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बीते साल 84 लाख करोड़ रु काले धन में तबदील हुए

बीते साल 84 लाख करोड़ रु काले धन में तबदील हुए प्रो अरुण कुमार रांची़ जेएनयू के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो अरुण कुमार के अनुसार देश में जीडीपी की करीब 60 फीसदी राशि हर साल काले धन के रूप में बदल जाती है. बीते साल करीब 84 लाख करोड़ रुपये काले धन में […]

बीते साल 84 लाख करोड़ रु काले धन में तबदील हुए प्रो अरुण कुमार रांची़ जेएनयू के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो अरुण कुमार के अनुसार देश में जीडीपी की करीब 60 फीसदी राशि हर साल काले धन के रूप में बदल जाती है. बीते साल करीब 84 लाख करोड़ रुपये काले धन में तबदील हो गये. एेसा राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण होता है. इसको रोक देने से देश की विकास दर में चार से पांच फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है. देश की कई योजनाएं सुचारू रूप से संचालित हो सकती है. अर्थव्यवस्था सुधर सकती है. इसका सीधा असर आम जनजीवन पर दिखेगा. सभी स्कीमों का सही संचालन होगा. प्रो कुमार एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए रांची आये हुए थे. इसी दौरान प्रभात खबर के वरीय संवाददाता मनोज सिंह ने उनसे देश की अर्थव्यवस्था और काले धन की स्थिति पर बात की. प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंशसवाल : केंद्र में नयी सरकार आने से देश की अर्थव्यवस्था में क्या बदलाव आया है? जवाब : पिछले डेढ़ साल में काफी तबदीली आयी है. कई नयी योजनाएं शुरू की गयी हैं. कैश डिपोजिट रेशियो बढ़ा है. विकास दर भी बढ़ी है. इन सुधारों के बीच असमानता भी बढ़ी है. सरकार का रोड मैप क्लीयर नहीं है. काले धन पर सरकार ने जितने कदम उठाये हैं, वह पर्याप्त नहीं हैं. सवाल : रोड मैप क्लीयर नहीं होने के मतलब ?जवाब : सरकार ने स्वच्छ भारत योजना शुरू की है. सफाई सबको पसंद है. लेकिन, यह आगे चलेगा कैसा, यह स्पष्ट नहीं है. जनधन योजना भी अच्छी स्कीम है. लेकिन यह कैसे चलेगी. जिनके पास खाने का खर्च नहीं है, वे खाते में पैसा कैसे जमा करेंगे. नयी शिक्षा नीति तैयार की जा रही है. इसमें शिक्षाविदों को नहीं रखा गया है. केवल ब्यूरोक्रेट्स को रखा गया है. इससे शिक्षा नीति का भविष्य समझा जा सकता है. प्लानिंग कमीशन खत्म कर दिया गया है. प्लानिंग कमीशन कोआॅर्डिनेशन का काम करता था. यह काम कौन करेगा, तय नहीं है. देश ने 100 स्मार्ट सिटी बनाने का निर्णय लिया है, इसमें अंतर मंत्रालय कोआॅर्डिनेशन जरूरी है. यह कैसे होगा, तय नहीं है. सवाल : क्या अच्छी योजना के बाद भी अनिश्चितता की स्थिति है? जवाब : देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था की स्थिति अनिश्चितता की है. पेट्रोलियम उत्पादन करने वाले देशों में संकट की स्थिति है. सीरिया, लिबिया, बांग्लादेश के साथ-साथ भारत के पड़ोसी राज्यों में भी अनिश्चितता का माहौल है. यूएसए और यूरो जोन में मंदी की स्थिति है. ब्रिक्स देशों को छोड़ सभी देशों की विकास दर स्थिर है. इस कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता की स्थिति है. सवाल : केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) को बढ़ावा दे रही है. इसका क्या असर होगा? जवाब : एफडीअाइ से देश की अर्थव्यवस्था को हम ज्यादा मजबूत नहीं कर सकते. एफडीआइ और एफआइआइ के माध्यम से निवेश मात्र 10 से 12 फीसदी तक हो सकता है. इसको एक या दो फीसदी बढ़ाया जा सकता है. इससे बहुत बदलाव नहीं हो सकता. हमें आंतरिक निवेश को बढ़ावा देना होगा, जो अभी घट रहा है. 