रांची : पहाड़ी मंदिर जिस पहाड़ पर स्थित है, गुरुवार सुबह वहां भू-स्खलन हो गया. इससे पहाड़ की तलहटी में लगी एक दुकान टूट गयी. भू-स्खलन के बाद आसपास के लोगों में दहशत फैल गयी. हालांकि, पहाड़ी मंदिर पर हुए भू-स्खलन से कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन यदि यही घटना सोमवार को होती, तो जान-माल को भारी नुकसान पहुंच सकता था.
सावन का महीना चल रहा है और पहाड़ी मंदिर पर बाला भोलेनाथ विराजमान हैं. सोमवार को यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है. रांची शहर के साथ-साथ आसपास के लोग भी यहां लोग जलार्पण करने आते हैं. श्रावण मास होने के कारण सोमवार को मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
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इतना ही नहीं, सोमवार को पहाड़ी मंदिर प्रांगण में कई कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है. ऐसे में लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होती है. घटना के वक्त वहां मौजूद लोगों ने कहा कि पहाड़ी बाबा की कृपा ही है कि हादसा ऐसे वक्त हुआ, जब वहां भीड़ कम थी. ऐसा न होता, तो पता नहीं क्या हो जाता.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि दुनिया का सबसे बड़ा तिरंगा फहराने के लिए इस पहाड़ पर बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हुए. जब निर्माण कार्य चल रहा था, तभी पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी थी कि इतने बड़े पैमाने पर निर्माण के पहाड़ कमजोर हो सकता है और कभी भी धंस सकता है.
पहाड़ी मंदिर का झंडा लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में शामिल
उस वक्त झंडा फहराने के लिए स्टैंड बनानेवाले इंजीनियरों ने पर्यावरणविदों की चेतावनी को दरकिनार कर दिया था. कहा था कि पहाड़ बहुत मजबूत है और उसे कोई नुकसान नहीं होगा. हालांकि, बाद में उन्हीं इंजीनयिरों ने माना कि निर्माण कार्य की वजह से पहाड़ को नुकसान हो सकता है. लेकिन रांची के तत्कालीन उपायुक्त ने इसका जोर-शोर से खंडन किया था.
रांची के तत्कालीन उपायुक्त मनोज कुमार ने कहा था कि झंडा फहराने के लिए जो प्लेटफॉर्म तैयार किया गया है, उसकी डिजाइन मेकॉन के इंजीनियरों ने बनायी है. बीआइटी के विशेषज्ञों से मिट्टी की जांच करायी गयी है. इतना ही नहीं, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के विशेषज्ञों की भी इसमें मदद ली गयी है.
पहाड़ी मंदिर के अस्तित्व से जुड़ी खबरों का खंडन करते हुए तत्कालीन उपायुक्त ने कहा था कि झारखंड का यह पहाड़ बारिश के मौसम में पूरी तरह तो है ही, यह पहले से ज्यादा मजबूत हो गया है.
पहाड़ी मंदिर पर 15 अगस्त को फिर लहरायेगा तिरंगा
उन्होंने अपने दावे के समर्थन में कहा था कि पहाड़ी मंदिर पर तिरंगा लगाने को लेकर बनाया गया फ्लैग पोस्ट विशेष टेरेनॉलिंग टेक्नालॉजी से बना है. इसमें 30 रोप से फ्लैग पोस्ट को पहाड़ी की सतह से भी नीचे बांधा गया है. इसकी वजह से इसका बोझ पहाड़ी मंदिर पर नहीं पड़ रहा, बल्कि पहाड़ी मंदिर को और मजबूती से बांध रखा है.
भू-स्खलन की यह घटना बताती है कि पर्यावरणविदों की चिंता सही थी. उनका यह कहना भी सही था कि कुछ सामाजिक संगठन और इंजीनियर विश्व रिकॉर्ड बनाने और प्रसिद्धि पाने की लालच में पहाड़ को नुकसान पहुंचा रहे हैं.