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भूख व थकान से हुई प्रेमनी कुंवर की मौत
रांची: गढ़वा जिले के डंडा प्रखंड में एक दिसंबर को 64 वर्षीय विधवा प्रेमनी कुंवर की मौत भूख व थकावट से हुई है. भोजन का अधिकार टीम ने जांच के बाद यह कहा है. बैंक खाता, राशन कार्ड व अन्य साक्ष्य के आधार पर बनी इस रिपोर्ट के अनुसार प्रेमनी की मौत के वक्त उसके […]
रांची: गढ़वा जिले के डंडा प्रखंड में एक दिसंबर को 64 वर्षीय विधवा प्रेमनी कुंवर की मौत भूख व थकावट से हुई है. भोजन का अधिकार टीम ने जांच के बाद यह कहा है. बैंक खाता, राशन कार्ड व अन्य साक्ष्य के आधार पर बनी इस रिपोर्ट के अनुसार प्रेमनी की मौत के वक्त उसके खाते में एक रुपया भी नहीं था. दो महीने पहले आधार आधारित भुगतान प्रणाली ने प्रेमनी की जानकारी के बिना उनकी पेंशन राशि अन्य खाते में भेज दी. साथ ही साथ प्रेमनी को अगस्त व नवंबर में राशन भी नहीं मिला.
जानकारी के मुताबिक प्रेमनी कुंवर एक निराश्रित विधवा थी, जो अपने 13 वर्षीय बेटे के साथ रहती थी. प्रेमनी को 600 रु की मासिक पेंशन उनके आधार से जुड़े स्टेट बैंक अॉफ इंडिया के खाते में मिलती थी, लेकिन अक्तूबर माह से उनकी पेंशन किसी अन्य खाते में (जो उनके पति की पहली पत्नी शांति देवी के नाम पर है) जमा हो गयी, जो 25 वर्ष पहले मर चुकी है. ऐसा शांति देवी के खाते का प्रेमनी की आधार संख्या से लिंक हो जाने के कारण हुआ. आधार-आधारित पेंशन भुगतान की वर्तमान व्यवस्था में, पेंशनधारी की पेंशन स्वतः उनके उस बैंक खाते में जमा हो जाती है, जो सबसे हाल में उनकी आधार संख्या के साथ लिंक किया गया हो.
क्या है समस्या
हैरत तो यह है कि झारखंड के अधिकांश ग्रामीण इस प्रणाली से अवगत नहीं है. यह वैसे पेंशनधारियों और नरेगा मजदूरों के लिए, जिन्हें यह पता नहीं चल पाता कि किस खाते में उनका पेंशन या मजदूरी गयी है. एक गंभीर समस्या बन गयी है. प्रेमनी की मौत वैसे लोगों की कठिनाइयों को दर्शाती है. यह आधार संबंधित आपत्तिजनक बैंकिंग प्रथाओं का मात्र एक उदहारण है. यह भी देखा गया है कि खाताधारी की सहमति या जानकारी के बिना ही उनका आधार से लिंक्ड बैंक खाता (उदाहरण के लिए जन धन योजना के अंतर्गत) खोला जाता है.वर्ष 2016 में पूर्वी सिंहभूम के बोड़ाम प्रखंड में छह हजार नरेगा मजदूरों का आधार लिंक्ड बैंक खाता बिना उनकी जानकारी या सहमति के खोले गये थे. इससे फर्जी निकासी की संभावना बढ़ जाती है.
राशन नहीं मिला था :प्रेमनी को जन वितरण प्रणाली से अगस्त व नवंबर माह का राशन भी नहीं मिला. उसके पास अंत्याेदय कार्ड था, जिससे वे आमतौर पर स्थानीय राशन की दुकान से प्रति माह एक रु प्रति किलो की दर से 35 किलो चावल (दो किलो कटौती करके) खरीद पाती थी. प्रेमनी को सितंबर में मिले चावल का अधिकांश भाग अगस्त में लिया गया उधार चुकाने में चला गया. नवंबर में डीलर ने प्रेमनी से पॉश मशीन में उनके अंगूठे का निशान लगवाया, पर राशन बाद में लेने को कहा. इसी बीच प्रेमनी की मौत हो गयी. अगस्त में गांव में राशन का वितरण नहीं हुआ था, क्योंकि डीलरों को उस महीने अनाज आवंटित नहीं किया गया था.
बेटा ही सहारा था
भोजन और पैसे से वंचित प्रेमनी अगस्त से अर्द्ध-भुखमरी की स्थिति में जी रही थी. कभी-कभी बेटा विद्यालय में मिलने वाले मध्याह्न भोजन का कुछ भात ले आता था. अक्सर इससे अधिक कुछ और खाने के लिए नहीं होता था. मरने के लगभग 15 दिनों पहले तक प्रेमनी को पर्याप्त भोजन नहीं मिला था. मृत्यु के पहले अाठ दिनों तक उनके घर में कुछ भी खाना नहीं बना था.
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