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साल में 180 घंटे जाम में बीत जाती है रांची वासियों की जिंदगी

राजधानी रांची की ट्रैफिक पुलिस यातायात व्यवस्था को सुचारु रखने का भरसक प्रयास करती है. बावजूद इसके शहर की महत्वपूर्ण सड़कें पीक आवर में जाम हो जाती हैं. ‘प्रभात खबर’ ने पड़ताल की, तो पाया कि शहर की विभिन्न सड़कों से गुजरते हुए एक वाहन चालक रोजाना औसतन 30 मिनट जाम में बर्बाद करता है. […]

राजधानी रांची की ट्रैफिक पुलिस यातायात व्यवस्था को सुचारु रखने का भरसक प्रयास करती है. बावजूद इसके शहर की महत्वपूर्ण सड़कें पीक आवर में जाम हो जाती हैं. ‘प्रभात खबर’ ने पड़ताल की, तो पाया कि शहर की विभिन्न सड़कों से गुजरते हुए एक वाहन चालक रोजाना औसतन 30 मिनट जाम में बर्बाद करता है. यानी राजधानी की सड़कों पर रोजाना वाहन चलाने वाला एक व्यक्ति महीने में अाैसतन 15 घंटे और साल में 180 घंटे जाम में बर्बाद कर देता है. राजधानी में जाम की समस्या की पड़ताल करती अजय दयाल की रिपोर्ट…
रांची: झारखंड अलग राज्य बनने के 17 साल बाद भी राजधानी रांची के लोगों को जाम से निजात नहीं मिल पायी है. हालांकि, अब तक जितनी भी सरकारें बनी हैं, उन्होंने राजधानी की यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए कई योजनाएं बनायीं. फ्लाई ओवर, चौड़ी सड़कें, मेट्रो ट्रेन और मोनो रेल चलाने तक की योजना बनी, लेकिन एकाध योजना ही धरातल पर दिखी.

रांची की आबादी 16 लाख से ज्यादा है. इसके अलावा आसपास के इलाकों से रोजाना बड़ी संख्या में लोग राजधानी में अपने जरूरी काम के लिए आते हैं. ऐसे में शहर की सड़कों पर राेजाना वाहनों का भारी दबाव होना लाजमी है, जो जाम की वजह बनते हैं. जाम की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी स्कूल से लौट रहे बच्चों और एंबुलेंस से अस्पताल जा रहे मरीजों को होती है. कई बार तो जाम के चक्कर में मरीजों की जान पर बन आती है.
संकरी सड़कों पर वाहनों का दबाव, धरना-प्रदर्शन से भी लगात है जाम
शहर की प्रमुख सड़कों पर जाम लगाने की पहली वजह तो बड़ी संख्या में वाहनों का परिचालन ही है. सड़कों के किनारे अतिक्रमण और वाहनों की बेतरतीब पार्किंग भी जाम की वजह बनते हैं. इसके अलावा समय-समय पर होनेवाले धरना-प्रदर्शन और जुलूस के कारण भी शहर की सड़कें जाम हो जाती हैं. कई जगहों जब हल्का-फुल्का जाम लगने पर लोग जल्दी आगे निकलने के चक्कर में अपने वाहन आड़े-तिरछे कर देते हैं, जिससे जाम और भी लंबा हो जाता है. यानी राजधानीवासियों में यातायात नियमों के प्रति जागरूकता नहीं है, जिसकी वजह से बाद में उन्हें ही परेशानी झेलनी पड़ती है.

ऑटो, ई-रिक्शा और सिटी बसों की मनमानी से भी जाम होती हैं सड़कें
राजधानी में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रूप में चलनेवाले ई-रिक्शा, ऑटो और सिटी बसें भी जाम की वजह बनते हैं. राजधानी में 700 ई-रिक्शा, 15000 ऑटो और 45 सिटी बसें भी चलती हैं. इन वाहनों के चालक राह चलते कहीं भी अपने वाहन रोक कर यात्रियों को चढ़ाते और उतारते हैं, जिसकी वजह से अक्सर सड़क जाम हो जाती है. कांटाटोली चौक पर हमेशा एक सिटी बस लगी रहती है, जिससे वहां जाम ज्यादा लगता है.
हर साल 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं वाहन
इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसपोटेशन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी(आइटीडीपी) साउथ एशिया द्वारा किये गये सर्वे में बताया गया है कि रांची में हर साल तीन प्रतिशत की दर से आबादी बढ़ रही है, जबकि गाड़ियों की संख्या 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है. संस्था मानती है कि रांची में 900 पब्लिक बसें होनी चाहिए, जिससे छोटे वाहनों का उपयोग कम होगा आैर सड़कें जाम से मुक्त होंगी. रांची में 40 प्रतिशत लोग पैदल चलते हैं. पांच प्रतिशत लोग कार का इस्तेमाल करते हैं. 30 प्रतिशत लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट या अॉटो से चलते हैं. 20 प्रतिशत लोग बाइक या कार से चलते हैं. संस्था यह मानती है कि रांची में ट्रैफिक समस्या से निजात के लिए सड़क या फ्लाई ओवर समाधान नहीं है. यहां पैदल चलनेवालों फुटपाथ की व्यवस्था होनी चाहिए.
हमारे कारण नहीं लगता है जाम
हमारे कारण शहर में कभी जाम की स्थिति पैदा नहीं होती. अचानक शहर में वाहनों की संख्या बढ़ गयी है, जिसकी वजह से जाम लगता है.
एनुबुल, ई-रिक्शा चालक
ई-रिक्शा के कारण लगता है जाम
जाम ऑटो के कारण नहीं, बल्कि ई-रिक्शा के कारण लगता है. राजधानी बनने के बाद जनसंख्या और वाहनों की संख्या के बढ़ने से जाम की स्थिति पैदा हुई है.
उमेश सिंह, ऑटो चालक
सिटी बस तो थोड़ी देर ही खड़ी होती है
हमलोग तो थोड़ी देर बस रोड पर रोकते हैं. ऐसे में सिटी बस के कारण जाम लगने की कोई बात ही नहीं है. जाम की असली वजह छोटे वाहन ही हैं.
मो अंजर, सिटी बस चालक

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