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नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच के लिए आयोग ने मांगा छह माह का समय

रांची: विधानसभा में नियुक्त-प्रोन्नति घोटाले की जांच कर रहे आयोग ने सरकार से समय मांगा है़ न्यायमूर्ति विक्रमादित्य आयोग का कार्यकाल इसी माह खत्म हो रहा है़ एक सदस्यीय आयोग को अभी घोटाले से जुड़ी कई पहलुओं की जांच करनी है़ आयोग ने सरकार के मंत्रिमंडलीय सचिवालय को पत्र भेज कर छह माह का समय […]

रांची: विधानसभा में नियुक्त-प्रोन्नति घोटाले की जांच कर रहे आयोग ने सरकार से समय मांगा है़ न्यायमूर्ति विक्रमादित्य आयोग का कार्यकाल इसी माह खत्म हो रहा है़ एक सदस्यीय आयोग को अभी घोटाले से जुड़ी कई पहलुओं की जांच करनी है़ आयोग ने सरकार के मंत्रिमंडलीय सचिवालय को पत्र भेज कर छह माह का समय मांगा है़ सरकार आयोग का आग्रह मान लेती है, तो दूसरी बार अवधि विस्तार मिलेगा़ इससे पूर्व आयोग को जांच के लिए एक वर्ष का अवधि विस्तार दिया जा चुका है़.

सूचना के मुताबिक आयोग की ओर से सरकार को भेजे पत्र कहा गया है कि विधानसभा के कई अधिकारियों का महालेखाकार कार्यालय से सेवा पुस्तिका नहीं मिल पायी है़ इसके साथ पूर्व स्पीकर आलमगीर आलम के समय हुई नियुक्तियों में घोटाले को लेकर एक सीडी सामने आयी थी. यह सीडी भाजपा नेता सरयू राय द्वारा जारी की गयी है़ आयोग के पास भी यह सीडी पहुंची है़ सीडी की अब तक फॉरेंसिक जांच नहीं हो पायी है़.

आयोग ने कहा है कि वह इस सीडी की फॉरेंसिक जांच कर तथ्य जुटाना चाहता है़ नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की सूची लंबी है़ उल्लेखनीय है कि आयोग एक-एक आरोपों की गहराई से जांच कर रहा है़ हाइकोर्ट की ओर से भी निर्देश मिला था कि आरोपी कर्मी-अधिकारियों से उनका पक्ष जाना जाये़ इन सारी प्रक्रियाओं में आयोग को समय लग रहा है़.
मई 2013 में हुआ था आयोग का गठन
विधानसभा में नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया गया था़ 10 मई 2013 को जांच आयोग के गठन की अधिसूचना जारी हुई थी़ सेवानिवृत्त न्यायाधीश लोक नाथ प्रसाद को जांच आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था़ विधानसभा में नियुक्ति, प्रोन्नति की जांच के लिए आयोग को तीन माह का समय दिया गया था आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष को विधानसभा की आेर से सहयोग नहीं मिला़ लोकनाथ प्रसाद आयोग का भी कार्यकाल एक वर्ष बढ़ाया गया था,लेकिन जांच पूरी नहीं हो सकी़ विधानसभा सचिवालय के असहयोग से नाराज श्री प्रसाद ने तब इस्तीफा दे दिया था़ इसके बाद सरकार ने जस्टिस विक्रमादित्य को जांच आयोग अध्यक्ष बनाया़.
किसके समय हुई थी कितनी नियुक्तियां
पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में : 274
पूर्व स्पीकर आलमगीर आलम के कार्यकाल में : 324
राज्यपाल के निर्देश पर आयोग इन बिंदुओं पर कर रहा है जांच
क्या नियुक्ति/ प्रोन्नति में पिक एंड चूज पद्धति अपनायी गयी.
क्या अनुसेवक के लिए नियुक्ति प्रक्रिया द्वारा कथित रूप से चयनित व्यक्तियों को ऑडरर्ली रूप से नियुक्त कर लिया गया.
क्या गृह जिला (पलामू) के 13 अभ्यर्थियों को स्थायी डाक-पता पर पोस्ट भेजा गया. क्या पत्र 12 घंटे के भीतर मिल गया. क्या सफल उम्मीदवारों ने दो दिनों के अंदर ही योगदान कर दिया.
क्या तैयार मेधा सूची में कई रोल नंबर पर ओवर राइटिंग की गयी है.
क्या नियुक्ति की कार्रवाई बिना पद रहे प्रारंभ कर दी गयी या बिना पद के उपलब्ध परिणाम घोषित कर दिये गये.
क्या इंदर सिंह नामधारी के अध्यक्ष काल में प्रतिवेदकों के 23 पदों के विरुद्ध 30 व्यक्तियों की नियुक्ति की गयी.
क्या विज्ञापन में पदों की संख्या का उल्लेख नहीं था. क्या बिना पदों की संख्या जारी किया गया विज्ञापन वैध है.
क्या गठित नियुक्ति कोषांग में कौशल किशोर प्रसाद और सोनेत सोरेन को शामिल किया गया, जिनके खिलाफ एमपी सिंह ने प्रतिकूल टिप्पणी की थी.
तत्कालीन सचिव-सह-साक्षात्कार कमेटी के अध्यक्ष व सदस्य कौशल किशोर प्रसाद विधानसभा सत्र में व्यस्त थे, पूरी अवधि में टाइपिंग शाखा के तारकेश्वर झा व सहायक महेश नारायण सिंह शामिल हुए. इसके बाद भी साक्षात्कार कमेटी के सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिये.
क्या ड्राइवरों की नियुक्ति के लिए निकाले गये 28.12.2006 के विज्ञापन में विहित अंतिम तिथि तक क्या पार्थसारथी चौधरी ने अपना आवेदन नहीं जमा कराया था. क्या वे तत्कालीन विधायक निरसा अपर्णा सेन गुप्ता के भाई थे, तो किस आधार पर साक्षात्कार के लिए बुलाया गया.

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