मेदिनीनगर : महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार में महिलाओं की भागीदारी चिंताजनक है. उक्त बातें सीनियर सिविल जज सुधांशु कुमार शशि ने कही. श्री शशि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे. बाल विकास परियोजना कार्यालय परिसर में जिला विधिक सेवा प्राधिकार व आइसीडीएस के संयुक्त तत्वावधान में विधिक जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया.शिविर की अध्यक्षता करते हुए श्री शशि ने कहा कि महिलाओं के प्रति अत्याचार में बढ़ोतरी चिंता का विषय है. कानून महिलाओं के आत्मरक्षा और उनके विकास के लिए बनाये गये हैं. इसके विपरीत चलने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है.
उन्होंने कहा कि नारी के सहयोग के बिना हर बदलाव अधूरा है. दहेज प्रथा,भ्रूण हत्या के मामले में पूर्णत: विराम तभी लगाया जा सकता है ,जब समाज में सभी के विचारों में बदलाव आयेगी. उन्होंने कहा कि परिवार और समाज में महिलाओं का दायित्व बहुत बड़ा है, जिसे बखूबी वे निभाती है. प्राधिकार के सचिव केके झा ने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि 92 प्रतिशत महिलाओं के साथ हिंसा की घटना होती है, जबकि पांच प्रतिशत महिलाओं के साथ शोषण और मात्र दो प्रतिशत शिकायत या मुकदमे करती हैं.
जेएम विनोद कुमार ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता पर अपने विचार रखें. जिला समाज कल्याण पदाधिकारी राजेश कुमार साह ने कहा कि इस पर विचार करना चाहिए की महिला दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी. सीडीपीओ अर्चना सिन्हा, नीता चौहान, डॉ पूनम सिन्हा ने भी अपने विचार रखे. शिविर में काफी संख्या में महिलाएं उपस्थित थी.
अत्याचार के खिलाफ एकजुटता जरूरी : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिला जागृति सहयोग समिति ने पोखराहा कला में संगोष्ठी सह जागरूकता शिविर का आयोजन किया. इसकी अध्यक्षता संस्था की अध्यक्ष बंदना कुमारी व संचालन संस्था के सचिव मो. रजीउदीन ने किया. गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन मंथन और समीक्षा करने की जरूरत है कि महिलाओं ने क्या पाया और क्या खोया. जो अधिकार मिले हैं, वह प्राप्त हो, इसके लिए महिलाओं की एकजुटता जरूरी है.
महिला के खिलाफ जहां भी अत्याचार हो रहे हैं, उसके खिलाफ एकजुट होकर आवाज बुलंद किया जायेगा, तो इसपर अंकुश भी लगेगा. कहने को तो महिलाओं के लिए कई कानून बने हैं, पर उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. इसलिए जरूरत है कि जागरूक होकर अपने अधिकार प्राप्ति के लिए संघर्ष करने की. गोष्ठी में शीला लकड़ा, सरोज देवी, हेमंती देवी, नूतन कच्छप, कवलपतिया कुंवर, सुनील उरांव, शंकर उरांव, सुरभी कुमारी ने अपने विचार व्यक्त किये.