जीवेश रंजन
झारखंड की राजधानी रांची से 45 किलोमीटर दूर बसा है सीताडीह गांव. रांची-मूरी अप और डाउन रेल लाइन के बीच स्टेट हाइवे के किनारे बसे इस गांव की पहचान बन चुकी हैं महज पहली कक्षा पास छोटी देवी. मुरी विधानसभा क्षेत्र के इस गांव में आज भी सुविधाओं की कमी है. पीने के पानी, सिंचाई, स्वास्थ्य सेवाओं सहित अन्य सुविधाओं की कमी पर भारी है छोटी देवी की जिद.
अप और डाउन रेल लाइन के बीच छोटी ने अपना जीवन कभी डाउन नहीं होने दिया. मेहनत के बल न सिर्फ इलाके में अपनी अलग पहचान बनायी, बल्कि गांव की लड़कियों के लिए रोल मॉडल भी बन गयीं. सिल्ली के मिडाली से ब्याह कर सीताडीह आयी छोटी देवी एक सामान्य ग्रामीण महिला ही थी. घर में सास, पति के अलावा जब चार बच्चे (दो बेटा, दो बेटी) हो गये, तो मौसमी खेती के भरोसे घर चलाना मुश्किल हो गया.
पति दिवाकर बेदिया हाड़तोड़ मेहनत करते थे, पर कुछ नहीं होता था. इससे कई घरेलू दिक्कतें पेश आने लगीं. ऐसे में छोटी देवी ने लीक से अलग चलने की सोची. पाई-पाई जोड़ कर 500 रुपये जमा किये थे. सब पति को दे दिये. कुछ चनाचूर, टॉफी, चना, बिस्कुट और अन्य छोटे सामान लाने के लिए कहा. पति के साथ कंधे से कंधा मिला घर के सामने मिट्टी की दीवाल खड़ी कर एक कमरे का निर्माण करवाया.
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घर की छत तैयार करने के साथ पति-पत्नी ने प्रण किया कि कोई नशा नहीं करेगा. सब मिल कर आगे बढ़ेंगे. फिर शुरुआत हुई छोटी और दिवाकर की दुकान की. उस मिट्टी के घर में एक चौकी पर सारा सामान करीने से सजा कर छोटी की दुकान तैयार हो गयी. अहले सुबह घर का काम कर पति को खेत व बच्चों को स्कूल भेज अपनी दुकान पर जम जाती हैं छोटी.
बैलों का कर्ज भी चुकाया : खेती के लिए दो बैलों की जरूरत महसूस हुई, तो सहायता समूह से कर्ज ले दिवाकर बैल खरीद लाये. बैलों के आने से खेती में थोड़ी सुविधा जरूर हुई, पर इतनी भी नहीं कि कर्ज चुकाया जा सके. छोटी देवी ने इस चिंता का भी समाधान ढूंढ़ निकाला. दुकानदारी से होनेवाली कमाई से उसने बैल खरीदने के लिए लिये गये कर्ज चुका दिये. अब चौकी पर लगी छोटी की दुकान में अंडा, किसिम-किसिम के बिस्कुट, कुरकुरे और अन्य सामान भी मिलने लगे हैं. रोज की कमाई इतनी कि घर का खर्च और बच्चों की पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं.
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चाहती हैं लड़कियां पढ़ें : छोटी देवी महज कक्षा एक तक पढ़ी हैं. पर वह चाहती हैं कि उनकी बेटियों के अलावा गांव की सभी लड़कियां पढ़ें. इसके लिए वह गांव की लड़कियों का हौसला बढ़ाती हैं. इस बात का उन्हें दुख है कि गांव में मात्र एक उत्क्रमित मध्य विद्यालय है और हाई स्कूल के लिए आठ किलोमीटर दूर जोन्हा जाना पड़ता है. गांव का स्कूल भी रेल लाइन के दूसरी ओर है. जाने का रास्ता भी नहीं. वह चाहती हैं कि स्कूल सुरक्षित स्थान पर हो, ताकि बच्चे पढ़ सकें. अभिभावक भयभीत न रहें कि बच्चे के साथ कोई हादसा न हो जाये. छोटी कहतीं हैं कि बच्चे जब तक पढ़ कर नहीं लौटते, चिंता लगी रहती है कि बच्चे सकुशल घर तो लौट आयेंगे.
नशा के प्रति लोगों को करतीं हैं सजग : छोटी देवी कहती हैं कि गांव में नशा नाश का बड़ा कारण है. वह नहीं चाहती कि कोई नशा करे. इसके लिए वह इलाके की लड़कियों और महिलाओं को सजग करती हैं. नशे की बुराइयों के बारे में बताती हैं और आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती हैं.
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हिसाब-किताब में पक्का :लाख परेशानी हो, छोटी देवी के होठों की मुस्कुराहट नहीं जाती. ग्राहकों को सामान देने के साथ पैसे का हिसाब-किताब भी करती रहती हैं. कहती हैं, ‘नहीं पढ़े हैं, तो क्या. हिसाब-किताब में कोई दिक्कत नहीं होती.’ गांव में उधारी से परेशानी के सवाल पर कहा कि बच्चों को उधार देती हैं और ऐसे भी दे देती हैं, पर किसी बड़े को उधार नहीं देतीं.
पति को है छोटी पर गर्व : दिवाकर बेदिया को अपनी पत्नी पर गर्व है. कहते हैं कि दोनों ने मिल कर हमेशा बेहतर किया है. इस बात का कभी गम नहीं रहा कि उनके पास सुविधाएं नहीं हैं. कहते हैं कि हम मिल कर अपने बच्चों को बेहतर बनायेंगे. साथ ही गांव में भी खुशी आये, इसकी कोशिश करते रहेंगे.