सूचीबद्ध किये गये वर्षों से लंबित क्रिमिनल अपील मामलों की सुनवाई सुबह आठ बजे से शुरू हुई. खंडपीठ ने एक मामले को सुनवाई के बाद खारिज कर दिया, जबकि एक दूसरे मामले में आजीवन कारावास के सजायाफ्ता उपेंद्र राम व सत्येंद्र राम की अपील को स्वीकार करते हुए बरी करने का फैसला सुनाया. अपील पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा कि चश्मदीद गवाह राम सुंदर राम की गवाही पर विश्वास नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उसकी गवाही स्पष्ट नहीं है.
उसने घटनास्थल के पास से दो लोगों को भागते हुए देखा था. हत्या होते नहीं देखा था. गड़ासे की कोई चोट पोस्टमार्टम करनेवाले चिकित्सक अभय कुमार ने नहीं पायी. गवाही व मेडिकल रिपोर्ट में अंतरद्वंद है. साथ ही दारोगा 17 घंटे के बाद घटनास्थल पर पहुंचा, जो कि अस्वाभाविक लगता है. सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने निचली अदालत के पांच मई 2007 के आजीवन कारावास से संबंधित फैसले को निरस्त कर दिया. इससे पूर्व अपीलकर्ता की अोर से वरीय अधिवक्ता पीसी त्रिपाठी ने खंडपीठ को बताया कि चश्मदीद गवाह राम सुंदर राम की गवाही विश्वास करने योग्य नहीं है. वे मृतक के सहोदर भाई हैं. उन्होंने 17 घंटे बाद पुलिस को फर्द बयान दिया था. उसके पहले उन्होंने क्या कार्रवाई की, उसकी जानकारी नहीं दी. वहीं राज्य सरकार की अोर से अधिवक्ता सुधांशु कुमार देव ने अभियोजन का बचाव करने का प्रयास किया.