जाली क्षतिग्रस्त हो गयी है. इसकी मरम्मत हो.
पहाड़ी से सूखे पत्तों को हटाया जाना चाहिए, ताकि इसकी वजह से गर्मी में आग न लगे.
रात में मंदिर परिसर शराबियों व जुआरियों का अड्डा बन जाता है, इसे रोकने के लिए सुरक्षा के इंतजाम हों.
पहाड़ी मंदिर विकास समिति का पुनर्गठन किया जाना चाहिए. उस समिति में सेवानिवृत्त जजों, रिटायर्ड अधिकारियों, शहर के बुद्धिजीवियों और सामाजिक संगठनों के वरिष्ठ लोगों को भी जोड़ा जाये.

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