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झारखंड के 47.8 फीसदी बच्चे कुपोषित

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) 2015-16 की रिपोर्ट रांची : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4(एनएफएचएस-4) 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पांच वर्ष तक के 47.8 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. राज्य पोषण मिशन के बेसलाइन सर्वे से यह पता चला है कि इनमें से करीब चार लाख बच्चे अति कुपोषित हैं. इन्हीं बच्चों की जिंदगी […]

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) 2015-16 की रिपोर्ट

रांची : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4(एनएफएचएस-4) 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पांच वर्ष तक के 47.8 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. राज्य पोषण मिशन के बेसलाइन सर्वे से यह पता चला है कि इनमें से करीब चार लाख बच्चे अति कुपोषित हैं. इन्हीं बच्चों की जिंदगी को बचाना चुनौती है. देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद की रिपोर्ट से भी झारखंड में बच्चों व महिलाअों की स्वास्थ्य संबंधी दयनीय स्थिति की पुष्टि हो चुकी है.
संस्थान ने राज्य के पांच जिलों में विशेष अध्ययन किया था. एक साल के अध्ययन के बाद चतरा, धनबाद, दुमका, गिरिडीह व कोडरमा की रिपोर्ट 28 सितंबर 2016 को जारी की गयी थी. इसमें यह खुलासा हुआ कि अध्ययन वाले जिलों के 57.2 फीसदी बच्चे नाटे, 44.2 फीसदी कम वजन वाले तथा 16.2 फीसदी थके-हारे व कमजोर हैं.
कोडरमा व दुमका जिले में एक से पांच वर्ष के 61-61 फीसदी बच्चे नाटे पाये गये. वहीं चतरा के 59.6 फीसदी बच्चे कम वजन के तथा गिरिडीह के 22.4 फीसदी बच्चे कमजोर मिले. किशोरी बालिकाअों व महिलाअों की स्थिति भी बदतर थी.
हर वर्ष 2.25 लाख कम वजन बच्चों का जन्म
झारखंड में हर वर्ष करीब आठ लाख बच्चे जन्म लेते हैं. इनमें से 29 हजार तो अपना पहला जन्म दिन भी नहीं मना पाते. ये वैसे बच्चे हैं, जो कम वजन वाले व बेहद कमजोर होते हैं. दरअसल राज्य में जन्म लेने वाले करीब आधे (चार लाख) बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं.
यही वजह है कि पांच साल तक में जिन बच्चों की मौत होती है, उनमें से 45 फीसदी मौत का कारण कुपोषण होता है.
हम अफ्रीकी देशों से थोड़े ही बेहतर
राज्य पोषण मिशन की पूर्व महानिदेशक मृदुला सिन्हा ने राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया के दौरान कहा था कि ये आंकड़े भयावह हैं. इससे पता चलता है कि हमारी स्थिति सब सहारा व अफ्रीका के देशों से थोड़ा सा ही बेहतर हैं. हमारे राज्य में कम से कम पांच लाख अति कुपोषित (सैम) बच्चे हैं.
विडंबना
42
लाख बच्चे पांच वर्ष तक के
20
लाख बच्चे इनमें से कुपोषित
65
लाख लड़कियां 18 वर्ष से कम की
67
फीसदी इनमें से कुपोषित

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