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एसजीआरएस : जमीन पर बैठ कर खाते हैं प्रशिक्षणार्थी

संजय रांची : एसजीआरएस पार्क, टाटीसिलवे को भी सक्षम झारखंड कौशल विकास मिशन के तहत युवाअों को प्रशिक्षित करने का काम मिला है. टाटीसिलवे अौद्योगिक क्षेत्र, फेज वन स्थित इस संस्थान को प्लंबिंग (पाइप फिटिंग व अन्य) तथा अपारेल (टेलरिंग) ट्रेड में युवाअों को प्रशिक्षित करना है. यहां लड़कियों को टेलरिंग में प्रशिक्षित कर रही […]

संजय
रांची : एसजीआरएस पार्क, टाटीसिलवे को भी सक्षम झारखंड कौशल विकास मिशन के तहत युवाअों को प्रशिक्षित करने का काम मिला है. टाटीसिलवे अौद्योगिक क्षेत्र, फेज वन स्थित इस संस्थान को प्लंबिंग (पाइप फिटिंग व अन्य) तथा अपारेल (टेलरिंग) ट्रेड में युवाअों को प्रशिक्षित करना है.
यहां लड़कियों को टेलरिंग में प्रशिक्षित कर रही एक शिक्षिका यहीं से कोर्स करनेवाली एक लड़की थी. निरीक्षण के क्रम में वहां मौजूद सेंटर प्रभारी ने खुद माना कि यह यहीं (एसजीआरएस) से पढ़ी है. इस शिक्षिका के पास कौशल विकास के लिए जरूरी ट्रेनिंग अॉफ ट्रेनर्स (टीअोटी) का प्रमाण पत्र नहीं है. उधर, एसजीआरएस में प्रशिक्षण पा रहे लड़के पास ही स्थित छात्रावास में रहते हैं. एक किराये के मकान में चल रहे इस छात्रावास में सोने के लिए डबल डेकर बेड लगाया गया है. ऐसा करना छात्रावास में प्रति प्रशिक्षणार्थी के लिए तय कम से कम 25 वर्ग फुट लिविंग रूम की जगह रहने संबंधी शर्त का उल्लंघन है.
स्पष्ट है कि संस्थान संचालक कम जगह में ज्यादा प्रशिक्षणार्थियों को रख कर खूब कमा रहे हैं. एसजीआरएस के छात्रावास में दाल-भात खिलाने का सिलसिला सुबह से ही शुरू हो जाता है. लड़कों ने खुद कहा कि एक तरह का खाना खा कर वह ऊब गये हैं. सप्ताह में एक दिन भी अंडा या नॉनवेज उन्हें नहीं मिलता. इस छात्रावास में कोई डाइनिंग हॉल नहीं है. लड़के जमीन पर बैठ कर खाना खाते हैं. उधर, लड़कियों के लिए गोंदली पोखर में बनाये गये छात्रावास का भी यही हाल है.
प्रति माह 75 हजार रुपये की अतिरिक्त कमाई
एक बैच में अधिकतम 30 प्रशिक्षु होते हैं. इन्हें रहने-खाने के लिए सरकार प्रति ट्रेनी हर रोज 200 रुपये देती है. यानी 1.80 लाख रुपये प्रति माह. इधर, एसजीआरएस में ट्रेनी लड़कों का छात्रावास संस्थान के पास एक किराये के मकान में संचालित है, जिसका मासिक किराया अभी 45 हजार है. वहीं एक ट्रेनी को तीन वक्त के भोजन पर अधिकतम 60 रुपये खर्च हो रहा है.
इस तरह 30 प्रशिक्षु पर हर रोज अधिकतम दो हजार रुपये तथा प्रति माह 60 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं. इस तरह रहने-खाने के खर्च के बाद संस्थान को हर माह 75 हजार रुपये की कमाई गत 10 माह से हो रही है. यहां भी ट्रेनी को सोने के लिए डबल डेकर बेड का इस्तेमाल होता है. गौरतलब है कि सरकार एक ट्रेनी को प्रशिक्षित करने पर प्रति घंटे 35-40 रुपये खर्च करती है. इसका हिसाब अलग है.

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