रांची: झारखंड राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर पर आरोपियों को बचाने का मामला सामने आया है. आयोग की अध्यक्ष के इन कृत्यों की शिकायत राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष, महिला और बाल विकास विभाग की मंत्री मेनका गांधी और राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से की गयी है. इन सभी मामलों की निष्पक्षता से जांच करते हुए आवश्यक कार्रवाई करने की मांग भी की गयी है.
आयोग के सदस्य डॉ मनोज कुमार ने इस संबंध में केंद्रीय मंत्री से लेकर राज्यपाल तक को पत्र लिख कर कहा है कि इस तरह के गलत फैसले से राज्य में रह रहे 56 लाख बच्चों को इंसाफ नहीं मिल पायेगा.
जानकारी के अनुसार पिठौरिया थाने में 16 वर्षीय बालक के साथ पुलिस द्वारा की गयी मारपीट के मामले में पीड़ित बच्चे को आयोग की अध्यक्ष ने बालिग करार दे दिया. जबकि इस मामले में एसएसपी ने पिठौरिया थाने के दारोगा को निलंबित भी कर दिया था. मामले में पुलिस अवर निरीक्षक विकास कुमार ने 31 जुलाई को आयोग की अध्यक्ष को पत्र लिख कर पीड़ित बच्चे की उम्र सीमा की जांच कराने की बातें भी कही थीं. बच्चे की उम्र से संबंधित दस्तावेज में उम्र सीमा 11.9.2001 अंकित है. इससे आयोग की अध्यक्ष द्वारा पीड़ित बच्चे को बालिग करार दिये जाने से मामला संदेहास्पद हो गया है.
इसी प्रकार गढ़वा के एक मामले में भी निलंबित शिक्षक को बचाने के संबंध में उपायुक्त को अनुशंसा पत्र भी आयोग की अध्यक्ष ने लिखा है. मध्य विद्यालय मझिआंव के प्रधानाध्यापक विंध्याचल सिंह पर गढ़वा डीएसई ने निलंबन की कार्रवाई 12.7.2017 को की थी. इस बाबत आयोग की अध्यक्ष ने 24 अगस्त 2017 को गढ़वा के उपायुक्त से विंध्याचल सिंह के निलंबन पर पुनर्विचार करने के संबंध में पत्र लिखा था. इसी तरह एक अन्य मामले में पांकी के परसिया और महुगाई में कार्यरत सेविका को चयनमुक्त करने के बाद उन्हें बरी करने की अनुशंसा महिला और बाल विकास विभाग के प्रधान सचिव से कर दी.