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सिस्टर वालसा के हत्यारों को उम्र कैद
पाकुड़ : सिस्टर वालसा जॉन की हत्या में शामिल 16 दोषियों को शुक्रवार को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी़ पाकुड़ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने खुली अदालत में दोषियों को सजा सुनायी़ दोषियों पर 10 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लगाया गया है़ सभी को 13 अक्तूबर को दोषी […]
पाकुड़ : सिस्टर वालसा जॉन की हत्या में शामिल 16 दोषियों को शुक्रवार को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी़ पाकुड़ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने खुली अदालत में दोषियों को सजा सुनायी़ दोषियों पर 10 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लगाया गया है़ सभी को 13 अक्तूबर को दोषी करारदिया गया था़ सजा सुनाये जाने के बाद सभी दोषियों को जेल भेज दिया गया़
अदालत में जुटी थी भीड़ : सजा सुनाये जाने को लेकर शुक्रवार को सिविल कोर्ट में बड़ी संख्या में लोग जुट गये थे़ बड़ी भीड़ के कारण अदालत की सुरक्षा बढ़ा दी गयी थी़ शाम करीब 4:30 बजे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम ओम प्रकाश श्रीवास्तव की अदालत ने सभी 16 दोषियों को सजा सुनाने की प्रक्रिया शुरू की़
आइपीसी की धारा 147 के अंतर्गत दो-दो वर्ष की सजा, धारा 148 के तहत तीन-तीन वर्ष की सजा सुनायी गयी. इसके अलावा धारा 460 के तहत 10-10 साल व प्रत्येक अभियुक्त को दो-दो हजार का जुर्माना, धारा 458 के अंतर्गत सभी दोषियों को 10-10 वर्ष की सजा और दो-दो हजार का जुर्माना, धारा 120 बी के अंतर्गत 10-10 वर्ष और 10-10 हजार का जुर्माना, धारा 302/ 149 के अंतर्गत आजीवन कारावास और 10-10 हजार का जुर्माना और धारा 17 सीएलए के अंतर्गत दो-दो वर्ष की सजा और दो-दो हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनायी गयी़ सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी़
क्या थी घटना : पाकुड़ में 15 नवंबर 2011 को रात करीब 11 बजे सोनाराम हेम्ब्रम के घर में घुस कर कुछ लोगों ने सिस्टर वालसा जॉन को कमरे से खींच कर निकाला़ इसके बाद धारदार हथियार से मार कर उनकी हत्या कर दी़ वालसा जॉन समाजसेवी थी़ गरीबों के हित की लड़ाई लड़ रही थी़ राजमहल पहाड़ बचाओ आंदोलन में भी सक्रिय थे़ इसके कारण उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भी जाना पड़ा था़ वह विस्थापितों व रैयतों के हक की लड़ाई भी लड़ रही थी़
16 पर गठित हुआ था आरोप : मामले में सोनाराम हेम्ब्रम (पिता मुंशी हेम्ब्रम) के लिखित बयान पर अमड़ापाड़ा थाना कांड संख्या 75/11 दर्ज किया गया था. सत्रवाद संख्या 37/2012 दर्ज हुआ था़ कुल 16 अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप गठन हुआ. अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 23 गवाह पेश किये गये़ बचाव पक्ष की ओर से भी दो गवाह का परीक्षण कराया गया.
हाइकोर्ट जायेगा बचाव पक्ष : बचाव पक्ष के अधिवक्ता देवानंद मिश्रा ने कहा है कि इस निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील दायर की जायेगी. उन्होंने न्यायालय के निर्णय पर कुछ सवालिया निशान लगाते हुए कुछ प्रश्न का उल्लेखित किये हैं.
1. क्या वादी व उनके परिजनों द्वारा अनुसंधानकर्ता के समक्ष दिये बयान के विपरित न्यायालय में दिये बयान को आधार बना कर किसी को दोषी करार दिया जा सकता है?
2. क्या पुलिस के समक्ष स्वीकारोक्ति बयान को आधार बना कर किसी को दोषी करार दिया जा सकता है? जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के अंतर्गत पुलिस के समक्ष स्वीकारोक्ति प्रमाण योग्य एवं ग्रहणीय नहीं है.
3. क्या धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत दिये गये बयान को आधार बना कर किसी दोषी को करार दिया जा सकता है?
4. बिना किसी प्रकार के अापराधिक इतिहास के किसी पर धारा 17 सीएलए एक्ट लगाना कानूनन सही है?
5. क्या न्यायालय में गवाहों के प्रतिपरीक्षण को नजरअंदाज कर मुख्य परीक्षण को आधार बना कर किसी दोषी को करार देकर सजा दिया जा सकता है ?
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