2008 में हमारा आंतरिक निवेश जीडीपी का 38 फीसदी थी, वह घटकर 28 फीसदी हो गया है. यह स्थिति चिंताजनक है. इस कारण हमें अभी आंतरिक निवेश पर फोकस करने की जरूरत है. केंद्र की वर्तमान सरकार में इसे लेकर कोई रोड मैप नहीं दिख रहा है. ऐसा बड़े-बड़े व्यापारियों का भी कहना है. इस कारण वे निवेश को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं. सवाल : कैसे हो सकता है यह ? जवाब : इसके लिए देश को 12वीं पंचवर्षीय योजना में खर्च बढ़ाना होगा. जो हमारी मूलभूत जरूरत है. उसमें निवेश बढ़ाना होगा. स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बिजली-पानी के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा निवेश करना होगा. तभी इंटरनल इंवेस्टमेंट बढ़ा सकते हैं. सवाल : क्यों हो रहा है ऐसा? जवाब : अरुण शौरी ने हाल में एक बयान दिया कि यह आज तक का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ)है. इसके पीछे कारण है कि पीएमओ पावर सेंटर जरूर हो गया है. लेकिन वहां से योजनाओं का क्लीयरेंस जल्द नहीं हो रहा है. कोई भी बड़ी योजना बिना पीएमओ के क्लीयर नहीं हो रही है. पावर का इस तरह सेंट्रलाइजेशन सही नहीं है. पावर का विकेंद्रीकरण होना चाहिए. ऐसा नहीं होने से पॉलिसी पैरालाइज होने की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी. इसके संकेत मिलने लगे हैं. सवाल : बार-बार विकसित और विकासशील देश स्लो डाउन (मंदी) से परेशान हो जाता है. लेकिन, हर बार भारत उबर कैसे जाता है? जवाब : 2007-08 में पूरे विश्व में जबरदस्त मंदी आयी था. भारत पर भी इसका असर दिखने लगा था. केंद्र सरकार की तत्कालीन नीतियों के कारण हम मंदी से उबर पाये. केंद्र सरकार ने उस समय कई जनोपयोगी योजनाएं शुरू की. 2.5 लाख करोड़ रुपये इनके माध्यम से बाजार में लाये गये. सर्व शिक्षा, मनरेगा, मिड डे मील जैसी योजनाएं शुरू की गयी. इससे बाजार में पैसे का फ्लो हुआ. गांव-गांव तक परचेजिंग पावर बढ़ा. इससे बाजार में जो अनिश्चतता की स्थिति थी, कम हुई. निवेश बढ़ने लगा. सवाल : आपने काले धन पर काफी काम किया है. क्या है काले धन की वर्तमान स्थिति ? जवाब : आज देश में जीडीपी का 62 फीसदी काला धन है. बीते साल करीब-करीब 84 लाख करोड़ रुपये काला धन आया. इसमें 10 से 12 फीसदी दूसरे देशों में चला जाता है. शेष इसी देश में रहता है. यह अर्थव्यवस्था को धीमा कर देता है. हमारी योजनाओं को नुकसान होता है. सरकार के पास इतनी राशि का हिसाब नहीं होता. इस कारण इस पैसे को जोड़कर स्कीम तैयार नहीं हो पाती. इसे रोक कर देश की अर्थव्यव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर सकते हैं. काले धन में 80 से 90 फीसदी हिस्सेदारी सर्विस सेक्टर का है. इसमें व्यापारी, सीए, डॉक्टर अादि लोग आते हैं. सवाल : इसका आम जन पर क्या असर पड़ता है? जवाब : इसका आम जन पर सीधा असर पड़ता है. देश की नीतियां इसकी वजह से फेल हो जाती हैं. विकास की गति धीमी हो जाती है. सरकार से जनता का विश्वास उठता है. जैसा कि केंद्र की पिछली सरकार में हुआ. अगर काले धन पर रोक लगा दें, तो हम अपनी जीडीपी में 25 फीसदी अतिरिक्त राशि जोड़ सकते हैं. इससे हमारी विकास दर चार से पांच फीसदी बढ़ जायेगी. हम किसी भी विकसित देश के साथ खड़े हो सकते हैं. सवाल : इसके पीछे कारण क्या है? जवाब : यह पूरी तरह राजनीतिक है. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है. तमिलनाडु में एआइएडीएमके सत्ता में आती है तो डीएमके के लोग पकड़े जाते हैं. डीएमके आती है तो एआइएडीएमके के लोग पकड़े जाते हैं. इसी तरह की स्थिति पंजाब की है. वहां भी अमरिंदर सरकार आती है तो बादल पर और बादल सरकार आती है तो अमरिदंर पर आरोप लगते हैं. कोई इसे रोकने की कोशिश नहीं करता है. अदालतों में चार करोड़ से अधिक मामले पेंडिंग हैं. ज्यूडिशियल करप्शन भी कम नहीं है. इमानदारों की संख्या कम होती जा रही है. यह चिंता का विषय है. अब तक ब्लैक इकोनॉमी पर 40 कमेटियां बनीं, लेकिन एक पर भी कार्रवाई नहीं हुई़ सवाल : विदेशों से काला धन लाने के मामले पर सरकार ने जो प्रयास किये, क्या सहीं हैं? जवाब : यह केवल चुनावी बयानबाजी थी. सरकार ने अब तक जो प्रयास किये वह नाकाफी हैं. सरकार को कई एजेंसियां विदेशों में भारतीयों के जमा पैसे के बारे में बताना चाहती है. कई देशों ने भी सहयोग करने का वादा किया है, लेकिन इसके लिए सरकार कोई ठोस काम नहीं कर रही है. सवाल : कब तक दिखेगा भारत में इसका असर? जवाब : भारत पर इसका असर जल्द नहीं दिखेगा. कारण है कि अभी कच्चे तेल की कीमत कम नहीं होगी. कच्चे तेल की कीमत कम होने से भारत की अर्थव्यवस्था ठीक-ठाक चल रही है.

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