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आदिवासियों की जमीन अडाणी व अंबानी को सौंपना चाहती है सरकार

पाकुड़ : मुख्यमंत्री रघुवर दास झारखंड के आदिवासियों व मूलवासियों की जमीन को अडाणी व अंबानी को सौंपना चाहती है. पहले से ही आदिवासियों व मूलवासियों की अधिकांश जमीन कोल माइंस व अन्य कंपनी के नाम से जा चुकी है. सरकार सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधित विधेयक लाकर पूंजीपतियों को जमीन दिलाने में और आसान कर दिया […]

पाकुड़ : मुख्यमंत्री रघुवर दास झारखंड के आदिवासियों व मूलवासियों की जमीन को अडाणी व अंबानी को सौंपना चाहती है. पहले से ही आदिवासियों व मूलवासियों की अधिकांश जमीन कोल माइंस व अन्य कंपनी के नाम से जा चुकी है. सरकार सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधित विधेयक लाकर पूंजीपतियों को जमीन दिलाने में और आसान कर दिया है.

आवश्यकता पड़ी तो आगे भी सरकार सीएनटी-एसपीटी एक्ट से छेड़छाड़ कर सकती है. यह बातें झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने लिट्टीपाड़ा दामिन डाक बंगला में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में कही. उन्होंने कहा कि आज झामुमो सीएनटी-एसपीटी संशोधित एक्ट का विरोध करने के नाम पर आदिवासियों को केवल गुमराह करने का काम कर रही है. पूर्व में झामुमो व भाजपा ने मिल कर कई वर्षों तक सरकार चलाने का काम किया है. कोल कंपनी के नाम से जब झारखंड में गरीब आदिवासियों व मूलवासियों की जमीन औने-पौने दाम पर लिया जा रहा था. उस समय आदिवासियों के हित में बात करने वाले झामुमो के नेता कहां थे.

रांची में इन्हीं के कार्यकाल में नेपाल हाउस व प्रोजेक्ट बिल्डिंग का निर्माण हुआ था और इन सरकारी दफ्तरों में 577 कर्मचारियों की बहाली भी हुई थी. वर्ष 2012 में बीजेपी और झामुमो के संयुक्त सरकार में हुए बहाली में से 71 प्रतिशत कर्मचारियों की नियुक्ति राज्य से बाहर अन्य राज्यों के लोगों को हुआ है, जो आज भी फाइलों में भी पड़ा है. कहा कि स्थानीयता का मायने सरकार ने बदल दिया है. उन्होंने कार्यकर्ताओं से लिट्टीपाड़ा विधान सभा में होने वाले उपचुनाव को लेकर राय मांगी और कहा कि राज्य को जिस उद्देश्य से बिहार से अलग किया गया था, आज का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है. राज्य को सही दिशा देने के लिए सभी को एकजुट होने की आवश्यकता है.

लिट्टीपाड़ा उपचुनाव को लेकर कार्यकर्ताओं से मांगी राय
वर्ष 2012 में भाजपा-झामुमो की सरकार के कार्यकाल में हुई नियुक्तियों में 577 कर्मचारियों में से 71 प्रतिशत बाहरी को मिली नौकरी
सीएनटी-एसपीटी एक्ट के नाम पर आदिवासियों को गुमराह कर रही झामुमो

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